दिल्ली-एनसीआर सहित भारतवर्ष में बढ़ता प्रदूषण: बीजिंग मॉडल से सीख की जरूरत

दिल्ली-एनसीआर सहित भारतवर्ष में बढ़ते प्रदूषण का मामला विश्वभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। आज जो हालत भारत की राजधानी दिल्ली की है, वही हालत वर्ष 2013 में चीन के बीजिंग की थी। यही कारण है कि लोगों ने दिल्ली में हो रहे प्रदूषण के प्रभाव की तुलना बीजिंग के प्रदूषण से की है।
वायु प्रदूषण के चलते धुंध में लिपटी इमारतें।
प्रदूषण के धुँए में ढंका शहर।Mehr News Agency, CC BY 4.0, via Wikimedia Common
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Summary

2013 में चीन के बीजिंग द्वारा सख्त नियमों के जरिए प्रदूषण पर काबू पाना।

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता जानलेवा प्रदूषण।

बीजिंग मॉडल से प्रेरित होकर दिल्ली में प्रदूषण पर काबू पाने की योजना

दिल्ली-एनसीआर सहित भारतवर्ष में बढ़ते प्रदूषण का मामला विश्वभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। आज जो हालत भारत की राजधानी दिल्ली की है, वही हालत वर्ष 2013 में चीन के बीजिंग की थी। यही कारण है कि लोगों ने दिल्ली में हो रहे प्रदूषण के प्रभाव की तुलना बीजिंग के प्रदूषण से की है। दिल्ली में प्रदूषण से हो रहे प्रभाव को कम करने के लिए चीन के बीजिंग को एक आदर्श के रूप में देखा जा रहा है।

आज के समय में भारत की जनता प्रदूषण से जूझ रही है और सरकार से इमरजेंसी अथवा लॉकडाउन जैसे कड़े कदम उठाने की मांग कर रही है, ताकि प्रदूषण और उससे बढ़ रही बीमारियों को रोका जा सके। ऐसे में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि दिल्ली, चीन के बीजिंग द्वारा उठाए गए कदमों को अपनाकर प्रदूषण को कैसे कम या नियंत्रित कर सकती है।

2013 का बीजिंग और आज की दिल्ली

वर्ष 2013 में चीन के शहर बीजिंग की स्थिति आज की दिल्ली के समान ही थी, जहां लोगों के लिए खुली हवा में सांस लेना तक मुश्किल हो गया था। प्रदूषण से बढ़ती बीमारियों से चीन की जनता जूझ रही थी।

क्या चीन ने रातों-रात इस बढ़ते प्रदूषण पर काबू पा लिया था? जवाब है—नहीं।

चीन ने न तो रातों-रात और न ही किसी एक कदम से प्रदूषण पर नियंत्रण पाया। बल्कि बीजिंग के प्रदूषण को कम करने में सरकार द्वारा सूझ-बूझ के साथ अपनाई गई मल्टी-लेवल, सख्त और दीर्घकालिक (Long-Term) नीतियों का सबसे बड़ा योगदान रहा।

कोयले और गाड़ियों पर नियंत्रण से लेकर सख्त नियम-कानून तक

चीन ने सबसे पहले कोयले पर नियंत्रण पाने की शुरुआत की, क्योंकि प्रदूषण में इसका सबसे बड़ा योगदान था। पहले बीजिंग में घरों की हीटिंग और बिजली की आपूर्ति कोयले से होती थी। सरकार ने कोयला आधारित प्लांट(Plants) बंद करने का निर्णय लिया और घरों व कारखानों को गैस तथा बिजली पर स्थानांतरित किया गया। इतना ही नहीं, बड़ी फैक्ट्रियों को या तो बंद कर दिया गया या फिर शहर के बाहर शिफ्ट कर दिया गया। गाड़ियों को ऑड-ईवन नियम के अनुसार चलाने की रणनीति अपनाई गई, साथ ही बिजली से चलने वाली गाड़ियों को प्रोत्साहित किया गया। ई-बसों और मेट्रो की पहुंच को आम लोगों तक और आसान बनाया गया। चीनी सरकार द्वारा वृक्षारोपण (Afforestation) को भी बढ़ावा दिया गया। 

रियल-टाइम मॉनिटरिंग (Monitoring) और डेटा ट्रांसपेरेंसी (Data Transparency) के लिए एयर क्वालिटी सेंसर (Air Quality Sensors) लगाए गए। प्रदूषण बढ़ने की स्थिति में इमरजेंसी पाबंदियां लागू की जाती थीं। सड़कों की नियमित सफाई की गई और कंस्ट्रक्शन (Construction) से जुड़े कार्यों पर भी कड़ी रोक लगाई गई।

सख्त निगरानी और जवाबदेही

चीनी सरकार ने प्रदूषण पर काबू पाने के लिए न केवल नियम बनाए, बल्कि उन पर लगातार निगरानी भी रखी। नियमों का पालन न करने वालों से अपील करने के बजाय उन पर सख्त जुर्माना लगाया गया। सरकारी अधिकारियों और कारखानों को तय लक्ष्यों के प्रति जवाबदेह बनाया गया। यदि नियमों का पालन नहीं होता था या लक्ष्य पूरे नहीं किए जाते थे, तो इसका असर उनके करियर पर भी पड़ता था। यही कारण था कि लोगों ने सरकार द्वारा बनाए गए नियमों को सख्ती से अपनाया।

सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति, सख्त कानून, आधुनिक तकनीक और ईमानदार अमल का ही परिणाम है कि बीजिंग में PM 2.5 का स्तर वर्ष 2013 से 2025 के बीच लगभग 50 प्रतिशत तक घट गया।

बीजिंग से दिल्ली को क्या सीख मिलती है?

दिल्ली सरकार को गैस और बिजली को सस्ता बनाना चाहिए, ताकि आम लोगों तक इन संसाधनों की पहुंच आसान हो सके और कोयले का उपयोग कम किया जा सके। साथ ही किसानों को हैप्पी सीडर मशीन (Happy Seeder Machine) और सब्सिडी देना जारी रखना चाहिए, ताकि पराली न जलाने के लिए उन्हें प्रोत्साहन मिल सके।

दिल्ली सरकार को कोयले पर आधारित और बड़े कारखानों को शहर से बाहर स्थानांतरित करना चाहिए, लेकिन उससे पहले उन मजदूरों के रोजगार की सुरक्षा सुनिश्चित करनी आवश्यक है, जिनकी रोजमर्रा की जिंदगी इन कारखानों पर निर्भर है।

भारत में लोग यात्रा के लिए निजी गाड़ियों को अधिक महत्व देते हैं, जबकि सरकार को सार्वजनिक परिवहन को न केवल बढ़ावा देना चाहिए, बल्कि उसे प्रभावी रूप से लागू करने के लिए सख्त नियम भी बनाने चाहिए। कानून का उल्लंघन करने पर कड़े कदम उठाने चाहिए, ताकि लोगों में नियम तोड़ने का डर हो और यह सोच खत्म हो कि “मेरे अकेले के करने से क्या ही हो जाएगा।”

निष्कर्ष

हालांकि, चीन और भारत की स्थिति में कई समानताएं हैं, फिर भी भारत में नियमों का पालन न होना और सरकारी लापरवाही के पीछे सबसे बड़ा कारण लोगों में जागरूकता की कमी और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच तालमेल की कमी है। जब तक इन समस्याओं को दूर नहीं किया जाएगा, तब तक प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण पाना कठिन बना रहेगा।

(Rh/PO)

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