दलाई लामा की कहानी : निर्वासन से वैश्विक मंच तक शांति और संघर्ष की गूंज

14वें दलाई लामा (Dalai Lama) तेनजिन ग्यात्सो तिब्बत के आध्यात्मिक नेता हैं, जो 1959 में चीनी दमन के बाद भारत आकर निर्वासन में रह रहे हैं। उन्होंने अहिंसा और शांति का मार्ग अपनाया, और तिब्बत की संस्कृति को बचाए रखने के लिए जीवन भर संघर्ष किया।
आज दलाई लामा न केवल तिब्बतियों के धार्मिक नेता हैं, बल्कि दुनिया भर में शांति, सह-अस्तित्व और करुणा के प्रतीक बन चुके हैं। उन्होंने विज्ञान, तर्क, ध्यान और शिक्षा के क्षेत्र में भी संवाद को बढ़ावा दिया है। (Sora AI)
आज दलाई लामा न केवल तिब्बतियों के धार्मिक नेता हैं, बल्कि दुनिया भर में शांति, सह-अस्तित्व और करुणा के प्रतीक बन चुके हैं। उन्होंने विज्ञान, तर्क, ध्यान और शिक्षा के क्षेत्र में भी संवाद को बढ़ावा दिया है। (Sora AI)
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दलाई लामा कौन हैं ?

दलाई लामा (Dalai Lama) तिब्बत के बौद्धों के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं। वर्तमान दलाई लामा, जिन्हें तेनजिन ग्यात्सो कहा जाता है, 14वें अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म 6 जुलाई 1935 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था और बचपन में उनका नाम ल्हामो धोंडुब था। महज 2 साल की उम्र में, बौद्ध भिक्षुओं ने उन्हें तिब्बत के पिछले दलाई लामाओं का पुनर्जन्म माना और 4 साल की उम्र में उन्हें धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए तैयार किया गया। उन्होंने मठों में गहन बौद्ध शिक्षा प्राप्त की और आगे चलकर बौद्ध दर्शन में गेशे ल्हारम्पा (डॉक्टरेट) की उपाधि भी प्राप्त की। 1950 में, जब दलाई लामा सिर्फ 15 साल के थे, उस समय चीन की कम्युनिस्ट सरकार की सेनाएं तिब्बत में घुस आईं। यह वह समय था जब तिब्बत एक स्वतंत्र राज्य के रूप में कार्य कर रहा था, लेकिन चीन उसे अपने हिस्से के रूप में देखता था।

दलाई लामा ने तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए हिंसा का रास्ता कभी नहीं अपनाया।   (Sora AI)
दलाई लामा ने तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए हिंसा का रास्ता कभी नहीं अपनाया। (Sora AI)

17 सूत्रीय समझौता और तिब्बत का नियंत्रण

1951 में चीन और तिब्बत के बीच एक 17 सूत्री समझौता हुआ, जिसमें तिब्बत को "स्वायत्त क्षेत्र" मानते हुए उसे चीन में मिला दिया गया। यह समझौता चीन की सैन्य शक्ति के दबाव में हुआ, जिससे तिब्बत की स्वायत्तता धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। 10 मार्च 1959 को ल्हासा (तिब्बत की राजधानी) में चीनी दमन के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह हुआ। हज़ारों तिब्बती नागरिक दलाई लामा की रक्षा के लिए उनके महल के बाहर इकट्ठा हो गए क्योंकि उन्हें डर था कि चीन उन्हें अगवा कर सकता है। चीन ने इस विद्रोह को अमानवीयता से कुचला, जिसमें हज़ारों तिब्बती मारे गए। इसी दौरान, दलाई लामा (Dalai Lama) छुपते-छुपाते सैनिक भेष में भारत की ओर भागे और 15 दिन की कठिन यात्रा के बाद भारत पहुंचे। उसके बाद भारत सरकार ने दलाई लामा को शरण दी और उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला को निर्वासित तिब्बती सरकार का मुख्यालय बना लिया। उनके साथ लगभग 80,000 तिब्बती शरणार्थी भी भारत आए। यह धर्मशाला अब "लिटिल तिब्बत" के नाम से जाना जाता है।

दलाई लामा (Dalai Lama) ने तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए हिंसा का रास्ता कभी नहीं अपनाया। उन्होंने हमेशा "मध्य मार्ग" की वकालत की, यानी तिब्बत को चीन से अलग न किया जाए, लेकिन उसे वास्तविक स्वशासन स्वायत्तता (Autonomy) मिलना चाहिए। उन्होंने दुनिया भर के नेताओं से अपील की, संयुक्त राष्ट्र में तिब्बती मुद्दा उठाया, और 1987 में पांच सूत्री शांति योजना भी पेश की।

दलाई लामा तिब्बत के बौद्धों के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं।   (Sora AI)
दलाई लामा तिब्बत के बौद्धों के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं। (Sora AI)

नोबेल शांति पुरस्कार और अंतरराष्ट्रीय पहचान

1989 में, उनकी अहिंसावादी नीतियों और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया। इस पुरस्कार ने उन्हें एक वैश्विक शांति-दूत बना दिया। आपको बता दें वो पोप जॉन पॉल द्वितीय, आर्कबिशप डेसमंड टूटू, और कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों से मिले। हॉलीवुड सितारे जैसे रिचर्ड गेरे और लेडी गागा भी उनके समर्थक हैं। हालांकि दलाई लामा को दुनियाभर में सराहा गया, कुछ तिब्बती युवाओं को उनके शांतिपूर्ण दृष्टिकोण से निराशा भी हुई। उनका मानना है कि दलाई लामा चीन के सामने बहुत नरम रवैया अपनाते हैं। साल 2023 में एक वीडियो विवाद में वो चर्चा में आए, जिसमें वो एक बच्चे को "जीभ चूसने" की बात करते दिखे। इसके लिए दलाई लामा ने माफी मांगी और कहा गया कि यह एक मज़ाकिया अंदाज़ में कही गई बात थी।

तिब्बती परंपरा के अनुसार, दलाई लामा (Dalai Lama) का पुनर्जन्म होता है। लेकिन दलाई लामा ने 2011 में राजनीति से संन्यास लेकर निर्वासित तिब्बती सरकार को लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार में बदल दिया। वृद्धावस्था (अब 90 वर्ष की उम्र के करीब) के कारण उत्तराधिकार का मुद्दा गर्माया। दलाई लामा ने कभी कहा था कि उनका पुनर्जन्म चीन के बाहर "स्वतंत्र देश" में होगा।

चीन मानता है कि भविष्य के दलाई लामा (Dalai Lama) की पहचान सरकार द्वारा ही तय होगी। जबकि दलाई लामा ने स्पष्ट कहा कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान केवल उनका आधिकारिक कार्यालय ही करेगा, न कि चीनी सरकार। यह चीन की नीति के लिए एक कड़ा जवाब था, जो तिब्बती क्षेत्र पर अपनी वैधता जताने की कोशिश करता है। आज दलाई लामा न केवल तिब्बतियों के धार्मिक नेता हैं, बल्कि दुनिया भर में शांति, सह-अस्तित्व और करुणा के प्रतीक बन चुके हैं। उन्होंने विज्ञान, तर्क, ध्यान और शिक्षा के क्षेत्र में भी संवाद को बढ़ावा दिया है।

दलाई लामा की कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि एक संस्कृति, आस्था और जिद की कहानी है। (Sora AI)
दलाई लामा की कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि एक संस्कृति, आस्था और जिद की कहानी है। (Sora AI)

निष्कर्ष

दलाई लामा (Dalai Lama) की कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि एक संस्कृति, आस्था और जिद की कहानी है। उन्होंने हथियार नहीं उठाए, बल्कि करुणा और शांति के माध्यम से एक खोई हुई मातृभूमि की पुकार को दुनिया तक पहुँचाया। आज, 90 वर्ष की उम्र में भी वे भविष्य को लेकर स्पष्ट हैं, उनका पुनर्जन्म होगा, उनकी संस्था जारी रहेगी, और तिब्बत की आवाज़ कभी नहीं रुकेगी। वह भले ही निर्वासन में हों, लेकिन उनका विचार और संदेश पूरी दुनिया में आज भी जीवित और प्रभावशाली है। [Rh/PS]

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