अरावली नहीं रही, तो कल नहीं रहेगा, विकास के नाम पर प्रकृति का बलिदान क्यों दे रही भारत सरकार?

20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया, जिसने सबको हैरान कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की एक नई परिभाषा बता दी। कोर्ट का कहना था कि केवल वही भू-आकृति अरावली मानी जाएगी जिसकी ऊंचाई आसपास के धरातल से कम से कम 100 मीटर अधिक हो।
तस्वीर में एक तरफ अरावली पर्वत, दूसरी तरफ पीएम नरेंद्र मोदी
अरावली पर्वत खत्म हुआ, तो जीवन संकट में आ जाएगा X
Reviewed By :
Published on
Updated on
7 min read

Summary

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अरावली का बड़ा हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर जाने का खतरा।

जल संरक्षण, प्रदूषण रोकने, रेगिस्तान फैलने से बचाने और जैव विविधता के लिए जरूरी।

खनन बढ़ा तो उत्तर भारत में पानी, हवा, तापमान और स्वास्थ्य पर गंभीर असर।

राहत इंदौरी का एक प्रसिद्ध गजल का शेर है, जो केंद्र की मोदी सरकार पर कटाक्ष करने के लिए देखा जा सकता है, जो कुछ ऐसा है, "सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है", वर्तमान समय में एक बड़ी समस्या देश में चल रही है और वो है राजस्थान की अरावली पहाड़ियां (Aravalli Hills) और उसको लेकर ये शेर कहीं ना कहीं यहां फिट होता दिख रहा है। क्यों? क्योंकि सरकार अपनी मनमानी पर उतारू है।

अरावली पर्वत (Aravalli Hills) जो करीब दो अरब साल से उत्तर भारत की रक्षा कर रही है। आज वही खुद संकटों से घिरी हुई है और इस संकट के केंद्र में है सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला जिसके जरिये भारत सरकार के पर निकल आए हैं और शायद इसलिए देश का भविष्य संकट में है।

अरावली पर्वत पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया, जिसने सबको हैरान कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली (Aravalli Hills) की एक नई परिभाषा बता दी। कोर्ट का कहना था कि केवल वही भू-आकृति अरावली मानी जाएगी जिसकी ऊंचाई आसपास के धरातल से कम से कम 100 मीटर अधिक हो।

मतलब जो पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंची हैं, वे अब कानूनी रूप से अरावली के दायरे में नहीं आएंगी। ये सुनने में जितना हैरान करने वाला है, उससे कहीं ज्यादा इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।

एक्सपर्ट्स ने दी चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पर्यावरण विशेषज्ञ हरजीत सिंह ने इसपर प्रतिक्रिया दी। हरजीत सतत सम्पदा क्लाइमेट फाउंडेशन (Satat Sampada Climate Foundation) के संस्थापक हैं। उन्होंने इसपर चिंता जताते हुए कहा कि हमारे लिए अरावली (Aravalli Hills) बहुत जरूरी है क्योंकि ये उत्तर भारत की हवा को साफ रखने और प्रदूषण को कम करने में मदद करती है।

अगर हम अरावली के कुछ हिस्सों को अपनी नई "100 मीटर ऊँचाई" की नियम के हिसाब से छूट दे देते हैं, तो वहां खनन और निर्माण तेजी से हो जाएगा। इससे दिल्ली और आस-पास के इलाकों का आखिरी हरा-भरा कवच टूट जाएगा।

वहीं, विमलेन्दु झा एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् (Environmentalist) और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने भी इसपर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि नया नियम अरावली (Aravalli Hills) की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उन्होंने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि अगर ये नियम लागू हो गया तो अरावली के लगभग 90% हिस्से यानी नौ में से नौ हिस्से पूरी तरह से खनन और निर्माण के लिए खोल दिए जाएंगे।

अरावली विवाद पर विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार को घेरा?

अरावली (Aravalli Hills) का विवाद जब बढ़ा तो विपक्षी नेताओं ने सरकार को घेरने की कोशिश की। विपक्षी दलों की ओर से सोनिया गाँधी, अखिलेश यादव और सचिन पायलट ने भी इसका पूरा विरोध किया।

सोनिया गाँधी ने इसका जिक्र एक अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में किया। उन्होंने अरावली काटे जाने को 'डेथ वारंट' पर हस्ताक्षर करने जैसा बता दिया। उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले से अवैध खननकर्ताओं और माफियाओं को खुला निमंत्रण मिलेगा और वो बचे 90 प्रतिशत का भी सफाया कर देंगे।

वहीं, अखिलेश यादव ने भी सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि अगर अरावली बचेंगी, तो NCR बचेगा। अरावली पर्यावरण की रक्षा करने और इकोलॉजिकल बैलेंस को बहाल करने के लिए बहुत ज़रूरी हैं। "यह खत्म हो रही वेटलैंड्स को फिर से ज़िंदा करने, गायब हो रहे पक्षियों को वापस लाने और दिल्ली के खोए हुए तारों को फिर से दिखाने में भी मदद कर सकता है।

साथ ही सचिन पायलट ने मीडिया से बात ये कहा कि इससे सिर्फ भू माफिया को फायदा होगा। ये नई परिभाषा पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है। अरावली राजस्थान के लिए एक प्राकृतिक दीवार है जो थार मरुस्थल (Desert) को आगे बढ़ने से रोकती है। अगर खनन के नाम पर पहाड़ों को काटा गया, तो न केवल राजस्थान बल्कि दिल्ली-एनसीआर में भी धूल भरी आंधियां और प्रदूषण बढ़ेगा।

सरकार ने क्या सफाई दी?

अरावली (Aravalli Hills) को लेकर विवाद ज्यादा गहरा हुआ, तो सफाई देने के लिए सरकार की तरफ से केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव सामने आए। 21 दिसंबर को मीडिया से बात करते हुए यादव कहते हैं कि सरकार अरावली पहाड़ों को खत्म नहीं कर रही है। ये बातें पूरी तरह से गलत और अफवाह है। सरकार अरावली की सुरक्षा के लिए कई सख्त कदम उठा रही है और अभी भी अरावली का लगभग 90% क्षेत्र पूरी तरह संरक्षित है।

'100 मीटर' की नई परिभाषा पर बात करते हुए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव कहते हैं कि ये केवल पहाड़ की ऊंचाई को लेकर नहीं है। इसमें पूरे पहाड़ की संरचना और उसकी आधार भूमि को भी ध्यान में रखा जाता है।

उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि अरावली (Aravalli Hills) में खनन पर कोई ढील नहीं दी गई है। जो थोड़ी बहुत माइनिंग की संभावनाएं दिखती हैं, वे बहुत ही सीमित हैं और लगभग 0.19% से भी कम हैं। यादव ने जनता से ये भी अपील की कि वो सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अफवाहों और गलतफहमियों से बचें। सरकार पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पूरा पालन कर रही है।

केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार हमेशा अरावली की सुरक्षा करेगी और खनन पर सख्त नियम लागू रखेगी। हमें सबको मिलकर प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए।

हालांकि, यहाँ सवाल अभी भी बरकरार है कि क्या हम सरकार पर भरोसा करें? क्यों? क्योंकि इतिहास गवाह है कि कानूनी खामियों का फायदा उठाकर खनन माफिया हमेशा अपनी ही मनमानी करते हैं और सरकार मूक दर्शक की तरह देखती रह जाती है, सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के लालच में।

देश के लिए क्यों जरूरी है अरावली?

अरावली (Aravalli Hills) क्यों जरूरी है? इसका जवाब इसके महत्त्व में छिपा है। असल में अरावली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और ये 670 किलोमीटर तक फैली हुई है। ये पर्वत राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली से होकर गुजरती है।

अब इससे 4 अहम फायदे उत्तर भारत को होते हैं:-

1. जल संरक्षण का आधार: अरावली की जो चट्टानें हैं बारिश के पानी को सोख लेती हैं और फिर भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाती हैं। राजस्थान की कई नदियां इसी से निकलती हैं। अगर ये पहाड़ियां खत्म हुईं, तो पानी के संकट से त्राहिमाम मच जाएगा।

2. प्रदूषण को रोकती है: अरावली दिल्ली-एनसीआर के लिए जीवन है। अभी दिल्ली की जलवायु बहुत ही ज्यादा ख़राब AQI 400 से ऊपर है लेकिन अरावली कट जाएगा, तो इसके भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं। ये पहाड़ धूल और रेत भरी आंधियों को रोकती है और हवा को साफ रखने में मदद करती है। इसे नुकसान पहुंचा, तो दिल्ली, तो छोड़िये उत्तराखंड के पहाड़ भी खतरे में आ जाएंगे। यहाँ तक कि उत्तरप्रदेश से लेकर बिहार तक की हवा ख़राब हो जाएगी।

3. थार के रेगिस्तान को रोकती है: अरावली एक प्राकृतिक बैरियर की तरह काम करती है जो थार रेगिस्तान को उत्तर की ओर फैलने से रोकती है। अगर यह नहीं होती, तो दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई इलाके आज रेगिस्तान होते।

4. जैव विविधता: अरावली में तेंदुआ, हिरण, नीलगाय सहित कई दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके नष्ट होने से जानवरों को नुकसान होगा और पूरा प्राकृतिक तंत्र बिगड़ जाएगा।

अरावली खत्म हुई तो क्या होगा?

सोचकर देखिये कि अगर अरावली (Aravalli Hills) खत्म हो जाए, तो इसके क्या भयंकर परिणाम हो सकते हैं। अगर सच में ऐसा होता है दिल्ली जैसे राज्यों में गर्मी के मौसम में तापमान 60 से ऊपर जा सकता है। साफ़ पानी पीने को नहीं मिलेगा। अभी जो AQI 400 देख रहे हैं ये 800 से ऊपर जा सकता है।

आलम ये हो सकता है कि आप घरों से बिना ऑक्सीजन मास्क के बाहर नहीं निकल पाएंगे। ये कोई काल्पनिक भविष्य नहीं है। ऊपर हमने आपको बताया कि कैसे एक्सपर्ट्स इसको लेकर चेतावनी दिए जा रहे हैं और आने वाले 20 से 30 सालों में ये हकीकत बन सकता है, अगर अरावली को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए गए तो।

इससे दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और गुजरात के कुछ हिस्से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे लेकिन असर पूरे उत्तर भारत में होगा। साथ ही जल संकट, बढ़ता तापमान, मरुस्थलीकरण, खेती पर असर, वन्यजीवों का विलुप्त होना, और स्वास्थ्य समस्याएं निकलकर सामने आएंगी। शुरुआत में ऐसा कुछ नहीं दिखेगा लेकिन जब दिखेगा तब शायद बहुत देर ना हो जाए।

कितना पुराना है ये विवाद?

आपको यह जानकर हैरानी भी होगी कि आज जिस अरावली (Aravalli Hills) को लेकर इतना विवाद हो रहा है, वो ज्यादा पुराना भी नहीं है। ये मामला तकरीबन 2002-03 का है जब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी और सीएम अशोक गहलोत थे। गहलोत सर्कार ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिश पर 100 मीटर की परिभाषा को स्वीकार किया था लेकिन तब 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे ख़ारिज किया था लेकिन सोचने वाली बात ये है कि अब न्यायालय ने इसकी मंजूरी दे दी।

बता दें कि साल 1992 में केंद्र सरकार ने अरावली (Aravalli Hills) में खनन और निर्माण पर रोक लगाई थी। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सख्ती से ध्यान दिया। हालांकि, प्रशाशन ने इसमें मुस्तैदी नहीं दिखाई और आलम ये है कि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक 31 पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं।

पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने यह दावा किया था कि उनकी सरकार ने अवैध खनन से 464 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला और 4,206 एफआईआर दर्ज कीं लेकिन लगता है माफियाओं के मन में कानून का खौफ नहीं है।

राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहाँ कांग्रेस-बीजेपी दोनों की सरकार हर 5 साल में आती है लेकिन लगता है ये खनन माफियाओं पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हुए।

अब क्या है अंतिम विकल्प?

अरावली (Aravalli Hills) सिर्फ एक पहाड़ का सवाल नहीं है बल्कि ये आम जन जीवन के ज़िंदगी का भी सवाल है। विकास का मतलब क्या होना चाहिए? इसे सरकार को तय करना होगा। प्राकृतिक चीजों को नष्ट करके आप विकास का नाम देंगे, तो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसी तबाही आपको देखने को मिलेगी।

सुप्रीम कोर्ट को इस फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है। सरकार को खनन माफिया पर सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए और पारदर्शी तरीके से खनन की निगरानी करनी चाहिए। साथ ही विकास और पर्यावरण के बीच एक सीमा रेखा खींचनी जरूरी है।

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के इतिहास से ही अगर हम सबक लें, तो कई जीवन बचाए जा सकते हैं क्योंकि जब पर्यावरण खत्म हो जाएगा, तो न विकास बचेगा, न सियासत, और न ही हम।

(RH/ MK)

तस्वीर में एक तरफ अरावली पर्वत, दूसरी तरफ पीएम नरेंद्र मोदी
गुरुग्राम के अरावली क्षेत्र में विकसित किया जाएगा शहरी वन

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com