अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर पढ़ें उनके रोचक भाषण

1996 में अटल बिहारी वाजपेयी जे ने कहा था, 'मैं राजनीति छोड़ना चाहता हूं, लेकिन राजनीति मुझे छोड़ना नहीं चाहती।'
अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर पढ़ें उनके रोचक भाषण
अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर पढ़ें उनके रोचक भाषण अटल बिहारी वाजपेयी (Wikimedia Commons)
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आज 16 अगस्त 2022 को देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की चौथी पुण्यतिथि है। 25 दिसम्बर, 1924 को जन्मे इस अद्भुत व्यक्तित्व के नाम की चर्चा इतिहास के पन्नों में भारत के प्रखर प्रधामन्त्रियों की सूची में की जाती है। कुशल वाणी के धनी श्री अटल बिहारी जी अपने भाषके लिए सदा ही चर्चा में रहे। आज भी उनके दिए गए भाषण सुनने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आज हम उनकी पुण्यतिथि पर उनके कुछ भाषणों के अंश पढ़ेंगे।

अपनी बातों को बेबाक अंदाज में रखने वाले अटल बिहारी जी का वो भाषण आज भी लोग याद करते हैं, जो उन्होंने सरकार गिरते वक्त दिया था। दरअसल 1996 में वाजपेयीजी की सरकार एक वोट के कारण गिर गई थी। 13 दिन में यह सरकार गिर गई, इसपर अटल बिहारी जी ने दिल को छू जाने वाला भाषण दिया था। अटल जी ने कहा था, ‘मुझ पर आरोप लगाया है और ये आरोप मेरे हृदय में घाव कर गया है। ये आरोप है कि मुझे सत्ता का लोभ हो गया है. मैंने पिछले 10 दिन में जो भी किया है वो सत्ता के लोभ के लिए किया है। मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य रहा हूं, लोगों ने मेरा व्यवहार देखा है। जनता दल के सदस्यों के साथ सरकार में रहा हूं। कभी हमने सत्ता का लोभ नहीं किया और गलत काम नहीं किया है।’

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'अटल बिहारी वाजपेयी' के बायोपिक पर काम शुरू

आगे अटल जी ने कहा, 'पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करता। भगवान राम ने कहा था कि मैं मौत से नहीं बदनामी से डरता हूं। जब मैं राजनीति में आया तो मैंने नहीं सोचा था कि मैं राजनीति में आउंगा और इस तरह की राजनीति मुझे रास नहीं आती। मैं राजनीति छोड़ना चाहता हूं, लेकिन राजनीति मुझे छोड़ना नहीं चाहती।’ अटल जी फिर आगे कहते हैं, 'हम संख्याबल के आगे सिर झुकाते हैं और आपको विश्वास दिलाते हैं और जो कार्य हाथ में लिया है वो ना करने तक शांत नहीं बैठेंगे और अपना त्याग पत्र राष्ट्रपति महोदय को देने जा रहा हूं।'

इसके अतिरिक्त इनके और भी कई भाषण चर्चा में हमेशा रहे। जैसे कि जब वो 1957 में पहली बार सांसद बने, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी ने जनसंघ की आलोचना किये थे। इसके प्रतिउत्तर में अटल जी ने कहा था, 'मैं जानता हूँ कि पण्डितजी रोज शीर्षासन करते हैं। वह शीर्षासन करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उलटी न देखें।' इस बात पर संसद के लोग और नेहरू जी भी ठहाके लगाकर हँसने लगे।

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