Hamida Banu : गूगल ने 4 मई को भारतीय पहलवान हमीदा बानो की याद में एक डूडल जारी किया, जिन्हें व्यापक रूप से भारत की पहली पेशेवर महिला पहलवान माना जाता है। दिव्या नेगी द्वारा चित्रित, गूगल डूडल में हमीदा बानू को दर्शाया गया है जो रंगीन वनस्पतियों और जीवों से घिरी हुई है। इसी दिन 1954 में उन्होंने प्रसिद्ध पहलवान बाबा पहलवान को चुनौती दी थी और हराया था।
'अमेज़ॅन ऑफ़ अलीगढ' के नाम से भी मशहूर हमीदा बानो को भारत की पहली महिला पेशेवर पहलवान माना जाता है। हमीदा बानू का जन्म 1900 के दशक की शुरुआत में भारत के अलीगढ़ में पहलवानों के एक परिवार में हुआ था। उस समय कुश्ती सिर्फ पुरुषों तक सीमित थी। महिलाएं तो अखाड़े में उतरने का सोच भी नहीं सकती थीं। लेकिन उस दौर में भी उन्होंने 1940 और 1950 के दशक के अपने करियर के दौरान पुरुष और महिला दोनों पहलवानों के खिलाफ 300 से अधिक प्रतियोगिताएं जीतीं।
उस समय आए दिन अखबारों में हमीदा बानो की हाइट, वेट, डाइट से जुड़ी खबरें छपती थीं। हमीदा बानो का वजन 108 किलो था और उनकी लंबाई 5 फीट 3 इंच थी। उनके एक दिन के खानपान में 5.6 लीटर दूध, 2.8 लीटर सूप, 1.5 लीटर फ्रूट जूस, करीब 1 किलो मटन, बादाम, आधा किलो घी और दो प्लेट बिरयानी शामिल थी।
उस दौर में एक महिला पहलवान को अखाड़े में पुरुष पहलवान को हराते देख लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। इसलिए कई मौकों पर हमीदा बानो को विरोध का सामना करना पड़ा। पुणे में हमीदा और रामचंद्र सालुंके के बीच मुकाबला होना था, लेकिन रेसलिंग फेडरेशन अड़ गया और मुकाबला कैंसिल करना पड़ा। ऐसे ही एक और मौके पर हमीदा बानो ने जब पुरुष पहलवान को धूल चटाई तो लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी और पुलिस किसी तरह उन्हें सुरक्षित निकालकर ले गई।
हमीदा ने कोच सलाम पहलवान से शादी कर ली। उनके पति को हमीदा के यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने वाला आइडिया पसंद नहीं आया। दोनों ने फिर मुंबई के नजदीक कल्याण में डेरी बिज़नेस डाला। लेकिन हमीदा ने यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने की जिद नहीं छोड़ी। बीबीसी ने हमीदा बानो के पोते फिरोज शेख के हवाले से लिखा है कि सलाम पहलवान ने हमीदा बानो की इतनी पिटाई की कि उनका हाथ टूट गया और पैर में भी गंभीर चोट आई। इसके बाद कई सालों तक वह लाठी के सहारे चलती रहीं।
कुछ साल बाद सलाम पहलवान अलीगढ़ लौट आए और हमीदा बानो कल्याण में ही रहीं और अपना दूध का व्यवसाय करती रहीं। इसके बाद के दिनों में उन्होंने सड़क किनारे खाने का सामान भी बेचा और साल 1986 में उनकी गुमनामी में मौत हो गई।