मध्य प्रदेश राज्य में लगभग डेढ़ दशक पहले शहरवासियों को बेहतर लोक परिवहन मुहैया कराने के लिए बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) को अमली जामा पहनाया गया। मुख्य सड़क के बीच से एक लेन बनाई गई जिस पर सिर्फ सिटी बस चलाई गई। राजधानी में बीते रोज एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों ने इस बीआरटीएस को जनता के लिए मुसीबत बताया और बताया कि यह फैसला गलत था लिहाजा इस रोड को हटाया जाएगा।
यहां बता दें कि राजधानी में मुख्य सड़क के बीच में एक विशेष परिवहन के लिए 24 किलोमीटर लंबा बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम विकसित किया गया था, इस कॉरिडोर पर सिर्फ सिटी बसें चलती हैं। जब यह कॉरिडोर बनाया गया था तब भी यही कहा गया था कि इस परियोजना से जनता को आसानी से परिवहन मिलेगा और लोग ज़्यादा से ज़्यादा लोक परिवहन सुविधा का उपयोग करेंगे, जबकि अब स्थानीय लोग समय-समय पर परेशानियों से जूझते नज़र आ रहे हैं।
नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह (Bhupendra Singh) का कहना है कि भोपाल और इंदौर की सड़कों से कॉरिडोर हटाने की मांग समय-समय पर होती रही है, सरकार के संज्ञान में भी है। इस पर काम किया जा रहा है, बीआरटीएस कॉरिडोर की व्यवस्था गड़बड़ है इससे सुविधा की बजाय लोगों को परेशानी हो रही है।
इसी तरह चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने भी कहा है कि बीआरटीएस कॉरिडोर दिक्कतें खड़ी कर रहा है इससे भोपाल से उखाड़ फेंक देना चाहिए। दोनों मंत्रियों की बात पर अमल हुआ तो सरकार ने जो लगभग साढ़े चार सौ करोड़ रुपए खर्च किए थे वह पानी में बह जाना जैसा होगा।
ज्ञात हो कि बीआरटीएस 2009 में बनना शुरू हुआ था और यह 2011 में लालघाटी चौराहे से वीर सावरकर सेतु और बोर्ड ऑफ चौराहे तक बना। 2009 में इस पर लगभग ढाई सौ करोड़ रुपए खर्च हुए, उसके बाद 10 वर्ष में दो सौ करोड़ से ज्यादा इसके रखरखाव पर अब तक खर्च किए जा चुके हैं। कुल मिलाकर साढ़े चार सौ करोड़ रुपए सरकार ने इस परियोजना पर खर्च किए हैं। अब सरकार ही इस फैसले पर सवाल उठा रही है।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अब्बास हफीज का कहना है कि सरकार के मंत्रियों का बयान यह बताता है कि बीआरटीएस का फैसला अदूरदर्शी था, यह तो जनता के टैक्स से मिली राशि की बर्बादी है, सरकार को जवाबदेही तय करनी चाहिए कि आखिर यह परियोजना किन अधिकारियों ने और मंत्रियों ने बनाई थी।
आईएएनएस (PS)