भारत (India) ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन का स्तर शून्य करने का लक्ष्य तय किया है। लक्ष्य तक पहुंचने के लिए देश को कोयले पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे कम करना है। भारत का कोयला आयात 2014-15 में 212 मिलियन टन के अपने शीर्ष स्तर पर पहुंच गया था। 2016-17 में यह घटकर 191 मिलियन टन रह गया।
हालांकि 2017-18 के बाद से इसमें फिर से बढ़ने की प्रवृत्ति जारी है। उस वर्ष कोयले का आयात बढ़कर 208 मिलियन टन हो गया, जो 2018-19 में 235.35 मिलियन टन और 2019-20 में 248 मिलियन टन हो गया।
मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पाटने के लिए भारत कोयले का आयात करता है।
सरकार की कोयला आयात नीति के अनुसार आयात को खुले सामान्य लाइसेंस के तहत रखा गया है और उपयोगकर्ता शुल्क का भुगतान पर अपनी पसंद के स्रोत से कोयला खरीदने को स्वतंत्र है।
सरकार द्वारा आत्मनिर्भर नीति शुरू करने के बाद कोयले के आयात में गिरावट देखी जा रही है।
2020-21 में कोयले का आयात 215 मिलियन टन तक गिर गया और 2021-22 में 29 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि के साथ 208 मिलियन टन हो गया।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि पिछले कुछ वित्तीय वर्षों में कोयले के आयात में गिरावट कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों द्वारा घरेलू उत्पादन में धीरे-धीरे वृद्धि के साथ-साथ आयात में कमी के कारण हुई है।
हालांकि उद्योग पर नजर रखने वालों का मानना है कि भारत अपनी कोयले पर निर्भरता को कम करने से अभी दूर है।
रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) के कारण भू-राजनीतिक स्थिति अत्यधिक अस्थिर होने के चलते आपूर्ति श्रृंखला दबाव में है। इससे भारत और कई अन्य देशों के नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने की योजना को झटका लगा है।
ऐसे में आने वाले वर्षों में कोयले पर निर्भरता बढ़ने वाली है। यहां तक कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने भी हाल ही में कहा था कि फिलहाल भारत को कोयले की ओर बढ़ना होगा। यह दर्शाता है कि कोयला मुख्य ऊर्जा चालक बनने जा रहा है और शून्य उत्सर्जन हासिल करने के लिए भारत को अपनी राह में अभी कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
आईएएनएस/RS