तंदूर मर्डर केस: घरेलू कलह से बना देश का दिल दहला देने वाला अपराध

एक तनावपूर्ण शादी से लेकर खौफनाक कवर-अप तक, 1995 का दिल्ली तंदूर मर्डर केस भारत के सबसे खौफनाक आपराधिक मामलों में से एक बना रहा, जिसने महिलाओं की सुरक्षा कानूनों पर सवाल खड़े किए।
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भारत (India) के अपराध इतिहास के पन्नों में, दिल्ली तंदूर मर्डर केस (Delhi Tandoor Case) एक बदनाम मामले के रूप में सामने आता है, जिसने पूरे देश को दहला कर रख दिया था। यह घटना आज भी यह दिल देहला देती है कि कैसे एक व्यक्तिगत रिश्ता देश के आपराधिक इतिहास के सबसे भयानक अपराधों में बदल सकता है। 2 जुलाई 1995 की रात को दिल्ली (Delhi) के एक खुले रेस्टोरेंट में टंदूर में एक शव जलाया जा रहा था। यह पूरी तरह से सोचा-समझा कत्तल था और इसके बाद सुनील शर्मा (Sunil Sharma) की भागने की तैयारी थी, लेकिन दिल्ली पुलिस कांस्टेबल अब्दुल नज़ीर कुंजू और होमगार्ड चंदरपाल ने मौके पर पहुँचकर हत्या की साज़िश का पर्दाफाश कर दिया।

एक तनावभरी शादी की शुरुआत, जून 1995 में एक भयानक हादसे मै बदल गई। तंदूर की चिमनी से उठता धुआँ और बदबू ने ध्यान खींचा। नतीजतन, अब्दुल (Abdul) और चंदरपाल (Chandrapal) ने सोचा शायद आग लगी है और जाकर चेक किया। लेकिन वहाँ उन्हें 29 वर्षीय नैना साहनी (Naina Sahni) का अधजला शव मिला, जो उस समय दिल्ली यूथ कांग्रेस (Delhi Youth Congress) के अध्यक्ष सुनील शर्मा की पत्नी थीं। रेस्टोरेंट मैनेजर केशव कुमार (Keshav Kumar), जिसने दावा किया कि वह पुराने कांग्रेस पोस्टर जला रहा था, मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन शर्मा भागने में सफल रहा।

उन दोनों का रिश्ता पहले से ही तनावपूर्ण था, संदेह और शक से भरा हुआ। शर्मा को शक था कि उनकी पत्नी का अपने सहपाठी और कांग्रेस सहयोगी मतलूब करीम के साथ संबंध है। शर्मा ने अपने राजनीतिक करियर के चलते इस रिश्ते की कड़वाहट को छिपाने की कोशिश की, लेकिन यह उसकी पत्नी को मंज़ूर नहीं था। उस भयानक दिन, नैना साहनी फ़ोन पर बात कर रही थीं जब शर्मा अपने मंदिर मार्ग फ्लैट में पहुँचे। बातचीत खत्म होने के बाद शर्मा ने नंबर दोबारा डायल किया और दूसरी ओर करीम की आवाज़ पाई। यह देखकर शर्मा गुस्से से पागल हो गए और गुस्से में तीन गोलियाँ चलाकर नैना की मौके पर ही हत्या कर दी। फिर शव को शर्मा के रेस्टोरेंट ले जाया गया, टुकड़ों में काटकर मिट्टी के टंडूर में डाल दिया गया ताकि उसे जलाकर खत्म किया जा सके।

जब पुलिस घटनास्थल पर पहुँची, शर्मा वहाँ से भाग गए और गुजरात भवन में छिप गए। अगले दिन वह जयपुर भाग निकले। इसके बाद वह मुंबई (Mumbai) और चेन्नई (Chennai) होते हुए भागते रहे। 10 जुलाई को उन्हें बेंगलुरु (Bengaluru) में पकड़ा गया, जहाँ उन्होंने शुरुआत में खुद को निर्दोष बताया लेकिन बाद में अपना अपराध स्वीकार कर लिया। 7 नवंबर 2003 को ट्रायल कोर्ट ने उन्हें फाँसी (Death Sentence) की सज़ा सुनाई, जिसे 19 फरवरी 2007 को हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। बाद में 2013 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फाँसी की सज़ा को उम्रकैद (Life Sentence) में बदल दिया।

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यह मामला दुर्लभ था क्योंकि इसमें मौत का कारण पता करने के लिए दो अलग-अलग पोस्टमार्टम किए गए। पहला पोस्टमार्टम यह साबित नहीं कर पाया कि शव को मौत से पहले काटा गया था या बाद में, जिसके कारण दूसरा पोस्टमार्टम कराया गया। उनकी पहचान भी डीएनए परीक्ष के माध्यम से स्थापित की गई।

सुनील (Sunil) ने जेल में लगभग 23 साल बिताए, उसके बाद वह बाहर निकले। खबरों के मुताबिक, वह जेल में रोज़ प्रार्थना करते जिससे उन्हें उम्मीद मिलती रही। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने कहा कि उन्हें अपने किये पर पछतावा है और दूसरों को सलाह दी कि किसी भी पल के गुस्से में कदम उठाने से पहले सोचना चाहिए। सुनील ने यह भी इच्छा जताई कि वह नयी शुरुआत करेंगे और समाज को साबित करेंगे कि वह बदल चुके है।

यह मामला भारतीय फॉरेंसिक विज्ञान में एक मील का पत्थर बन गया और इसे कानून और अपराध जांच की पढ़ाई में नियमित रूप से पढ़ाया जाता है, क्योंकि इसने दिखाया कि कैसे जानबूझकर नष्ट किए गए सबूतों को सफलतापूर्वक पुनः प्राप्त किया जा सकता है। यह बताता है कि अपराध छिपाने के लिए कोई कितनी दूर जा सकता है और इसका समाज पर क्या असर पड़ता है।

इस घटना ने देश को वर्षों तक डराया और महिलाओं के अधिकारों तथा घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून को लेकर सवाल खड़े किए। इसने घर के अंदर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चर्चा छेड़ी। (Rh/BA)

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