भारत में तेजी से सूख रही है नदियां, जल संकट से गुजरना पड़ सकता है पूरे भारत को

बर्फ से ढंके हिमालय से निकलने वाली नदियों- गंगा-यमुना के जल-विस्तार क्षेत्र में सूखा अधिक बढ़ता जा रहा है। नदियों के सूखने के कारण सरकार भी चिंतित है क्योंकि गंगा बेसिन के 11 राज्यों के लगभग 2,86,000 गांवों में पानी की उपलब्धता धीरे-धीरे घट रही है।
Water Crisis: नदियों में जल भरने लायक बरसात होने में अभी भी कम से कम सौ दिन का इंतज़ार करना होगा।(Wikimedia Commons)
Water Crisis: नदियों में जल भरने लायक बरसात होने में अभी भी कम से कम सौ दिन का इंतज़ार करना होगा।(Wikimedia Commons)
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Water Crisis : आज जो हालात बेंगलुरू का है वो हालात एक दिन पूरे भारत का हो सकता है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि केंद्रीय जल आयोग की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के विश्लेषण के बाद पता चला कि हमारी नदियां तेजी से सूख रही हैं। नदियों में जल भरने लायक बरसात होने में अभी भी कम से कम सौ दिन का इंतज़ार करना होगा। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि बर्फ से ढंके हिमालय से निकलने वाली नदियों- गंगा-यमुना के जल-विस्तार क्षेत्र में सूखा अधिक बढ़ता जा रहा है। नदियों के सूखने के कारण सरकार भी चिंतित है क्योंकि गंगा बेसिन के 11 राज्यों के लगभग 2,86,000 गांवों में पानी की उपलब्धता धीरे-धीरे घट रही है। इन नदियों में घटता बहाव कोई अचानक नहीं आया है। यह समय के साथ - साथ घट रहा है। लेकिन नदी धार के कम होने का सारा इल्ज़ाम प्रकृति या जलवायु परिवर्तन पर डालना सही नहीं होगा।

जलग्रहण क्षेत्र उस संपूर्ण इलाके को कहा जाता है, जहां से पानी बहकर नदियों में आता है। इसमें हिमखंड, सहायक नदियां, नाले आदि शामिल होते हैं। हमारे देश में कुल 13 बड़े, 45 मध्यम और 55 लघु जलग्रहण क्षेत्र हैं। तीन नदियां गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र हिमालय के हिमखंडों के पिघलने से निकलती हैं। इन सदानीरा नदियों को 'हिमालयी नदी' कहा जाता है। बची हुई नदी को पठारी नदी कहते हैं, जो अधिकांश बरसात पर निर्भर होती हैं।

ये सभी परिस्थितियां नदियों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर रही हैं। (Wikimedia Commons)
ये सभी परिस्थितियां नदियों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर रही हैं। (Wikimedia Commons)

तेजी से सूख रही है नदियां

आंकड़ों के आधार पर हम पानी के मामले में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा समृद्ध हैं, लेकिन पूरे पानी का कोई 85 फीसदी बारिश के तीन महीनों में समुद्र में चला जाता है और नदियां सूखी रह जाती हैं। जब छोटी नदियां थीं, तो इस पानी के बड़े हिस्से को अपने में समेट कर रख लेती थीं। अब बगैर जल के जीवन की कल्पना संभव नहीं है। हमारी नदियों के सामने मूलतः तीन तरह के संकट हैं-पानी की कमी, मिट्टी का आधिक्य और प्रदूषण।

तापमान में हो रही है बढ़ोतरी

धरती के तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण मौसम में बदलाव हो रहा है, जिसके कारण या तो बारिश अनियमित हो रही है या फिर बेहद कम। ये सभी परिस्थितियां नदियों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर रही हैं। सिंचाई व अन्य कार्यों के लिए नदियों के अधिक दोहन, बांध आदि के कारण नदियों के प्राकृतिक स्वरूपों के साथ छेड़छाड़ के चलते भी उनमें पानी कम हो रहा है।

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