ये पक्षी गीली मिट्टी से बनाते है ऐसा घोंसला देखने वाले रह जाते है दंग

पक्षियों की चोंच से निर्मित इन घोसलों का सौंदर्य इतना सुंदर है कि लोग उसकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकते। गरदन के नीचे सफेद और सिर के ऊपर गहरे केसरी रंग वाले अबाबील पक्षी का मूल रंग काला होता है।
Swallow Bird : ये पक्षी ज्यादा झुंडों में रहना पसंद करती है और विशेष कर अपने प्रजननकाल के लिए इन घोंसलों का निर्माण करती है। (Wikimedia Commons)
Swallow Bird : ये पक्षी ज्यादा झुंडों में रहना पसंद करती है और विशेष कर अपने प्रजननकाल के लिए इन घोंसलों का निर्माण करती है। (Wikimedia Commons)

Swallow Bird : बागीदौरा कस्बे के एक मकान पर निर्मित अबाबील पक्षियों का घर लोगों का आकर्षण का केंद्र बन गई है। मिट्टी की लोद से निर्मित यह घर उनका निवास स्थल हैं, जिसे अबाबील पक्षियों ने अपने नन्हें-नन्हें चोंच की मदद तैयार किया जाता है। मिट्टी की लोदों से निर्मित अबाबील पक्षियों के घोंसलों की संख्या यहां सैकड़ों में हैं।

पक्षियों की चोंच से निर्मित इन घोसलों का सौंदर्य इतना सुंदर है कि लोग उसकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकते। गरदन के नीचे सफेद और सिर के ऊपर गहरे केसरी रंग वाले अबाबील पक्षी का मूल रंग काला होता है। ये पक्षी ज्यादा झुंडों में रहना पसंद करती है और विशेष कर अपने प्रजननकाल के लिए इन घोंसलों का निर्माण करती है।

कैसे बनाती है ये अपना घोंसला?

ये पक्षी गीली मिट्टी, कपास और मुंह की लार से घोंसला बनाते हैं। इनके हौसले की मजबूती का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि जिस दीवार पर ये घोसला बनाते हैं, उसका प्लास्टर भले उखड़ जाता है लेकिन घोसले को नुकसान नहीं पहुंचता। यह पक्षी भारत भ्रमण पर 9 महीने के लिए निकलते हैं।

 मिट्टी की लोदों से निर्मित अबाबील पक्षियों के घोंसलों की संख्या यहां सैकड़ों में हैं। (Wikimedia Commons)
मिट्टी की लोदों से निर्मित अबाबील पक्षियों के घोंसलों की संख्या यहां सैकड़ों में हैं। (Wikimedia Commons)

ताप्ती नदी के पुल पर है इनका बसेरा

इन दिनों इन्होंने बुरहानपुर में ताप्ती नदी के छोटे पुल पर बसेरा किया हुआ है। ताप्ती नदी पर बने अंग्रेजों के जमाने के पुल के नीचे इन दिनों ये हजारों की संख्या में वहा अपना गुजारा कर रहे हैं। हर साल सितंबर महीने में ये पक्षी आते हैं और मई माह में चले जाते हैं। इनको देखने के लिए यहां बड़ी भीड़ जुटी रहती है।

50 किलोमीटर प्रति घंटा का है रफ़्तार

इतिहासकार कमरुद्दीन फलक ने इनके बारे में बताया कि ये साउथ अफ्रीका और यूरोप का हैं, जो 9 महीने भारत भ्रमण पर आता है। ये पक्षी घास और तिनके से घोंसला बनाते हैं। इनकी उड़ान की बात करे तो यह 1 घंटे में करीब 50 किलोमीटर प्रति घंटे की उड़ान से उड़ता है। रोजाना ये 300 से 400 किलोमीटर का सफर तय करती है।

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