जय जवान जय किसान का नारा देने वाले और भारत के लोगों को एकजुट करने वाले भारत के महान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का सपना हमेशा से भारत और वहां के लोगों की तरक्की का ही होता था। यह बड़ी दुख की बात है की लाल बहादुर शास्त्री की जन्म तिथि यानी 2 अक्टूबर को हमारे भारत के लोग भूल चुके हैं। लेकिन आज हम आपको लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में कुछ ऐसी रोचक तथ्य बताएंगे उनसे जुड़ी कुछ ऐसी कहानी बताएंगे कि जिसे सुनकर आप उन्हें भुला नहीं पाएंगे।
गांव में पैदा हुए नंगे पांव स्कूल गए इस छोटे से बालक पर महात्मा गांधी के प्रभावों का गहरा असर था। गांधी जी से प्रेरणा लेकर इन्होंने 16 वर्ष की आयु में ही अपनी पढ़ाई लिखाई को त्याग दिया और आजादी के आंदोलन में कूद गए। काशी विद्यापीठ वाराणसी से इन्होंने अपनी ग की डिग्री प्राप्त की और वह शास्त्री कहलाए। लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था तथा उनका निधन 11 जनवरी 1966 को सोवियत रूस के प्रमुख शहर ताशकंद में हुआ था। यह जगह अब उज़्बेकिस्तान की राजधानी है।
साल 1965 जब भारत पाकिस्तान आमने-सामने युद्ध लड़ रहे थे तथा अमेरिका इस युद्ध को रोकने के लिए भारत पर दबाव बना रहा था उसे वक्त अमेरिका ने धमकी दे दी थी कि अगर भारत में युद्ध नहीं रोका तो गेहूं की आपूर्ति रोक दी जाएगी। उसे समय यह बहुत महत्वपूर्ण बात थी क्योंकि भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था गेहूं की आपूर्ति को रोकना देश में खाद्य संकट को पैदा कर सकता था लेकिन फिर भी भारत अमेरिका के धमकियों से नहीं डरा और लाल बहादुर शास्त्री ने यह निर्णय लिया की हफ्ते में यदि एक दिन भोजन न बने और यदि उपवास किया जाए तो इस संकट से बचा जा सकता है। प्रधानमंत्री की महानता ऐसी थी कि उन्होंने इस निर्णय की शुरुआत अपने घर से की और फिर देशवासियों को उपवास करने के लिए आह्वान किया और कहा की सप्ताह में एक वक्त उपवास करें क्योंकि देश के लिए जरूरी है और समय की मांग भी।
1963 में शास्त्री जी गृहमंत्री थे उनके समक्ष कुछ ऐसी समस्या आ गई थी कि उन्हें अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा उसे वक्त संसद को ₹500 महीना मिलता था। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने एक कार्यक्रम में बोलते हुए इस किस्से को बयां किया कि इस्तीफा देने के बाद शास्त्री जी के लिए अपने घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा था। कुलदीप नैयर जब शास्त्री जी से मिलने उनके घर गए तो उन्होंने शास्त्री जी को अखबार में कॉलम लिखने का निमंत्रण दिया और इस प्रकार हर एक कलम पर उन्हें ₹500 मिला करते थे इस तरह उन्होंने अखबारों में काम कर अपने घर का खर्चा चलाया।
यह उन दिनों की बात है जब भारत कुछ खास डेवलप्ड नहीं था और निरंतर अपने देश की तरक्की के लिए सभी नेता निरंतर प्रयास कर रहे थे। अमेरिका से दोस्ती रूस से दोस्ती हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण हुआ करती थीं। इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति और उनके राजदूत ने शास्त्र जी को अमेरिका आने का निमंत्रण दिया था। जब तक शास्त्री जी इस पर फैसला लेते अमेरिका ने अपना निमंत्रण वापस ले लिया। यह बात शास्त्री जी को बहुत खराब लगी। अमेरिकी राष्ट्रपति उस समय पाकिस्तान की फील्ड मार्शल अयूब के दबाव में आ गए वह नहीं चाहते थे कि शास्त्र इस मौके पर उनसे मिले। जब भारत पाकिस्तान नई राह पर चल रहे हैं। पर शास्त्र जी ने इसे बुरा मान लिया ।कुछ दिन बाद शास्त्री जी कनाडा जा रहे थे तब जॉनसन ने उन्हें वापस वाशिंगटन रुकने के लिए कहा जिसे भारतीय प्रधानमंत्री ने इनकार कर दिया था।