
धनखड़ के इस्तीफ़े पर सरकार की सफाई
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के इस्तीफ़े ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी थी। लंबे समय से सार्वजनिक जीवन से गायब रहे धनखड़ को लेकर तरह-तरह की अटकलें लग रही थीं। कुछ विपक्षी नेताओं ने यहां तक आरोप लगाया कि उन्हें नज़रबंद (House Arrest) कर दिया गया है।
गृह मंत्री (Home Minister) अमित शाह (Amit Shah) ने पहली बार इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि “धनखड़ साहब ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफ़ा दिया है। उन्होंने अपने पत्र में साफ लिखा है कि उन्हें स्वास्थ्य संबंधी दिक़्क़तों के चलते पद छोड़ना पड़ा।” शाह ने यह भी कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री (Prime Minister) और मंत्रिपरिषद (Cabinet Ministry) का शुक्रिया अदा किया और संवैधानिक दायरे में रहते हुए अच्छा काम किया।
लेकिन विपक्ष इस सफाई से संतुष्ट नहीं है। कांग्रेस (Congress) नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने X (ट्विटर) पर लिखा कि “गृह मंत्री का बयान रहस्य को और गहरा करता है। किसान समर्थक (Farmers Protest) छवि वाले धनखड़ पिछले एक महीने से ग़ायब क्यों हैं?”
सवाल यह है कि यदि इस्तीफ़े की वजह सिर्फ स्वास्थ्य थी तो इसे पहले साफ़ क्यों नहीं किया गया? क्यों पूर्व उपराष्ट्रपति (Vice President) लगातार सार्वजनिक जीवन से दूर रहे? विपक्ष का कहना है कि यह मामला सामान्य नहीं है और इसमें राजनीतिक दबाव की बहुत बड़ी भूमिका शामिल आती है।
गृह मंत्री ने हालांकि इन अटकलों को “बेसिर-पैर का शोर” बताया और कहा कि “धनखड़ जी ने संविधान के अनुसार काम किया और अब स्वास्थ्य कारण से पद छोड़ा। इस पर ज़रूरत से ज़्यादा हंगामा न करें।”
130वां संविधान संशोधन बिल
धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के इस्तीफ़े पर बयान देने के साथ ही अमित शाह (Amit Shah) ने संसद में 130वां संविधान संशोधन (130Tth Constitutional Amendment) विधेयक भी पेश किया। यह विधेयक कहता है कि अगर कोई केंद्रीय या राज्य मंत्री (Chief Minister), चाहे प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री, गंभीर अपराध या भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में 30 दिन से ज़्यादा जेल में रहता है, तो वह पद पर नहीं रह सकेगा।
अमित शाह (Amit Shah) ने कहा, “इस देश में न प्रधानमंत्री और न मुख्यमंत्री जेल से सरकार चला सकते हैं।”
यह बयान जितना सख्त था, उतना ही विवादास्पद भी। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक क़रार दिया।
विपक्ष का तर्क
प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने इसे “तानाशाही बिल” कहा। असदुद्दीन ओवैसी (Owaisi) ने इसे “असंवैधानिक” बताया। अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने सोशल मीडिया पर लिखा, “अगर किसी नेता पर झूठा मुक़दमा डालकर 30 दिन जेल में रख दिया गया और बाद में बरी कर दिया गया, तो ग़लत आरोप लगाने वाले मंत्री को कितने साल जेल होगी?”
विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह बिल विपक्षी मुख्यमंत्रियों को हटाने का हथियार बन सकता है। कांग्रेस (Congress) और र.जे.डी (RJD) नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर ऐसा माहौल बनाएगी कि 30 दिन में ज़मानत न मिले और विपक्ष को पद छोड़ना पड़े।
र.जे.डी (RJD) सांसद मनोज झा (Manoj Jha) ने कहा, “यह सिर्फ़ एक बिल नहीं है, बल्कि विपक्ष-मुक्त लोकतंत्र बनाने की कोशिश है। साथ ही यह अपने ही प्रतिद्वंद्वियों को भी निपटाने की चाल है।” उन्होंने इशारा किया कि यह विधेयक सिर्फ़ बाहरी विपक्ष के लिए नहीं, बल्कि बीजेपि (BJP) के अंदरूनी विरोधियों को भी चुप कराने का औज़ार हो सकता है।
एन.सी.पि (NCP) नेता सुप्रिया सुले (Supriya) ने कहा कि देश में पहले से ही PMLA जैसी कड़ी क़ानून मौजूद है, फिर इसकी ज़रूरत क्यों? CPI(M) की सुभाषिनी अली (Subhashini Ali) ने कहा, “आज जो भी विपक्ष में है, वह अपराधी है। जैसे ही BJP में शामिल हो जाता है, सारे केस गायब हो जाते हैं। सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने कुर्सी संभालते ही अपने सारे मुक़दमे ख़त्म कर दिए।”
सरकार का पलटवार
अमित शाह (Amit Shah) ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस (Congress) का रवैया हमेशा दोहरा रहा है। “मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) सरकार के समय कांग्रेस ने दोषी सांसदों को बचाने के लिए अध्यादेश लाया था, जिसे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने फाड़ दिया था। अब वही राहुल, लालू यादव (Lalu Yadav) जैसे दोषी नेताओं के साथ चुनाव लड़ रहे हैं।”
शाह ने यह भी कहा कि अदालतें संवेदनशील हैं और अगर किसी को झूठे केस में फँसाया जाएगा तो अदालत 30 दिनों के भीतर ज़मानत पर फ़ैसला कर देगी।
धनखड़ का इस्तीफ़ा और 130वें संशोधन बिल पर उठी बहस एक-दूसरे से अलग नहीं है। दोनों ही घटनाएँ यह दिखाती हैं कि भारतीय राजनीति इस समय अविश्वास और शक के माहौल में फंसी हुई है।
सरकार कहती है कि उसका मक़सद जवाबदेही और पारदर्शिता है। विपक्ष मानता है कि सरकार लोकतांत्रिक ढाँचे को कमजोर कर रही है। जनता के सामने सवाल यह है कि क्या सचमुच कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जेल से सरकार चला सकता है, या यह क़ानून सिर्फ़ राजनीतिक टूल है?
और सबसे अहम बात, क्या जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा सच में सिर्फ़ स्वास्थ्य कारणों से था, या इसके पीछे कोई अनकही राजनीतिक कहानी छिपी है?
निष्कर्ष
अमित शाह (Amit Shah) का बयान विवाद को शांत करने के लिए था, लेकिन इससे सवाल और गहरे हो गए हैं। विपक्ष को लगता है कि यह लोकतंत्र को विपक्ष-विहीन बनाने की दिशा में क़दम है, जबकि सरकार इसे ईमानदारी और सुशासन का प्रतीक बता रही है।
धनखड़ का इस्तीफ़ा और 130वां संशोधन, दोनों मिलकर आज की राजनीति की असल तस्वीर दिखाते हैं, एक ओर सत्ता की रणनीति, दूसरी ओर लोकतांत्रिक संस्थाओं पर उठते सवाल। (Rh/Eth/BA)