

Summary
कलाकप्पा निदागुंडी की 15 हजार की सैलरी लेकिन संपत्ति 30 करोड़ ।
एसडीओपी पूजा पांडे पर हवाला रकम गायब करने का आरोप, निलंबित हुईं।
डीएसपी ऋषिकांत शुक्ला पर 100 करोड़ के भ्रष्टाचार की जांच।
साल 2003 में एक फिल्म आई थी गंगाजल, उस फिल्म की एक दृश्य में अजय देवगन जो एक एसपी (SP) का किरदार निभा रहे हैं, वो अपने अफसर को ये समझाते हैं कि वर्दी पहनने का मतलब अपराध करना नहीं, बल्कि कानून की रक्षा करना है। ये फिल्म पूरी तरह से भ्रष्टाचार (corruption) पर आधारित थी। हालांकि, ये तो फिल्म की बात थी लेकिन असल जीवन में भी इसका जीता-जागता सबूत देखने को मिलता है। ब्यूरोक्रेसी एक ऐसा सरकारी तंत्र है, जहाँ भ्रष्टाचार अपने पांव पसारे जा रहा है।
गौर करें, तो भ्रष्टाचार (corruption) कोई एक घटना नहीं, बल्कि ये पूरी व्यवस्था बन चुकी है और इसे बनने में एक या दो दिन नहीं बल्कि सालों लगते हैं और ये चुपचाप फलती-फूलती रहती है। आज हम आपको ब्यूरोक्रेसी के 3 ऐसे अधिकारियों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने भ्रष्टाचार के जरिये इस सरकारी तंत्र को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पहला मामला कर्नाटक (Karnataka) का है। इस राज्य के कोप्पल ज़िले से एक ऐसी घटना सामने आई, जिसने सबको हैरान कर दिया। कर्नाटक ग्रामीण अवसंरचना विकास लिमिटेड (KRIDL) में काम करने वाला पूर्व कलर्क क्लर्क, कलाकप्पा निदागुंडी, जो एक मामूली दिहाड़ी मजदूर था और उसकी महीने की तनख्वाह बस 15,000 रुपए थी। उसके पास से पूरे 30 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की संपत्ति बरामद हुई।
कलाकप्पा निदागुंडी के घर लोकायुक्त अधिकारियों की टीम ने जब छापा मारा, तो उनके होश ही उड़ गए। कलाकप्पा के पास 24 आलीशान मकान, 4 प्लॉट और लगभग 40 एकड़ कृषि भूमि मिली। उसके पास से सोना-चांदी के आभूषण और वाहन भी जब्त किए गए। मतलब 15,000 रुपए कमाने वाले एक मजदूर के पास बड़ी संपत्ति थी।
हैरानी की बात तो ये है कि जितनी संपत्ति बरामद की गई, उसका कोई स्रोत स्पष्ट नहीं मिला। यही कारण रहा कि अधिकारियों ने जांच को फर्जी गतिविधियों से जोड़ा। जब इसकी जाँच शुरू हुई, तो पता चला कि निदागुंडी और केआरआईडीएल (KRIDL) के एक पूर्व इंजीनियर जेडएम चिंचोलकर के बीच 96 विकास परियोजनाओं के लिए नकली दस्तावेज और बिल तैयार हुए थे, जिनके नाम पर करीब ₹72 करोड़ की सरकारी रकम हड़पने का आरोप लगा।
इन परियोजनाओं पर कभी काम किया ही नहीं गया और सरे पैसे निकाल लिए गए। अब अधिकारी बैंक डिटेल्स, दस्तावेज़ों और लेन-देन रिकॉर्ड की गहन जांच कर रहे हैं ताकि इस पूरे नेटवर्क की सच्चाई सामने आ सके।
वहीं, मामले ने जब तूल पकड़ा, तो कोप्पल से विधायक राघवेंद्र हितनाल को सामने आकर जवाब देना पड़ा। उन्होंने कहा कि सरकार इसे गंभीरता से ले रही है और दोषियों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई की जाएगी। लोकायुक्त ने केस दर्ज कर लिया है और पूछताछ और संभावित गिरफ्तारी की प्रक्रिया जारी है। बता दें कि ये पूरा मामला 1 अगस्त 2025 का है।
दूसरा मामला मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सिवनी जिले का जहाँ 10 अक्टूबर 2025 को एक ऐसी गंभीर घटना सामने आई जिसने ब्यूरोक्रेसी की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। यहाँ हवाला के लगभग ₹3 करोड़ की नकदी जब्त करने के नाम पर पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे। घटना के सामने आने के बाद एसडीओपी (Sub-Divisional Officer of Police) पूजा पांडे को निलंबित कर दिया गया है, जबकि कई अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी कार्रवाई हुई।
हुआ कुछ यूं था कि 8 अक्टूबर की रात सिवनी जिले के बंडोल थाना क्षेत्र में पुलिस ने महाराष्ट्र के जालना से आई एक जीप को रोका, जिसमे कथित तौर पर हवाला से जुड़ी लगभग ₹2.96 करोड़ नकद मिले। तुरंत पुलिस ने उस रकम को जब्त कर लिया लेकिन आधिकारिक रिपोर्ट में केवल ₹1.45 करोड़ का ज़िक्र किया। मतलब बाकि का पैसा अपनी जेब में भर लिया। साथ ही पीड़ित व्यापारी और उसके साथी को कथित तौर पर मारपीट की और वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना तक नहीं दी।
बाद में जब घटना की शिकायत उच्च अधिकारियों तक गई, तो जबलपुर रेंज के आईजी प्रमोद वर्मा ने नौ पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। इसमें बंडोल थाना प्रभारी, उपनिरीक्षक और अन्य आरक्षकों का नाम नाम भी शामिल है। वहीं, डीजीपी कैलाश मकवाना ने एसडीओपी पूजा पांडे को भी निलंबित करने का आदेश दे दिया। फिलहाल जाँच आगे चल रही है और अकाउंटिंग रिकॉर्ड, जब्ती दस्तावेज को खंगाला जा रहा है।
तीसरा मामला उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का है जहाँ 5 नवंबर 2025 में एक खबर सामने जहाँ उत्तर प्रदेश के कानपुर में तैनात रहे पूर्व डीएसपी ऋषिकांत शुक्ला पर करीब 100 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति जमा करने तथा भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। इन आरोपों की जांच विशेष जांच टीम (SIT) कर रही है। बताया जाता है कि डीएसपी शुक्ला पुलिस विभाग में एक सख्त और ईमानदार अफसर थे लेकिन जब SIT ने जाँच की, तो मामला कुछ और ही निकल गया।
जाँच में यह पता चला कि उनके नाम बेनामी संपत्ति और अवैध लेन-देन का आरोप है। उनके पास करीब 100 करोड़ रुपये से भी अधिक की संपत्ति के सबूत मिले। शुक्ला के करीबी साथी राज मनोहर शुक्ला ने इसपर कई खुलासे किये। पहले वो शुक्ला का सहयोगी था लेकिन बाद में SIT का महत्त्वपूर्ण गवाह बन गया। अब वो कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ दे रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शुक्ला की संपत्ति में कई आलीशान मकान, लग्जरी गाड़ियाँ और जमीनें शामिल हैं। ये सम्पतियां कानपुर, लखनऊ व अन्य जिलों में मिलीं। जाँच से बचने के लिए उन्होंने सारी सम्पतियों को बेनामी नामों पर दर्ज किया था।
आईपीएस रमित शर्मा इस मामले की जाँच कर रहे हैं और उन्होंने शुक्ल को निलंबित कर दिया है। वहीं, कई रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया कि शुक्ला ने इन सारी संपत्ति को जुटाने के लिए धमकी, एनकाउंटर का डर और व्यक्तिगत प्रभाव का इस्तेमाल किया था। हालांकि, शुक्ला ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन जरूर किया है लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि वो जाँच में पूरा सहयोग करेंगे।
तो ये थी 3 भ्रष्ट (corruption) अधिकारीयों की कहानी जिन्होंने ब्यूरोक्रेसी को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
(RH/ MK)