Article 370 Verdict :भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 शामिल किया गया था। यह जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग रखता था। इसके तहत राज्य सरकार को अधिकार था कि वो अपना संविधान स्वयं तैयार करे। साथ ही संसद को अगर राज्य में कोई कानून लाना है तो इसके लिए यहां की सरकार की मंजूरी लेनी होती थी। वहीं, पहले जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज भी अलग था और यहां के लोगों के लिए राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था लेकिन जब आर्टिकल 370 हटाया गया था पूरा देश ही आश्चर्यचकित रह गया था। लेकिन आज इतने दिनो बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को सही ठहराया है।
उन्होंने केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने का फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से केंद्र की मोदी सरकार को राहत मिली है। CJI ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है। SC ने माना कि जम्मू कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी राष्ट्रपति के पास आर्टिकल 370 समाप्त करने से संबंधित अधिसूचना जारी करने कती शक्ति रहती है।
5 अगस्त 2019 को संसद ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था, साथ ही साथ राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। केंद्र के इन्हीं फैसले को चुनौती दी गई थी। इस बार आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला बरकरार रहेगा।
अदालत ने माना कि जम्मू-कश्मीर ने अपने एकीकरण के बाद कोई आंतरिक संप्रभुता बरकरार नहीं रखी और भारतीय संविधान को राज्य में लागू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं थी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील के आलोक में कि सरकार जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की योजना बना रही है , अदालत ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य के पुनर्गठन की वैधता पर फैसला नहीं सुनाया। हालाँकि, इसने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने को बरकरार रखा। अदालत ने भारत के चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए कदम उठाने का भी निर्देश दिया ।