

पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि यह रैकेट फर्जी व्हाट्सएप ग्रुप और फर्जी ट्रेडिंग एप्लिकेशन के जरिए संचालित होता था।
एसीपी रमेश लांबा के मार्गदर्शन में इंस्पेक्टर शिवराज बिष्ट और सतेंद्र खारी के नेतृत्व वाली टीमों ने ये गिरफ्तारियां कीं।
आरोपियों ने फर्जी मोबाइल एप्लिकेशन के जरिए निवेश पर भारी रिटर्न का वादा करके भोले-भाले पीड़ितों को निशाना बनाया।
पहले मामले में एक शिकायतकर्ता को व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल करके और 'सीवेंटुरा' नामक फर्जी ट्रेडिंग एप्लिकेशन इंस्टॉल करने के लिए राजी करके उससे ₹31.45 लाख की धोखाधड़ी (Fraud) की गई।
पीड़ित ने ग्रुप के डी-एक्टिवेट होने से पहले छह अलग-अलग बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर किए।
साइबर नेशनल डिपार्टमेंट ऑफ इंजीनियरिंग (एनईडी) में एफआईआर दर्ज की गई और बाद में जांच के लिए क्राइम ब्रांच (Crime Branch) को सौंप दी गई।
जांच के दौरान पुलिस ने कई फर्जी खातों के जरिए पैसे का पता लगाया और पंजाब के लुधियाना और खन्ना में छापेमारी की, जिसके परिणामस्वरूप रूपनगर से राजीव (33) और लुधियाना से मोनू कुमार (27) को गिरफ्तार किया गया।
राजीव के खाते में इस मामले से ₹6.45 लाख आए थे और कई साइबर धोखाधड़ी शिकायतों से जुड़े एक करोड़ रुपए से अधिक के लेनदेन दर्ज किए गए थे। मोनू कमीशन लेकर बैंक खाते खोलने और बेचने में मदद कर रहा था। उसके दो अन्य साथी अभी भी फरार हैं।
दूसरे मामले में, एक पीड़ित को 'वीआईपी 10 स्टॉक शेयरिंग ग्रुप' नामक व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल होने और फर्जी 'वर्गर' एप्लिकेशन के माध्यम से निवेश करने के बाद ₹47.15 लाख का चूना लगाया गया। जांच में पता चला कि धनराशि कई राज्यों में फैले नौ बैंक खातों के माध्यम से भेजी गई थी। हरियाणा और राजस्थान में छापेमारी के बाद मोहित, बलवान और राजबीर सिंह को गिरफ्तार किया गया।
पुलिस ने पाया कि मोहित और राजबीर पहले स्तर के खाता प्रदाता के रूप में काम कर रहे थे, जिनके खातों के माध्यम से कम समय में लगभग ₹23 करोड़ का लेनदेन हुआ, जबकि बलवान कमीशन पर बैंक खाते खुलवाने वाले मध्यस्थ के रूप में काम कर रहा था।
पुलिस ने बताया कि जांच से कई राज्यों में फर्जी ऐप, व्हाट्सएप ग्रुप और कई स्तरों वाले बैंकिंग चैनलों का उपयोग करके संचालित एक सुनियोजित साइबर धोखाधड़ी नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है।
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