मनोवैज्ञानिक स्थिति भी जघन्य अपराधों में निभाती है प्रमुख भूमिका

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि भीड़ का हिस्सा बन रहे लोगों को उस वक्त पूरा विश्वास होता है कि वह कानून से बच जाएंगे।
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किसी विशेष व्यक्ति या समूह को निशाना बनाने वाली भीड़ की हिंसा की बढ़ती घटनाओं ने सख्त नियमों की आवश्यकता पर जोर दिया है। मनोवैज्ञानिकों (Psychologists) का कहना है कि भीड़ का हिस्सा रहे लोगों को उस वक्त पूरा विश्वास होता है कि वह कानून से बच जाएंगे।

उदाहरण के लिए, गुजरात (Gujarat) के वडोदरा में, दिवाली पर दो समुदायों के बीच पटाखे फोड़ने की लड़ाई ने सांप्रदायिक झड़पों (communal riots) का रूप ले लिया। भीड़ ने सार्वजनिक वाहनों में आग लगा दी, एक-दूसरे पर पथराव किया और उनमें से कुछ ने सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से अपनी पहचान को छिपाने के लिए बिजली की तारें तोड़ दी। हालांकि किसी के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना नहीं है।

द्वारका के एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल की मनोवैज्ञानिक रुचि शर्मा के अनुसार, भीड़ की हिंसा और सामूहिक गुस्सा आमतौर पर 'सामूहिक न्याय' की अवधारणा और कानूनी सजा से बचने की मानसिक प्रवृत्ति पर आधारित होती हैं। लोगों का मानना होता है कि वे अपराध कर सकते हैं और बिना किसी गंभीर परिणाम के इससे बच सकते हैं।

उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति का व्यक्तित्व और परिस्थितियां ऐसी भीड़ का हिस्सा बनने में बहुत योगदान देती हैं। अन्य बातों पर आया क्रोध और आंतरिक क्रोध, ऐसी भीड़ का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करती है।

शर्मा ने कहा, अधिकारियों की अवहेलना और मादक द्रव्यों के सेवन का लालच भी किसी को इस तरह के व्यवहार में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। समाज में गलत काम करने वालों को हटाने के लिए खुद को नैतिक रूप से जिम्मेदार ठहराते हुए ऐसे विचार के लोग अक्सर इन भड़काने वालों और अपराधियों में गिने जाते हैं।

हाल ही में 14 अक्टूबर को गुरुग्राम के भोरा कलां गांव में 200 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने एक मस्जिद में तोड़फोड़ की और अंदर नमाज अदा कर रहे लोगों के साथ मारपीट की।

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मनोवैज्ञानिक स्थिति भी अपराधों में निभाती है प्रमुख भूमिका Wikimedia



बिलासपुर के एसएचओ समेत जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस के साथ गांव के सरपंच ने दोनों समुदायों के साथ बैठक की और भविष्य में ग्रामीणों के बीच शांति और सद्भाव का आश्वासन दिया।

इसी तरह की एक घटना सितंबर 2021 में हुई। उत्तर प्रदेश के बागपत में एक 50 वर्षीय किसान दाऊद त्यागी परिवार के सदस्यों के साथ अपने घर के बाहर बैठा था। इस दौरान बाइक सवार लगभग 20 लोग लाठी और कट्टे लेकर इलाके के अंदर घुसे।

उन्होंने त्यागी पर हमला किया और बुरी तरह पीटा। गंभीर रूप से घायल त्यागी ने बाद में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। त्यागी की हत्या के बाद से समुदाय में डर का माहौल है।

2019 में क्रूरता के एक अन्य उदाहरण में, हैदराबाद (Hyderabad) में एक पुल के नीचे एक 26 वर्षीय महिला का जला हुआ शव मिला, जो एक पशु चिकित्सक थी। उसका अपहरण किया गया था। पुलिस ने 24 घंटे के भीतर मामले को सुलझा लिया और चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, जिन्हें बाद में एक स्थानीय अदालत ने 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया। चार लोगों ने महिला के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया था।

इस घटना से पूरे देश में आक्रोश फैल गया और न्याय की मांग की जाने लगी। सात दिन बाद पता चला कि चारों आरोपी पुलिस हिरासत में मारे गए।

मनोवैज्ञानिक ज्योति कपूर ने कहा कि तनाव (stress), वित्तीय परेशानी, दुर्व्यवहार, खराब सामाजिक या पारिवारिक परिस्थितियां सभी गुस्से को बढ़ावा देने में योगदान करते हैं।

कपूर ने कहा, गुस्सा उन व्यक्तियों में अधिक पाया जाता हैं, जिनकी परवरिश माता-पिता एक ही विकार के साथ करते है। आम तौर पर, ऐसे लोग जब गुस्सा होते हैं, तो ये उन चीजों के करीब जाते है, जो उन्हें और गुस्सा दिलाने का काम करते है।

हालांकि, गहरी सांस लेने और आराम करने जैसे सरल विश्राम उपकरण गुस्से की भावनाओं को शांत करने में मदद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी कई किताबें (books) और पाठ्यक्रम हैं जो गुस्से को शांत करने के तरीके सिखाती हैं, और एक बार तकनीक सीख लेने के बाद, कोई भी किसी भी स्थिति में अपने गुस्से पर काबू पा सकता है।

लोगों की मनोवैज्ञानिक स्थिति भी जघन्य अपराधों में प्रमुख भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए, 2012 में निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड में आरोपियों को अपनी क्रूरता के लिए कोई पश्चाताप नहीं था।

जघन्य अपराध के दोषियों को फांसी देने में आठ साल लग गए। इस तरह की देरी लोगों को बेचैन कर देती है, जबकि हैदराबाद सामूहिक बलात्कार (rape) मामले में निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई थी।

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स्कूलों और घरों में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने की ज़रूरत

फोर्टिस नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम (Fortis National Health Program) की लीड काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट निष्ठा नरूला ने कहा कि यह कहना सही होगा कि इन दिनों निश्चित रूप से हमारे चारों ओर लोगों में बड़ी मात्रा में आक्रोश व्याप्त है।

उन्होंने कहा, जब समूह या सामूहिक क्रोध की बात आती है, तो मुझे लगता है कि समूह स्वयं एक बड़ी भूमिका निभाता है क्योंकि यह अपने सदस्यों के लिए एक इकाई की तरह महसूस करता है।

उन्होंने कहा कि मुखर होने के लिए प्रशिक्षण, सामाजिक और संचार कौशल प्रशिक्षण, और सहानुभूति जैसे कौशल वास्तव में क्रोध को रोकने में मदद करते है।

नरूला ने कहा, अधिक गुस्से करने वालों के बीच आशा और सकारात्मकता को बढ़ावा देने की जरुरत है।

उन्होंने कहा, गुस्से के बारे में बात करना और लोगों को इससे अवगत कराना बहुत महत्वपूर्ण है।

आईएएनएस/RS

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