![गाज़ा (Gaza) इस समय दुनिया में सबसे ज़्यादा ज़ख़्म सहने वाला देश बन चुका है। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-13%2Ftcsufv3g%2Fassetstask01k2hpws5zeyytygcnxxyen0t11755088861img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
गाज़ा (Gaza) इस समय दुनिया में सबसे ज़्यादा ज़ख़्म सहने वाला देश बन चुका है। रोज़ाना होने वाले हमलों ने यहाँ की ज़िंदगी को मौत (People are dying in Gaza) के साये में धकेल दिया है। हालात इतने भयावह हैं कि अब मारे गए लोगों को ओढ़ाने के लिए कफ़न तक नहीं बचा। कई पीड़ितों को कंबलों या चादरों में लपेटकर मिट्टी में सुलाया जा रहा है। चारों ओर टूटे मकान, बिखरे परिवार और मातम का सन्नाटा है। अस्पताल घायलों से भर चुके हैं, कब्रिस्तान लाशों से। गाज़ा के लोग अब सिर्फ़ जीने नहीं, बल्कि इज़्ज़त से मरने की भी जंग लड़ रहे हैं।
एक जंग और तबाह हुआ गाज़ा
गाज़ा (Gaza) की यह दर्दनाक हालत सालों से जारी संघर्ष और हालिया तेज़ हमलों का नतीजा है। इज़रायल और हमास (Israel and Hamas) के बीच बढ़ते तनाव ने यहाँ की ज़िंदगी को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। लगातार हो रहे हवाई हमलों ने घर, स्कूल, अस्पताल तक मिट्टी में मिला दिए हैं। ज़रूरी सामान, दवाइयाँ और खाने-पीने की चीज़ें खत्म होने की कगार पर हैं। बिजली और पानी की कमी ने हालात को और भी गंभीर बना दिया है।
सबसे दुखद यह है कि मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि कब्रिस्तान भर चुके हैं और कफ़न तक की कमी हो गई है। ऐसे में लोग अपने प्रियजनों को कंबलों और चादरों में लपेटकर दफ़ना रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मदद की कोशिशें जारी हैं, लेकिन लगातार जारी बमबारी और नाकेबंदी की वजह से राहत पहुँचाना भी बेहद मुश्किल हो गया है। गाज़ा आज मानवीय त्रासदी का सबसे डरावना चेहरा बन चुका है।
गाज़ा: आंकड़ों में मानवीय त्रासदी
गाज़ा (Gaza) इस समय दुनिया की सबसे भयावह मानवीय संकटों में से एक झेल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट (United Nation's Report) के अनुसार, हालिया संघर्ष में 30,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं शामिल हैं। करीब 75% आबादी यानी 20 लाख से अधिक लोग अपने घरों से बेघर हो गए हैं। अस्पतालों में मरीजों का इलाज करना मुश्किल हो गया है क्योंकि दवाइयाँ और उपकरण खत्म हो चुके हैं।
बिजली आपूर्ति का 90% हिस्सा ठप है और पीने के पानी की भारी कमी है। बमबारी और नाकेबंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय मदद गाज़ा (Gaza) तक पहुँचने में अटक रही है। कब्रिस्तान भर चुके हैं और कफ़न की कमी के चलते लोगों को कंबलों में लपेटकर दफ़नाना पड़ रहा है। यह सब मिलकर गाज़ा को एक ऐसे ज़ख्म में बदल रहा है जो शायद पीढ़ियों तक भर नहीं पाएगा।
गाज़ा में कफ़न की कमी का दर्दनाक सच
गाज़ा में हालात इतने भयावह हो चुके हैं कि अब मृतकों को सम्मानपूर्वक दफ़नाने के लिए कफ़न भी कम पड़ने लगे हैं। लगातार हो रही बमबारी में हर दिन सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं। इस तेज़ी से बढ़ती मौतों के कारण कब्रिस्तान भर चुके हैं और कफ़न का स्टॉक भी खत्म हो गया है। नाकेबंदी और युद्ध की वजह से बाहर से कपड़ा या तैयार कफ़न लाना लगभग असंभव हो गया है।
स्थानीय दर्ज़ी और मददगार संगठन भी मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं। मजबूरन, परिजन और राहतकर्मी मृतकों को कफ़न की जगह पुराने कपड़ों, चादरों या कंबलों में लपेटकर दफ़ना रहे हैं। यह दृश्य न सिर्फ़ दिल को झकझोर देने वाला है, बल्कि युद्ध में मानवीय संवेदनाओं के पूरी तरह टूट जाने की दर्दनाक तस्वीर भी पेश करता है।
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गाज़ा में भूख से मौत का सिलसिला जारी
गाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले 24 घंटों में भूख से पाँच और लोगों की जान चली गई। युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक कुल 180 लोग भूख के कारण मौत का शिकार हो चुके हैं, जिनमें 93 मासूम बच्चे भी शामिल हैं।इन मौतों में लगभग आधी संख्या बच्चों की है। भोजन की कमी और लगातार जारी हिंसा ने गाज़ा में बच्चों की ज़िंदगी को सबसे ज्यादा खतरे में डाल दिया है।
संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र ने साफ कहा है कि सिर्फ़ खाने की एयरड्रॉप से लोगों की ज़रूरत पूरी नहीं हो सकती। ज़मीन के रास्ते से तुरंत अधिक मात्रा में राहत और भोजन पहुँचाना बेहद ज़रूरी है, ताकि गाज़ा में भुखमरी की यह भयावह स्थिति और न बढ़े।
गाज़ा आज सिर्फ़ एक युद्ध का मैदान नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं के टूटने की सबसे बड़ी मिसाल बन चुका है। कफ़न की कमी, भूख से होती मौतें और टूटे सपने, यह सब दुनिया से तुरंत, ठोस और मानवीय हस्तक्षेप की माँग करते हैं, ताकि ये दर्दनाक सिलसिला रुक सके। [Rh/SP]