बलात्कार का सच: खतरा बाहर नहीं, अपने ही घर के भीतर

समाज में यह धारणा अभी भी प्रचलित है कि लड़कियो के बाहर घूमने, देर रात निकलने या छोटे कपड़े पहनने की वजह से बलात्कार होते है, लेकिन सबसे हालिया आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश अपराध परिचितों, रिश्तेदारों या घर के भीतर से ही होते हैं।
बलात्कार का सच (Sora AI)
बलात्कार का सच (Sora AI)
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वडोदरा (Vadodara) से हाल ही में सामने आए एक दर्दनाक मामले ने उस सोच की जड़ हिला दी है जो कहती है कि बलात्कार का खतरा केवल बाहर की दुनिया से आता है। इस घटना में एक महिला ने अपने ससुर और अपने ननंद के पति पर कई बार बलात्कार करने का आरोप लगाया, और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उसके  पति का स्पर्म काउंट कम था। यह दुखद कहानी एक मिसकैरेज (Miscarriage) के बाद उजागर हुई और FIR दर्ज हुई। यह मामला सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक मिथ पर सवाल है जो महिलाओं के पहनावे, समय या व्यवहार से अपराध को जोड़ती है।

हमारे समाज में प्रचलित यह कहावत, "ताली दोनों हाथ से बजती है" कभी-कभी गलत ढंग से प्रयोग की जाती है ताकि पीड़िता को दोषी ठहराया जा सके। लेकिन सच्चाई यह है कि बलात्कार की जड़ अपराधी के दिमाग में होती है, न कि पीड़िता के कपड़े या आदतों में। इस तथ्य की पुष्टि कई आंकड़े भी करते हैं।

रीसेंट NCRB आंकड़ों के अनुसार, 2022 में भारत में 31,000 से अधिक बलात्कार की रिपोर्टें दर्ज की गईं है जो दर्शाती  है कि यह अपराध लगातार उच्च दर पर बना हुआ है|

दर्ज किए गए मामलो मै से लगभग 89–94% मामलों में आरोपी पीड़िता को जानने वाला था, रिश्तेदार, दोस्त या परिचित। NCRB का डाटा यह स्पष्ट करता है कि घर के भीतर ही अधिकतर असुरक्षा होती है।

"ताली दोनों हाथ से बजती है" (Sora AI)
"ताली दोनों हाथ से बजती है" (Sora AI)

बज़्ज़फीड इंडिया (BuzzFeed India) की रेगा झा (Rega Jha) ने एक बात बेहद प्रभावशाली ढंग से कही थी:

“Instead of our parents teaching us caution, start teaching your sons consent. Instead of our parents teaching us fear, start teaching your sons respect.”

यह पंक्ति इस सोच को खारिज करती है कि लड़कियों को डरकर बचाने के बजाये, लड़कों को बचपन से ही सम्मान और सहमति (consent) की शिक्षा देनी चाहिए।

पिछले कुछ वर्षों में न्याय प्रणाली ने सुधारों की कोशिश की, जैसे कि फास्ट ट्रैक कोर्ट्स (Fast Track Courts), सख्त सज़ाएं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि सज़ा  दर अभी भी सिर्फ 27–28% है। यह मायने रखता है: बहुत सी घटनाएं दर्ज होती हैं, पर न्याय की राह काफी कठिन है।

जहाँ बेटियों को दोष देने के बजाय बेटों को सम्मान, सहमति और संवेदनशीलता सिखाई जाए। (Sora AI)
जहाँ बेटियों को दोष देने के बजाय बेटों को सम्मान, सहमति और संवेदनशीलता सिखाई जाए। (Sora AI)

निष्कर्ष:

जब तक समाज यह मानना बंद नहीं करेगा कि बलात्कार पीड़िता के कपड़ों या व्यवहार की वजह से होता है, तब तक समस्या का समाधान असंभव है। असल खतरा अक्सर हमारे अपने घर के भीतर, परिचितों के बीच होता है। हमें अपने सोच में बदलाव लाना होगा, और यह परिवर्तन घर में शुरू होता है, जहाँ बेटियों को दोष देने के बजाय बेटों को सम्मान, सहमति और संवेदनशीलता सिखाई जाए। [Rh/BA]

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