
विवाद का इतिहास
कई दशकों पहले, यूक्रेन (Ukraine) सोवियत संघ का हिस्सा था, जिसका नेतृत्व रूस करता था। 1991 में सोवियत संघ टूट गया और यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बन गया। समय के साथ, यूक्रेन ने अमेरिका (America) और यूरोप के बाकी देशो से दोस्ती बढ़ाई, जो रूस को पसंद नहीं आया। रूस (Russia) चाहता था कि यूक्रेन उसके नज़दीक रहे।
2014 में, रूस (Russia) ने यूक्रेन (Ukraine) के एक हिस्से, क्रीमिया (Crimea), पर कब्ज़ा कर लिया। इससे रिश्ते और बिगड़ गए। 2022 में, रूस ने यूक्रेन पर बड़ा हमला किया और कई इलाक़ों पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। अमेरिका (America) और कई अन्य देशों ने यूक्रेन को हथियार, ट्रेनिंग और पैसा देकर मदद की। इस तरह यह युद्ध सिर्फ़ यूक्रेन कन रूस नहीं रहा, बल्कि अमेरिका और रूस के बीच भी टकराव बन गया।
व्हाइट हाउस बैठक: ट्रंप और ज़ेलेंस्की
इस साल की शुरुआत में, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की (Zelensky), अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) से मिलने व्हाइट हाउस (White House) गए। उन्होंने यूक्रेन के शहरों की सुरक्षा, मानवीय मदद बढ़ाने और रूस से शांति वार्ता करवाने के तरीकों पर चर्चा की। हालांकि दोनों नेताओं के बीच दोस्ताना माहौल था, लेकिन कोई ठोस शांति समझौता नहीं हो पाया। ज़ेलेंस्की चाहते थे कि रूस पूरी तरह पीछे हटे, जबकि रूस इसके लिए तैयार नहीं है।
अलास्का मीटिंग से पहले की मुलाक़ातें
अलास्का (Alaska) मीटिंग से पहले, ट्रंप (Trump) और पुतिन (Putin) कई बार फोन पर बात कर चुके थे और अलग-अलग देशों में मिले थे, जैसे रियाद और इस्तांबुल।
रियाद वार्ता: बातचीत के नियम तय करने पर फोकस रहा। इसमें यूक्रेन सीधे शामिल नहीं था, जिससे प्रगति धीमी रही।
इस्तांबुल वार्ता: यहां कुछ सफलता मिली। दोनों देशों ने क़ैदियों की अदला-बदली और ज़रूरी सामान पहुँचाने के लिए लड़ाई में छोटे-छोटे ब्रेक पर सहमति जताई।
मार्च समझौता: रूस ने 30 दिनों के लिए यूक्रेन के बिजली संयंत्रों पर बमबारी रोकने का वादा किया, लेकिन बाकी इलाक़ों में लड़ाई जारी रही।
अलास्का मीटिंग
15 अगस्त 2025 को, ट्रंप और पुतिन अलास्का में तीन घंटे तक आमने-सामने मिले। अलास्का को इसलिए चुना गया क्योंकि यह एक “न्यूट्रल ग्राउंड” था, यानी न रूस का इलाका और न अमेरिका का। बैठक में माहौल औपचारिक लेकिन तनावपूर्ण था।
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दोनों नेताओं ने सबसे पहले मानवीय संकट पर चर्चा की, कैसे युद्ध प्रभावित इलाक़ों में लोगों को खाना, पानी और दवाइयाँ पहुँचाई जाएं। इसके बाद, उन्होंने क़ैदियों की अदला-बदली की योजना पर बात की, ताकि पकड़े गए सैनिक और नागरिक सुरक्षित घर लौट सकें।
बैठक में एक और अहम मुद्दा था आंशिक सीज़फायर का प्रस्ताव। पुतिन ने सुझाव दिया कि कुछ इलाक़ों में अस्थायी रूप से गोलीबारी रोकी जाए, जबकि ट्रंप चाहते थे कि इसका दायरा ज़्यादा हो। लेकिन, जब ज़मीन पर नियंत्रण की बात आई, तो दोनों के विचार अलग-अलग थे। इस वजह से पूरी तरह युद्ध रोकने पर सहमति नहीं बन पाई।
शांति क्यों मुश्किल है
शांति मुश्किल होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि दोनों पक्षों की माँगें बिलकुल अलग हैं। रूस चाहता है कि यूक्रेन उन इलाक़ों को आधिकारिक रूप से छोड़ दे जिन पर रूस ने कब्ज़ा किया है। दूसरी तरफ, यूक्रेन चाहता है कि रूस अपनी सेना हर कब्ज़े वाले हिस्से से पूरी तरह हटा ले।
अमेरिका, जो यूक्रेन का समर्थन करता है, इस मामले में यूक्रेन की शर्तों के साथ खड़ा है। इसका मतलब है कि ट्रंप के लिए पुतिन को अपनी स्थिति बदलने के लिए मनाना बेहद कठिन हो जाता है।
इसके अलावा, युद्ध के मैदान में रोज़ाना होने वाली झड़पें और बमबारी किसी भी अस्थायी समझौते को लंबे समय तक टिकने नहीं देतीं। जब तक दोनों पक्ष कुछ रियायत नहीं देते, तब तक स्थायी शांति सिर्फ़ कागज़ पर ही रहेगी, ज़मीन पर नहीं।
निष्कर्ष
शांति और सीज़फायर वार्ता अभी भी जारी है। ट्रंप, पुतिन और ज़ेलेंस्की जैसे नेता कोशिश कर रहे हैं, लेकिन असली विवाद अभी भी वहीं हैं। जब तक सभी पक्ष समझौता नहीं करते, युद्ध पूरी तरह खत्म नहीं होगा और और भी मीटिंग करनी पड़ेगी। (Rh/Eth/BA)