Electoral Bond : राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए जारी होने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना लाने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहरा दिया। कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड तुरंत रोकने का आदेश दिया। अदालत ने निर्देश जारी कर कहा की स्टेट बैंक ऑफ इंडिया चुनावी बॉन्ड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण 31 मार्च तक चुनाव आयोग को भेजे। आइए समझते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है? और इसे क्यों रद्द किया गया?
इसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। इसकी व्यवस्था पहली बार वित्त मंत्री ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में की थी। केंद्र सरकार द्वारा 29 जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम लाई गई। इसके तहत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखा से भारत का कोई भी व्यक्ति या कंपनी एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ रुपये के गुणांक में बॉन्ड्स खरीदकर अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता था।
एसबीआई से बॉन्ड्स खरीदने के 15 दिनों के बीच ही इसका इस्तेमाल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के सेक्शन 29 ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए करना होता था। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने सबसे नजदीकी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में डाले गए वोटों का कम-से-कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह चुनावी बांड्स अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(A) सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह स्वतंत्रता मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक, प्रसारण, प्रेस या अन्य किसी भी रूप में हो सकती है। इसमें नागरिकों को सूचनाओं तक पहुंचने का भी अधिकार दिया गया है। यदि इलेक्टोरल बॉन्ड के विषय में ईडी, एसबीआई और सरकार जान सकती है, तो आम नागरिक को ये हक क्यों नहीं दिया गया? ऐसे में लोकतंत्र खत्म हो जायेगा।
यह फैसला 5 जजों ने सर्वसम्मति से सुनाया। कहा गया है की इलेक्शन कमीशन से 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की जानकारी पब्लिश करने के लिए कहा है। इस दिन पता चलेगा कि किस पार्टी को किसने, और कितना चंदा दिया।