

12 दिसंबर से शुरू हुए इस मेले में अब तक एक लाख से अधिक लोग पहुंच चुके हैं। सरकार का मानना है कि इस मेले का उद्देश्य ग्रामीण आजीविका को सुदृढ़ बनाना, स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को मार्केटिंग (Marketing), ब्रांडिंग (Branding) और पैकेजिंग (Packaging) की उन्नत तकनीकों से जोड़ना, ग्रामीण और शहरी उपभोक्ताओं के बीच सीधा संपर्क स्थापित करना है।
इस वर्ष मेले में स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं की भागीदारी और अधिक बढ़ी है। 28 दिसंबर तक चलने वाले मेले में रोज सांस्कृतिक कार्यक्रम, उत्पाद प्रदर्शनी और थीम आधारित आयोजन हो रहे हैं।
पटना (Patna) में ठंड के बावजूद मेले में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं और लुत्फ उठा रहे हैं। इस मेले में ग्रामीण शिल्प कलाओं के कद्रदान खूब उमड़ रहे हैं।
चाची के आचार और मणिपुर के कउना घास से बनी कलाकृतियां लोगों को खूब भा रही हैं। इसके अलावा टिकुली, सिक्की, बैम्बू आर्ट, मधुबनी आर्ट, हस्तकरघा से निर्मित सामग्री और गृह सज्जा के एक से बढ़कर एक सामान यहां लाए गए हैं।
मेले में लगे स्टॉलों की ओर देखें तो अधिकांश स्टॉलों की जिम्मेदारी महिलाओं ने संभाल रखी है। लकड़ी से बने खिलौने भी लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। सरस मेले में इस बार चार नदियों गंगा, कोसी, गंडक और महानंदा के नाम पर स्टॉल सजाए गए हैं। करीब 500 स्टॉल पर ग्रामीण कलाओं की झलक दिख रही है। ठंड में खाने के लिए सोंठ, तीसी और आयुर्वेदिक लड्डू लोगों को भा रहे हैं तो बांस के बने सामानों को भी खूब पसंद किया जा रहा है।
जीविका की राज्य परियोजना प्रबंधक नाजिश बानो बताती हैं कि इस वर्ष मेले में भीड़ बढ़ी है। उन्होंने कहा कि पहुंचने वाले लोग खरीदारी भी कर रहे हैं, जिससे स्टॉल पर रहने वालों का भी उत्साह बढ़ा है।
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