गुब्बारे बेचने वाले ने खड़ी कर दी देश की सबसे बड़ी टायर कंपनी, जानें पूरा सफ़र

केरल के एक ईसाई परिवार में जन्मे के. एम मैमन मापिल्लई ने देश की आजादी से एक साल पहले यानी 1946 में चेन्नई में गुब्बारे बनाने की एक छोटी यूनिट लगाई।
Success Story : एमआरएफ देश में टायर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है और दुनिया की टॉप 20 टायर कंपनियों में शामिल है। (Wikimedia Commons)
Success Story : एमआरएफ देश में टायर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है और दुनिया की टॉप 20 टायर कंपनियों में शामिल है। (Wikimedia Commons)

Success Story : पहली बार देश के किसी शेयर की कीमत इस स्तर पर पहुंची है। हालांकि बाद में यह 1.11 परसेंट की गिरावट के 134969.45 रुपये पर बंद हुआ। पिछले साल जून में इसकी कीमत एक लाख रुपये पहुंची थी और यह मुकाम हासिल करने वाला यह देश का पहला शेयर था। एमआरएफ देश में टायर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है और दुनिया की टॉप 20 टायर कंपनियों में शामिल है। यह कम्पनी दरहसल दोपहिया वाहनों से लेकर फाइटर विमानों के लिए टायर बनाती है। आज भले ही इसकी पहचान आज टायर बनाने वाली कंपनी के तौर पर है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कभी यह बच्चों के लिए गुब्बारे बनाया करती थी। इसका पूरा नाम मद्रास रबर फैक्ट्री है। आज इसका मार्केट कैप 57,242.47 करोड़ रुपये है।

विदेशी कंपनी को देख कर आया ख्याल

केरल के एक ईसाई परिवार में जन्मे के. एम मैमन मापिल्लई ने देश की आजादी से एक साल पहले यानी 1946 में चेन्नई में गुब्बारे बनाने की एक छोटी यूनिट लगाई। साल 1952 उनके लिए एक नया मोड़ लेकर आया। उन्होंने देखा कि एक विदेशी कंपनी टायर रिट्रेडिंग प्लांट को ट्रेड रबर की सप्लाई कर रही थी। रिट्रेडिंग पुराने टायरों को दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाने को कहते हैं और ट्रेड रबर टायर का ऊपरी हिस्सा होता है जो जमीन के साथ संपर्क बनाती है। मापिल्लई ने सोचा कि हमार देश में ही ट्रेड रबर बनाने के लिए फैक्ट्री क्यों नहीं लगाई जा सकती तभी से इनका सफ़र शुरू होगया।

के . एम मैमन मापिल्लई ने देश की आजादी से एक साल पहले यानी 1946 में चेन्नई में गुब्बारे बनाने की एक छोटी यूनिट लगाई। (Wikimedia Commons)
के . एम मैमन मापिल्लई ने देश की आजादी से एक साल पहले यानी 1946 में चेन्नई में गुब्बारे बनाने की एक छोटी यूनिट लगाई। (Wikimedia Commons)

विदेशी कंपनियां हो गई फेल

मापिल्लई को यह एक अच्छा मौका लगा। उन्होंने गुब्बारे के बिजनस से कमाई सारी दौलत ट्रेड रबर बनाने के बिजनस में लगा दी। इस तरह मद्रास रबर फैक्ट्री यानी एमआरएफ का जन्म हुआ। यह ट्रेड रबर बनाने वाली भारत की पहली कंपनी थी इसलिए मापिल्लई का टक्कर विदेशी कंपनियों से था। कुछ ही समय में उनका बिजनस चलने लगा। चार साल में ही कंपनी ने अपनी हाई क्वालि के चलते 50% बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली हालत यह थी कि कई विदेशी मैन्यूफैक्चरर देश छोड़कर चले गए।

इसके बाद कंपनी अब टायर मार्केट में उतरना चाहती थी। उन्होंने अमेरिका की मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी से तकनीकी सहयोग लिया और टायर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट स्थापित कर दी। साल 1961 में एमआरएफ की फैक्ट्री से पहला टायर बनकर निकला था। उसी साल कंपनी मद्रास स्टॉक एक्सचेंज में अपना आईपीओ लेकर आई थी। उस समय इंडियन टायर मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर डनलप, फायरस्टोन और गुडइयर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा था। एमआरएफ ने भारत की सड़कों के अनुरूप टायर बनाना शुरू किया। एमआरएफ एक अच्छी मार्केटिंग से कंपनी टायर मार्केट में छा गई।

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