मुरुदेश्वर मंदिर: यहां भगवान शिव को समर्पित दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति विराजमान है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से ही संबंध रखता है। (Wikimedia Commons)
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से ही संबंध रखता है। (Wikimedia Commons)

भारत की संस्कृती ही उसकी धरोहर है। जिसके चलते भारत आज विश्व भर में अपनी छाप छोड़ रहा है। यहां की संस्कृतियां, पौराणिक कथाएं, अत्यंत प्राचीन मंदिर, दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं और इसलिए देश – विदेश से करोड़ों पर्यटक भारत दर्शन के लिए यहां आते हैं। 

हमारे सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में तीन देवताओं को प्रमुख माना गया है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी भगवान शिव, जिन्हें अविनाशी, भोले, शंकर, महेश आदि कई नामों से जाना जाता है। और भगवान शिव के कई नामों में से प्रसिद्ध एक नाम मुरुदेश्वर भी है। आज हम उन्हीं को समर्पित एक प्राचीन और पौराणिक मंदिर, मुरुदेश्वर मंदिर की बात करेंगे। 

भारत के कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल ताल्लुक क्षेत्र में स्थित मुरुदेश्वर एक प्रसिद्ध शहर है और यहीं भगवान शिव की दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति विराजमान है और उनके इस विशाल और प्रसिद्ध मंदिर को मुरुदेश्वर मंदिर (Murudeshwar Temple) के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान शिव की मूर्ति की ऊंचाई करीब 123 फीट है। भगवान शिव की मूर्ति सिल्वर रंग में कुछ इस प्रकार स्थापित है कि सूरज की किरणें मूर्ति को स्पर्श करती रहती है। जिसके परिणमस्वरूप मूर्ति चांदी की भांति चमक उठती है। 

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि, यह तीनों ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है। भगवान शिव की मूर्ति इतनी ऊंचाई पर है कि दूर से देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त मूर्ति को देखने के लिए यहां लिफ्ट का भी निर्माण किया गया है। तीनों ओर से समुद्र से घिरे होने के कारण यहां का दृश्य अत्यंत मनोरम लगता है। 

मुरुदेश्वर मंदिर पारंपरिक और आधुनिक वास्तुकला का एक अद्भुत मिश्रण है। यह दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। (Wikimedia Commons)

आइए जानते हैं मुरुदेश्वर मंदिर से जुड़ा इतिहास क्या है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से ही संबंध रखता है। लंका के राजा रावण ने एक बार अमरता (जो एक दिव्य लिंग है।) को प्राप्त करने की कामना की और जिसके पश्चात रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। कई वर्षों तक वह तपस्या करता रहा और उसकी भक्ति और दृढ़ प्रार्थना देख भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और रावण से पूछा कि तुम क्या वरदान चाहते हो? रावण ने बड़े ही विनम्र स्वभाव से भगवान शिव से उनका आत्म लिंग मांगा। जिसके पश्चात भगवान शिव ने वरदान स्वरूप वह आत्म लिंग रावण को भेट कर दिया। 

परन्तु इस आत्म लिंग के विषय में भगवान शिव ने रावण से कहा था कि इस आत्म लिंग को लंका जाकर ही स्थापित करना और इस बात के विशेष ध्यान रखना, अगर तुम जिस भी स्थान पर एक बार लिंग को रख दोगे यह वहीं स्थापित हो जाएगा। 

भगवान शिव की बात को ध्यान में रखते हुए रावण लिंग को लेकर लंका की ओर चल दिया। लेकिन सभी देवता जानते थे कि रावण इस आत्म लिंग का प्रयोग दुनिया को नष्ट करने के लिए करेगा। इसलिए उसे रोकना आवश्यक है। तब भगवान विष्णु ने श्री गणेश जी से रावण को लंका पहुंचने से रोकने के लिए कहा।

तीनों ओर से समुद्र से घिरे होने के कारण यहां का दृश्य अत्यंत मनोरम लगता है। (Wikimedia Commons)

रावण लगातार चलते – चलते थक गया था। सूर्यास्त भी होने ही वाला था। उसे लघुशंका जाना था लेकिन आस – पास कोई नहीं था जो लिंग को धारण कर सके। तभी श्री गणेश एक ब्राह्मण का भेष धारण कर रावण के पास पहुंचे। रावण ने उन्हें देखते ही उनसे सहायता मांगी और कहा कि वह इस लिंग को कुछ देर के लिए धरण कर लें। जब तक वह लघुशंका से नहीं लौटते। रावण ने श्री गणेश को यह भी कहा था कि इस लिंग को धरती पर मत रखना। 

परन्तु रावण को आने में देरी हो गई और ब्राह्मण के वेश में उपस्थित श्री गणेश ने आत्म लिंग को वहीं स्थापित कर दिया। जब रावण लौटा तो वह ये देख कर अत्यंत क्रोधित हो उठा और उसने लिंग को नष्ट कर देने का निर्णय लिया। जिस वजह से लिंग के कुछ टुकड़े अलग – अलग स्थानों पर जा गिरे। आत्मा लिंग जिस कपड़े से ढका हुआ था वह कंडुका गिरी स्थित मृदेश्वर में जा गिरा था, जिसे आज मरुदेश्वर के नाम से जाना जाता है। 

मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति के अतिरिक्त अन्य कई मूर्तियां यहां विराजमान है। यहां कई दृश्य वह उनकी चित्रकला रामायण और महाभारत के दृश्यों को दर्शाती है। अर्जुन को भगवान कृष्ण से गीतोपदेश प्राप्त करता हुआ एक दृश्य है। रावण और श्री गणेश की मूर्ति है। मुरुदेश्वर मंदिर पारंपरिक और आधुनिक वास्तुकला का एक अद्भुत मिश्रण है। यह दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। 

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