![कभी सोचा है कि जब कोई इंसान सत्ता की ऊँचाई पर पहुंचता है, तो वह भगवान बन जाता है या राक्षस? [Wikimedia Commons]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-04%2Fc7lv0rax%2FUntitled-design.jpg?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
कभी सोचा है कि जब कोई इंसान सत्ता की ऊँचाई पर पहुंचता है, तो वह भगवान बन जाता है या राक्षस? इतिहास गवाह है कि दुनिया ने ऐसे कई तानाशाह देखे हैं, जिन्होंने सत्ता की कुर्सी पर बैठते ही खुद को सब कुछ समझ लिया। न कानून की परवाह की और न ही इंसानियत की कद्र, सिर्फ अपना हुक्म, अपना आदेश और अपनी सनक को पूरा करने के चक्कर में केवल लाशों के ढेर और लोगों में डर पैदा किया! तानाशाहों ने ऐसी-ऐसी क्रूरताएं कीं कि इनके देश के लोगों की रूह कांप जाती है। किसी ने लाखों लोगों को गैस चैंबर में झोंक दिया, किसी ने लोगों को भूखा मार दिया, किसी ने अपनी शक की वजह से दोस्तों और परिवार तक को मार डाला। ये वो लोग थे जिन्होंने देश चलाने के नाम पर मौत का खेल रच डाला।हिटलर, मुसोलिनी, जोसेफ स्टालिन, पोल पॉट, किम जोंग-उन जैसे नाम आज भी दुनिया के सबसे खतरनाक तानाशाहों में गिने जाते हैं, जिनकी कहानियां सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि डर की मिसाल बन गई हैं।
आज हम जानेंगे उन तानाशाहों की वो सनक, वो क्रूरता और वो फैसले, जो उन्होंने अपनी सत्ता को बचाने या बढ़ाने के लिए लिए की थी और जिसकी कीमत चुकानी पड़ी लाखों मासूम लोगों को। तो पढ़ते रहिए... क्योंकि ये सिर्फ इतिहास नहीं, इंसानियत पर लगे वो दाग हैं जो आज भी मिटे नहीं हैं।
दुनियां के सभी तानाशाहों में होती है ये समानताएं
अपने ही लोगों से डरते हैं तानाशाही
रोमानिया में चाउसेस्कु (Ceausescu in Romania) की मौत के एक दशक बाद भी लोग अपनी परछाइयों तक से डरते थे। एक रिपोर्ट के अनुसार "लोग अब भी मुड़-मुड़कर देखते थे कि कहीं उनका पीछा तो नहीं किया जा रहा।" "पार्क में घूमते हुए उनकी नज़र हमेशा इस बात पर रहती थी कि बेंच पर बैठा कोई शख़्स अपने चेहरे के सामने अख़बार रखकर उनकी गतिविधियों पर नज़र तो नहीं रख रहा है। अगर कोई अख़बार पढ़ भी रहा है तो वो ये देखते थे कि उसमें कोई छेद तो नहीं है जिससे उन पर निगरानी रखी जा रही है।
तानाशाहों को नहीं पसंद है विद्रोह
रोमानिया के मशहूर फ़िल्म और थिएटर अभिनेता इऔन कारामित्रो ने तानाशाही के दौर के बारे में यूँ बताया था, "हम पर हर समय नज़र रख जाती थी। हमारे एक-एक काम पर सरकार का नियंत्रण होता था।" "प्रशासन तय करता था कि हम किससे मिलें और किससे न मिलें, हम किससे बात करें और कितनी देर तक करें, आप क्या खाएं और कितना खाएं और यहाँ तक कि आप क्या खरीदें और क्या न ख़रीदें। प्रशासन तय करता था कि आपके लिए क्या अच्छा है।”
दुनिया के सभी तानाशाह हैं क्रूर
हिंसा और सैन्य नियंत्रण का सहारा लेकर विरोधियों को डराना और सुरक्षा एजेंसियों या पैरामिलिट्री फोर्स का इस्तेमाल, जैसा कि स्टालिन और हिटलर के दौर में हुआ। भ्रष्टाचार, अर्थव्यवस्था की गिरावट, और गरीब जनता का शोषण ये सभी तानाशाहों के राज में आम बात हैं।
जब हिटलर के हर निवाले को चखती थी 15 महिलाएं
एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) का नाम इतिहास में एक तानाशाह के रूप में दर्ज है, लेकिन उसकी ज़िंदगी से जुड़ी कई बातें आज भी लोगों को चौंका देती हैं। ऐसी ही एक बात थी खाने को लेकर उसका अजीबोगरीब डर और शौक। हिटलर शाकाहारी था और खाने को लेकर बेहद सतर्क।
उसे हमेशा यह डर सताता था कि कोई उसके खाने में ज़हर न मिला दे। इसी वजह से उसने 15 महिलाओं की एक फूड टेस्टिंग टीम बनाई थी, जो हर दिन उसका खाना चखने के लिए मजबूर थीं। इन महिलाओं में से एक थी मारगो वोल्क, जो बाद में दुनिया के सामने आई और बताया कि कैसे हिटलर का हर निवाला पहले उन्हें खाना पड़ता था। वो बताती हैं कि अगर किसी दिन खाना ज़हर वाला होता, तो उनकी मौत निश्चित थी। रोज़ाना वे डर के साये में खाना खातीं और दुआ करतीं कि वो ज़िंदा बच जाएं।
हिटलर (Adolf Hitler) के इस कदम के पीछे उसका अत्यधिक डर, सत्ता का जुनून और विश्वासघात का खौफ छिपा था। वह किसी पर भरोसा नहीं करता था। उसकी ये सनक इस हद तक बढ़ चुकी थी कि एक खास टीम ही जंगलों से सब्जियाँ लाकर उसका खाना बनाती थी, और वही महिलाएं उसे चखती थीं। हिटलर की यह आदत ना सिर्फ अजीब थी, बल्कि यह दिखाती थी कि तानाशाह कितना अकेला और डरा हुआ होता है, चाहे वो बाहर से कितना ही ताक़तवर क्यों न दिखे।
ब्रश नहीं, चाय से साफ करते थे दांत! माओ की हैरान कर देने वाली आदत
तानाशाही सिर्फ सत्ता में ही नहीं, बल्कि सोच और आदतों में भी झलकती है। चीन के कुख्यात तानाशाह माओ ज़ेदोंग (Dictator Mao Zedong) की एक ऐसी ही आदत थी, जिसने दुनिया को चौंका दिया। माओ ने कभी भी ब्रश या टूथपेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया। जी हां, चीन का ये सर्वशक्तिशाली नेता मानता था कि दांतों को साफ करने की कोई ज़रूरत नहीं होती, बल्कि चाय पीना ही सबसे अच्छा उपाय है दांतों को चमकाने का!
इतना ही नहीं, माओ को लगता था कि ब्रश करना एक पश्चिमी आदत है जो सिर्फ कमजोर और आधुनिकता के पीछे भागने वालों के लिए है। उन्होंने कई बार अपने करीबियों से कहा, “मैंने कभी ब्रश नहीं किया, फिर भी मेरे दांत मज़बूत हैं।” लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल उलट थी। माओ के दांत इतने खराब हो चुके थे कि उनमें बदबू आती थी, और उनका रंग काला पड़ चुका था। उनके निजी डॉक्टरों के मुताबिक, माओ की सांसें इतनी दुर्गंध भरी होती थीं कि उनके पास खड़े होना भी मुश्किल हो जाता था। माओ की ये अजीब आदत इस बात का सबूत थी कि एक तानाशाह सिर्फ जनता पर नहीं, बल्कि अपनी ही सेहत और सामान्य समझ पर भी राज करता है। ऐसी सनकें ही उसे “सामान्य” इंसानों से अलग करती हैं और कई बार खतरनाक भी।
अल्बानिया के तानाशाह ने बनवाया था अपना डुप्लीकेट
तानाशाहों को सिर्फ सत्ता की नहीं, बल्कि अपनी जान की भी हमेशा चिंता रहती है। इस डर ने उन्हें कई बार ऐसे अजीब और चौंकाने वाले कदम उठाने पर मजबूर कर दिया, जो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं लगते। अल्बानिया के तानाशाह एनवर होक्सा (Enver Hoxha) ने भी कुछ ऐसा ही किया था। उसने अपने लिए एक ‘हमशक्ल’ यानी डुप्लीकेट इंसान तैयार किया था, ताकि अगर कभी कोई हमला हो या जान का खतरा हो, तो वह उसकी जगह मारा जाए।
इस डुप्लीकेट को होक्सा (Enver Hoxha) की तरह चलना, बोलना, हाव-भाव, पहनावा सब कुछ सिखाया गया। वो जब भी किसी संवेदनशील इलाके में जाता, तो कभी-कभी असली होक्सा जाता ही नहीं, बल्कि ये नकली होक्सा जाता था! कई बार तो खुद अल्बानियाई जनता भी पहचान नहीं पाती थी कि उनके सामने असली तानाशाह खड़ा है या उसका हमशक्ल। इस बात की पुष्टि बाद में कुछ पूर्व अधिकारियों और गुप्त दस्तावेजों से हुई, जब अल्बानिया में लोकतंत्र आया। यह पूरी कहानी बताती है कि तानाशाह अपने डर से कैसे जीते हैं और सत्ता बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। चाहे वो खुद की ‘कॉपी’ ही क्यों न बना लें।
जब तुर्कमेनिस्तान और हेती के तानाशाहों की सनक बन गई जनता की सज़ा
दुनिया में कई तानाशाह हुए हैं जिनकी सनक ने पूरे देश को परेशान कर दिया, लेकिन तुर्कमेनिस्तान के साफरमुराद नियाज़ोव (Safarmurad Niyazov) और हेती के फ्रांस्वा डूवालिएर की हरकतें सबसे अलग थीं।
नियाज़ोव, जो खुद को “तुर्कमेनबाशी” यानी तुर्कों का पिता कहता था, उसने अपना लिखा हुआ एक धर्मग्रंथ 'रूहनामा' स्कूलों में अनिवार्य कर दिया और यह तक कह दिया कि जन्नत में भी इसका टेस्ट होगा! उसने महीने और दिनों के नाम अपने परिवार के नाम पर बदल दिए, यहां तक कि उसने डॉक्टर्स को हिप्पोक्रेटिक शपथ छोड़कर उसकी लिखी शपथ लेने का आदेश दे दिया।
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वहीं, हेती के तानाशाह फ्रांस्वा डूवालिएर (François Duvalier) खुद को 'ब्लैक क्राइस्ट' (काला मसीहा) कहता था। वह वूडू धर्म और काले जादू में यकीन करता था और लोगों को डराने के लिए तांत्रिक वेश में घूमता था। उसकी खुफिया पुलिस लोगों को गायब कर देती थी और पूरे देश में एक डर का माहौल बना दिया गया था। इन दोनों तानाशाहों की सनक ने दिखा दिया कि जब सत्ता बिना जवाबदेही के मिल जाती है, तो इंसान कैसे ईश्वर बनने की कोशिश करने लगता है और उसका खामियाजा साधारण जनता को भुगतना पड़ता है।
जब ईदी अमीन दुश्मनों के सिर फ्रिज में रखवाता था
युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन (Idi Amin) को दुनिया आज भी सबसे क्रूर और पागल तानाशाहों में गिनती है। वह न सिर्फ सत्ता का भूखा था, बल्कि उसे हिंसा और खून-खराबे से भी अजीब किस्म का लगाव था। कहा जाता है कि वह अपने दुश्मनों को मरवाने के बाद उनके सिर काटकर फ्रिज में रखवाता था, ताकि जब भी उसका मन हो, उन्हें देख सके! इतना ही नहीं, कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ईदी अमीन नरभक्षी भी था और वह दुश्मनों के शरीर के अंग खाया करता था।
हालांकि इसकी कभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई, लेकिन उसके दौर में हुई हजारों हत्याएं, यातनाएं और अपहरण इस बात की गवाही देते हैं कि वह एक मानसिक रूप से असंतुलित तानाशाह था। 1971 से 1979 तक युगांडा पर राज करने वाले इस शासक ने करीब 5 लाख लोगों की जान ले ली। सत्ता के नशे में उसने मानवता को कुचल दिया और इतिहास में अपना नाम एक राक्षसी शासक के रूप में दर्ज करवा दिया।
जब सद्दाम हुसैन की फायरिंग स्क्वाड बन गई मौत की मशीन
इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन (Saddam Hussein) अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात था। उसने विरोधियों को डराने और खत्म करने के लिए एक बेहद खौफनाक तरीका अपनाया था, फायरिंग स्क्वाड। ये एक ऐसी टीम थी जो सिर्फ सद्दाम के इशारे पर लोगों को गोलियों से भून देती थी। चाहे कोई राजनीतिक विरोधी हो, सेना का अफसर, या फिर कोई आम नागरिक अगर उस पर सद्दाम को शक भी हो जाए, तो उसका अंत फायरिंग स्क्वाड से तय था।
कई बार तो सद्दाम खुद दर्शक बनकर इन हत्याओं को देखता था, और कभी-कभी तो मज़ा भी लेता था।इस खौफ और सनक ने इराक को दशकों तक दहशत में जीने पर मजबूर कर दिया। सद्दाम के शासन में इंसान की जान की कोई कीमत नहीं थी। बस उसकी मर्ज़ी ही कानून थी।
तानाशाहों की कहानियाँ सिर्फ इतिहास नहीं हैं, बल्कि वो आइना हैं जो दिखाते हैं कि सत्ता जब बेवजह और बिना जवाबदेही के मिलती है, तो इंसान किस हद तक गिर सकता है। हिटलर, माओ, ईदी अमीन, सद्दाम हुसैन या किम जोंग-उन, इन सबमें एक बात समान थी: डर, सनक और खुद को ईश्वर समझने का वहम। उन्होंने अपने देश को नहीं, अपने अहम और सनकों को चलाया, और इसका खामियाजा भुगतना पड़ा मासूम जनता को, जिनके पास न आवाज़ थी, न विकल्प। ये कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानवाधिकार सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि वो ढाल हैं जो तानाशाही की वापसी को रोकते हैं। ऐसे लेखों का मकसद सिर्फ डर दिखाना नहीं, बल्कि इतिहास से सबक लेना है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ फिर किसी तानाशाह की सत्ता का शिकार न बनें। [Rh/SP]