Tulsidas Jayanti: रामायण जैसे महाकाव्य को जनमानस के पटल तक पहुंचाने वाले गोस्वामी तुलसीदास की आज जयंती है। उनके जन्म से संबंधित यह छंद काफी प्रचलित है।
पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर।।
संवत् 1554 में यमुना नदी के किनारे श्रावण शुक्ल की सप्तमी पर गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas Ji) का जन्म हुआ था। अतः आज श्रावण मास की सप्तमी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास जी की 523वीं जयंती मनाई जा रही है। विश्व में श्रेष्ठतम कवियों में गिने जाने वाले गोस्वामी तुलसीदासजी राम भक्ति शाखा के कवि हैं। श्री राम की भक्ति में लीन रहने वाले इस कवि ने श्री रामचरितमानस सहित 12 महान ग्रंथों की रचना की है।
किंवदंतियों के अनुसार कहा जाता है कि तुलसीदास जी भगवान राम और हनुमान जी से मिले थे। कहा जाता है कि हनुमान जी ने ही तुलसीदास जी को रामचारित्रमानस लिखने कि प्रेरणा और मदद की थी। इस महान रचयिता के बारे में बताया जाता है कि इनके जन्म के समय इनके मुख में दांत थे और ये राम-राम कहते हुए पैदा हुए थे। अतः इनका नाम रामबोला पड़ा। पिता आत्मा राम दुबे तथा माता हुलसी के इस अलौकिक संतान को लोगों ने जन्म के समय से ही दुर्भाग्यशाली घोषित कर दिया था। इनकी माता का प्रसव के बाद मृत्यु हो गई, और इसके बाद उनके पिता ने भी उन्हें त्याग दिया था। कहा जाता है 'सौभाग्य न सब दिन सोता है'। ठीक वैसे ही, किसी को पता नहीं था कि यही दुर्भाग्यशाली बालक आगे चलकर एक महान रचनाकार बन जाएगा, जिसकी रचना लोकप्रियता के शिखर को प्राप्त करेगी।
कहा जाता है कि तुलसीदास को रामभक्ति में डूब जाने की प्रेरणा उनकी पत्नी रत्नावती से मिली थी। यह प्रसंग तब का है जब तुलसीदास जी कि नई-नई शादी हुई थी। वो अपने पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। उनके मोह में वो एक पल भी अपने पत्नी से अलग नहीं रह सकते थे। एक बार उनकी पत्नी अपने मायके गईं। तुलसीदास उनका विरह एक दिन भी नहीं सह पाए और वो रात को ही अपने ससुराल के लिए निकल पड़े। आंधी तूफान का सामना करते हुए वो वहाँ पहुंचे। अपनी पत्नी के आसक्ति में वो इतने ज्यादा डूबे हुए थे कि उन्हें इसका भी ज्ञान नहीं था कि, नदी में वो लाश को लकड़ी का तख्त समझ कर उसके सहारे पार किए। यहाँ तक कि उनकी पत्नी के कमरे से सांप लटक रहा था, उसे वो रस्सी समझकर उसीके सहारे ऊपर चढ़ गए। उनकी पत्नी ने जब ये घटना देखी तो क्रुद्ध होकर ताना मारते हुए कहीं 'अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।' अर्थात इस हाड़-मांस के देह से इतना प्रेम, अगर इतना प्रेम राम से होता तो जीवन सुधर जाता। पत्नी की ये बात तुलसीदास के दिल को छू गई और यहीं से उनके संत शिरोमणि बनने की यात्रा प्रारंभ हो गई।
इनकी प्रमुख रचनाओं में श्रीरामचरितमानस के अलावा पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामलला नहछू, कवितावली, दोहावली, बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्नावली, हनुमान बाहुक, गीतावाली, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, इत्यादि हैं।