जेपी नारायण के 'लोकनायक' बनने की कहानी

JP Narayan ने 1970 के दशक में छात्रों को प्रेरित किया और बिहार में सामाजिक न्याय के लिए आंदोलन चलाया।
JP Narayan का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था।
JP Narayan का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था। JP Narayan (Wikimedia Commons)

भारत के इतिहास के पन्नों में ऐसे कई आंदोलन हैं जो उसको शुरू करने वाले अथवा चलाने वाले के नाम पर पड़ा। जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) के आंदोलन का भी कुछ ऐसा ही हाल था। उनके आंदोलन को लोग जेपी आंदोलन के नाम से जानते थे। ऐसा इसके बाद दुबारा अन्ना आंदोलन में देखा गया जब उनके आंदोलन का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ गया। आज युवा छात्रों के लिए जेपी आदर्श हैं, पर इस आदर्श बनने के सफर की कहानी बहुत लंबी है। जैसे महात्मा गांधी के महात्मा बनने की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुई, वैसे ही जयप्रकाश के लोकनायक बनने की नींव अमेरिका में पड़ गई थी।

11 अक्टूबर, 1902 में जन्मे जयप्रकाश नारायण का बचपन कई संघर्षों से घिरा हुआ था। 18 वर्षीय जेपी नारायण (JP Narayan) की शादी 1920 में 14 वर्षीया प्रभादेवी से हुआ। विवाह के दो साल बाद ही उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने का फैसला किया। अमेरिका जाकर उन्होंने बर्केले में दाखिला ले लिया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ जेपी नारायण
पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ जेपी नारायण Wikimedia Commons

अपने जीवन में उन्होंने अपना खर्च चलाने के लिए कई तरह के काम किए पर इस स्वाभिमानी नायक ने कभी किसी के आगे हाथ फैलाना मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने कैनिंग फैक्ट्री में अंगूर तोड़कर सुखाने से लेकर बर्तन धोने, कसाई खाने में काम, लोशन बेचना, और गैरेज में मिकैनिक का काम करने तक का कार्य किया और इसीके साथ अपनी पढ़ाई जारी भी रखी।

इन कामों को करने के दौरान ही वो कामगारों के बीच होने वाली समस्याओं को और अच्छे से जान पाए। इसी सब के बीच उन्होंने समाजशास्त्र जैसे विषय का भी अध्ययन किया जिसका परिणाम ये निकला कि उनके ऊपर कार्ल मार्क्स का गहरा असर पड़ा। कार्ल मार्क्स की दास कैपिटल पुस्तक को पढ़ने और रूसी क्रांति की सफलता के बारे में जानने के बाद जेपी नारायण का मार्क्सवादी सिद्धांतों पर और गहरा विश्वास बन गया।

JP Narayan का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था।
लोक भागीदारी से परिष्कृत होगा लोकतंत्र: मुनीश रायज़ादा

जब 1929 में जेपी नारायण भारत वापस लौटे तब तक वो पूर्णरूपेण मार्क्सवादी बन चुके थे। शुरुआत में तो वो नितांत मार्क्सवादी थे और इसी कारण से काँग्रेस में रहते हुए भी उनका गाँधी जी के कई बातों से मतभेद रहता था। पर जब तक देश आजाद हुआ और जब जेपी पाँच साल के लिए रेलवे कर्मचारियों के संगठन के अध्यक्ष बने तब तक तो वो मार्क्सवादी सिद्धांत से गाँधीवादी विचारधारा की तरफ मुड़ चुके थे। यही कारण था कि वो अब सामाजिक न्याय और सर्वोदय के लिए संघर्ष करना शुरू कर चुके थे। इसका परिणाम 1970 के दशक में देखने को मिला जब उन्होंने छात्रों को प्रेरित किया और बिहार में सामाजिक न्याय के लिए आंदोलन चलाया। इसके बाद इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ भी जेपी आंदोलन का सबसे प्रमुख चेहरा बने। 8 अक्टूबर 1979 को मधुमेह और दिल की बीमारी से ग्रसित जयप्रकाश सदा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए।

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com