

IAS अधिकारी नागार्जुन गौड़ा पर सड़क निर्माण कंपनी से जुड़े अवैध खनन मामले में ₹51.67 करोड़ का जुर्माना घटाकर मात्र ₹4,032 करने का आरोप है, जिससे भारी वित्तीय नुकसान और रिश्वत जैसे गंभीर सवाल खड़े हुए हैं।
RTI कार्यकर्ता द्वारा मामला उजागर होने के बाद जांच प्रक्रिया, फैसले की पारदर्शिता और प्रक्रियागत खामियों को लेकर प्रशासन व मीडिया में बहस जारी है।
एथिक्स पर किताब लिखने वाले अधिकारी के विवाद में फंसने से प्रशासनिक नैतिकता, सिस्टम की विश्वसनीयता और सिविल सेवा उम्मीदवारों के भरोसे पर गहरा असर पड़ा है।
देश में प्रशासनिक सेवाओं को हमेशा ईमानदारी, नैतिकता और जवाबदेही का प्रतीक माना जाता है। आम जनता यह विश्वास करती है कि जो अधिकारी बड़े पदों पर बैठे हैं, वे कानून और संविधान के अनुसार काम करेंगे और निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज की सेवा करेंगे। इसी भरोसे के कारण प्रशासनिक व्यवस्था टिकी हुई है। जब कोई अधिकारी निर्णय लेता है, तो लोग मान लेते हैं कि उसमें नैतिकता और सच्चाई होगी। लेकिन जब यही अधिकारी, जो दूसरों को “एथिक्स” और नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाते हैं, खुद सवालों के घेरे में आ जाते हैं, तो यह भरोसा डगमगाने लगता है। ऐसे मामलों में लोग पूछने लगते हैं कि अगर नियम समझाने वाले ही नियम तोड़ें, तो आम आदमी न्याय की उम्मीद किससे करे? यही वजह है कि “एथिक्स सिखाने वाले” अधिकारियों पर उठे सवाल समाज में ज्यादा चर्चा और नाराज़गी पैदा करते हैं।
हाल के दिनों में सामने आया एक मामला इसी चिंता को और गहरा करता है। एक IAS अधिकारी पर 4 हजार रुपये से करोड़ों के घोटाले से जुड़ा मामला सामने आया है। तो आइए जानते हैं कि आखिर यह अधिकारी कौन हैं और मामला क्या है?
मामला मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी नागार्जुन गौड़ा से जुड़ा है, जो IAS अधिकारी सृष्टि देशमुख के पति हैं और इन दिनों विवादों की सुर्खियों में हैं। आरोप है कि उन्होंने एक सड़क निर्माण कंपनी पर अवैध खनन के लिए पहले ₹51.67 करोड़ का जुर्माना लगाया था, लेकिन बाद में इस जुर्माने को घटाकर केवल ₹4,032 कर दिया गया। इससे शासन को भारी वित्तीय नुकसान होने का संदेह जताया जा रहा है। कुछ लोगों का यह भी दावा है कि इस फैसले के पीछे ₹10 करोड़ की रिश्वत लेने जैसे गंभीर आरोप हैं, हालांकि संबंधित अधिकारी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है।
यह मामला सबसे पहले RTI कार्यकर्ता आनंद जाट द्वारा दस्तावेजों के माध्यम से उजागर किया गया, जिन्होंने इस फैसले पर सवाल उठाए और इसे सार्वजनिक किया। इसके बाद मीडिया और आम जनता का ध्यान इस मामले की ओर गया। अब इस मामले की जांच को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं और स्थानीय प्रशासन, मीडिया रिपोर्टों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच जांच की दिशा और गंभीरता को लेकर बहस जारी है।
इस पूरे विवाद की जड़ यह है कि एक सड़क निर्माण कंपनी पर अवैध खुदाई के लिए पहले ₹51.67 करोड़ का भारी जुर्माना लगाया गया था, लेकिन बाद में इसे घटाकर मात्र ₹4,032 कर दिया गया। इतनी बड़ी राशि को इतनी कम रकम में बदल दिए जाने से लोगों में हैरानी और आक्रोश दोनों देखने को मिला। RTI कार्यकर्ता आनंद जाट ने इस फैसले को संदिग्ध बताते हुए आरोप लगाया कि जुर्माना कम करने के पीछे करीब ₹10 करोड़ की रिश्वत लेने जैसी हेराफेरी हुई है। उनका कहना है कि ग्रामीणों के पास अवैध खनन से जुड़े फोटो और वीडियो जैसे ठोस सबूत मौजूद थे, लेकिन उन्हें जांच के दौरान शामिल नहीं किया गया।
जांच में यह बात सामने आई कि पिछले अधिकारी द्वारा जारी किया गया ₹51 करोड़ का नोटिस कई प्रक्रियागत कमियों (procedural flaws) पर आधारित था। नोटिस में खुदाई के पुख्ता प्रमाण नहीं थे और कुछ जमीनों पर पहले से ही अनुमति प्राप्त खुदाई पाई गई थी। इन्हीं कारणों के आधार पर जुर्माने की राशि कम कर दी गई।
नागार्जुन बी. गौड़ा एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी हैं और मध्य प्रदेश कैडर से जुड़े हुए हैं। वे पेशे से डॉक्टर रह चुके हैं और बाद में UPSC सिविल सेवा परीक्षा पास कर IAS बने। वे प्रसिद्ध IAS अधिकारी सृष्टि देशमुख के पति हैं। वर्तमान में नागार्जुन गौड़ा खंडवा जिला पंचायत के CEO पद पर तैनात हैं। विवाद सामने आने के बाद भी उनका मामला लगातार मीडिया और जनता की नजरों में बना हुआ है।
सृष्टि देशमुख और नागार्जुन गौड़ा दोनों ने मिलकर UPSC सिविल सेवा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए एथिक्स विषय पर एक किताब भी लॉन्च की थी। अब यह किताब भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि लोगों का कहना है कि जब एक अधिकारी पर ही भ्रष्टाचार के आरोप हों, तो वह नैतिकता पर दूसरों को क्या सिखा सकता है।
प्रशासनिक सेवाओं में एथिक्स यानी नैतिकता का बहुत बड़ा महत्व होता है, क्योंकि इन्हीं अधिकारियों से जनता न्याय, पारदर्शिता और ईमानदारी की उम्मीद रखती है। सिविल सेवा परीक्षाओं में एथिक्स एक प्रमुख विषय होता है, ताकि अधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से कर सकें।
लेकिन जब वही अधिकारी खुद विवादों में फंस जाते हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति की गलती नहीं लगती, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े हो जाते हैं। ऐसे मामलों से युवाओं और सिविल सेवा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के मन में यह शंका पैदा होती है कि क्या वास्तव में प्रशासनिक सेवाओं में एथिक्स लागू होते हैं या फिर यह सिर्फ किताबों तक सीमित रह गया है। इसी वजह से ऐसे विवाद समाज के भरोसे और प्रशासनिक नैतिकता पर गहरा असर डालते हैं। [Rh]