भारत की पहली महिला डिटेक्टिव : समाज के लिए बनी आदर्श

अपने ऊपर शक न आने देने के लिए रजनी ने अपने पैर के अंगूठे पर एक भारी पत्थर गिरा दिया, जिससे उनका अंगूठा बुरी तरह घायल हो गया और बाद में काटना पड़ा।
भारत की पहली महिला डिटेक्टिव रजनी पंडित की फाइल फोटो।
भारत की पहली महिला डिटेक्टिव रजनी पंडित ।X
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  • भारत की पहली महिला डिटेक्टिव।

  • जीवन का सबसे कठिन केस जहाँ उन्हें अपने अंघूठे को काटना पड़ा।

  • पुलिस द्वारा 2018 में हुई गिरफ़्तारी ।

रजनी पंडित भारत की पहली महिला प्राइवेट डिटेक्टिव मानी जाती हैं। रजनी पंडित का जन्म वर्ष 1962 में महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता CID में सब-इंस्पेक्टर थे। बचपन से ही रजनी अपने पिता के काम में काफ़ी दिलचस्पी दिखाती थीं और उनसे प्रेरित रहती थीं। रजनी ने मराठी साहित्य में पढ़ाई करने के लिए रूपारेल कॉलेज में दाख़िला लिया। कॉलेज के दौरान उन्हें पता चला कि उनकी एक सहपाठी के साथ शोषण हो रहा है। रजनी ने न सिर्फ़ इस अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, बल्कि अपनी सहपाठी को इस स्थिति से बाहर निकालने में भी मदद की।

यह रजनी के जीवन का पहला अनुभव था, जब उन्हें एहसास हुआ कि लोगों की मदद करना और उनके साथ हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ़ खड़ा होना उन्हें बेहद पसंद है।रजनी हमेशा से financially independent होना चाहती थीं। इसी सोच के साथ कॉलेज के बाद उन्होंने एक ऑफिस में क्लर्क के पद पर काम करना शुरू किया, जो उनकी पहली नौकरी थी। इस दौरान ऑफिस में काम करने वाली एक महिला के घर चोरी की घटना सामने आई। महिला को शक था कि यह चोरी उसकी बहू ने की है। रजनी पंडित ने इस मामले में दख़ल देते हुए खुद छानबीन शुरू की। जाँच के बाद पता चला कि चोरी महिला के बेटे ने ही की थी, न कि उसकी बहू ने। इस घटना के बाद रजनी को महसूस हुआ कि उनकी असली रुचि डिटेक्टिव बनने में है। मात्र 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला केस सुलझाया। यहीं से रजनी के जासूस बनने की शुरुआत हुई और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने करियर में रजनी पंडित ने हज़ारों मामलों को सुलझाने का दावा किया है, जिनमें घरेलू विवाद से लेकर गंभीर आपराधिक मामले तक शामिल हैं।

उनके जीवन का एक केस बेहद चौंकाने वाला रहा, जिसमें उन्हें अपनी जान बचाने और शक से बाहर रहने के लिए अपने पैर के अंगूठे को कटवाना पड़ा। यह केस एक डबल मर्डर से जुड़ा था, जहाँ एक घर में पति और बेटे की हत्या कर दी गई थी। इस केस को सुलझाने के लिए रजनी ने एक गूंगी-बहरी नौकरानी बनकर उस घर में काम करना शुरू किया। सबूत इकट्ठा करने के दौरान एक बार वो कमरे के बाहर कान लगाकर बातचीत सुन रही थीं, तभी परिवार का एक सदस्य कॉरिडोर में आ गया। अपने ऊपर शक न आने देने के लिए रजनी ने अपने पैर के अंगूठे पर एक भारी पत्थर गिरा दिया, जिससे उनका अंगूठा बुरी तरह घायल हो गया और बाद में काटना पड़ा। इस घटना को सभी ने एक हादसा समझा और रजनी पर किसी को शक नहीं हुआ। यह घटना रजनी की तत्पर बुद्धिमत्ता (Presence of Mind) और असाधारण साहस को दर्शाती है। जाँच के बाद पता चला कि हत्या किसी और ने नहीं, बल्कि उसी घर की महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति और बेटे की हत्या की थी।

1986 में रजनी ने अपनी पहली एजेंसी की शुरुआत की, जिसका नाम पहले रजनी इन्वेस्टिगेटिव था, जिसे बाद में बदलकर रजनी पंडित डिटेक्टिव एजेंसी कर दिया गया 1991 तक उनकी एजेंसी मुंबई के माहिम और शिवाजी पार्क जैसे इलाकों में काफ़ी मशहूर हो चुकी थी। उनके पास वैवाहिक विवाद, धोखाधड़ी, कॉरपोरेट और राजनीतिक मामलों से जुड़ी शिकायतें आती थीं, जिन्हें रजनी और उनकी टीम मिलकर सुलझाती थीं।

रजनी ने अपने 40 वर्ष की उम्र में 75000 से भी ज्यादा केस सुलझाए है। रजनी पंडित को उनके कार्यों के लिए हीरकणी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। उनके जीवन पर लेडी जेम्स नाम की एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गई। उन्होंने दो किताबें भी लिखी, मायाजाल और फेसेस बिहाइंड फेसेस (Faces Behind Faces)। रजनी का मानना है कि एक जासूस के लिए उसका मिशन उसकी अपनी जान और शरीर से भी बड़ा होता है।

हालाँकि यह सफ़र आसान नहीं था। पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती देकर आगे बढ़ने वाली रजनी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब कई अख़बारों ने उनके काम और उपलब्धियों को प्रकाशित करने से इनकार कर दिया।

2018 में रजनी पंडित को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया गया। आरोप था कि उन्होंने जाँच की आड़ में अवैध रूप से कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) हासिल किए और उन्हें बेचा। 2 फ़रवरी 2018 को उनकी गिरफ़्तारी हुई और लगभग 40 दिन जेल में बिताने के बाद मार्च में उन्हें ज़मानत मिली। रजनी ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को झूठा बताया और उन्हें स्वीकार करने से इनकार किया।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पितृसत्तात्मक समाज में एक महिला को आगे बढ़ने के लिए लगातार आलोचनाओं और संदेहों का सामना करना पड़ता है। हर कदम पर अपने काम को सही साबित करने की ज़िम्मेदारी महिलाओं को अक्सर कमज़ोर कर देती है।

लेकिन इन सभी परिस्थितियों के बावजूद रजनी पंडित ने न सिर्फ़ लोगों की मदद की, बल्कि उन तमाम महिलाओं के लिए एक मिसाल भी बनीं, जो “लोग क्या कहेंगे” के डर से अपने सपनों को अधूरा छोड़ देती हैं।

(Rh/PO)

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