![भारतीय राजनीति में राहुल गांधी एक ऐसा नाम हैं, जिनके बयान अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-09%2Fq3pfo73r%2Fassetstask01k27kxxy0f3ya8f8yr863w3wm1754750046img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
भारतीय राजनीति में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक ऐसा नाम हैं, जिनके बयान अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। कांग्रेस पार्टी के (Congress Party) इस बड़े चेहरे ने कई बार देश के भीतर और बाहर मंचों से अपने विचार रखे हैं, लेकिन इनमें से कई मौकों पर उनके बोल ऐसे रहे हैं, जिनसे विवाद खड़ा हो गया। कभी उनके बयान को देश की आलोचना के रूप में देखा गया, तो कभी उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि राहुल गांधी ने कुछ बातें शायद मजाक या हल्के अंदाज में कही हों, लेकिन उनका असर गंभीर निकला और लोगों ने उन्हें गैर-जिम्मेदाराना या बेवकूफी भरा मान लिया।
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के आलोचकों का मानना है कि वह विदेश में जाकर भारत की छवि पर नकारात्मक टिप्पणी करने से पीछे नहीं हटते, जबकि उनके समर्थक कहते हैं कि वह सिर्फ सच्चाई और समस्याओं को उजागर करते हैं। लेकिन चाहे मंशा कुछ भी रही हो, उनके कई बयान ऐसे रहे हैं जो राजनीतिक बहस, मीडिया कवरेज और सोशल मीडिया पर मज़ाक का विषय बन गए। आज हम राहुल गांधी के ऐसे 10 बयानों के बारे में बात करेंगे, जिनके बाद उनकी खूब आलोचना हुई और जिन्हें लेकर वे विवादों में घिर गए (Rahul Gandhi's Most Controvesial Statements)।
“भारत की आत्मा छिनी गई” लंदन सम्मेलन का बयान
राहुल गांधी ने 2022 में ‘Ideas for India’ सम्मेलन में कहा कि भारत की आत्मा दबा दी गई है (The soul of India has been suppressed), और भारत की आवाज़ संस्थागत प्रणाली द्वारा कुचल दी गई है। उन्होंने सीबीआई, ईडी जैसे संस्थानों पर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए आरोप लगाया कि ये संस्थाएं अब देश को कमजोर कर रही हैं, जैसे “खुंखार परजीवी” बन गई हैं। इस बयान पर भारतीय विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी, खासकर भाजपा ने इसे देश के भीतर भारत को बदनाम करने वाला बताया और कहा कि इस तरह की आलोचना विदेशों में गलत तरीके से सामने आई।
“खून की दलाली”, सैनिकों के बलिदान पर निशाना
2016 में, चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि वे “सैनिकों का खून बेच रहे हैं” (“khoon ki dalali”)। यह बयान यानी सैनिकों के बलिदान का अपमान माना गया। भाजपा नेताओं ने इसे बेहद हद पार करने वाला और अनुचित बताया, और कांग्रेस को शर्मसार कर दिया
"लोकतंत्र ढह गया", विदेश नीति पर तल्ख सवाल
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने विदेश नीति पर कटु टिप्पणी की और पूछा कि क्या विदेश कार्यालय इस बात पर बात करेगा कि भारत को अकेला छोड़ दिया गया। उन्होंने सवाल किया कि क्या कोई देश भारत के साथ आगे नहीं आया। जिस पर बीजेपी ने कहा कि उन्होंने विदेशों में बैठकर देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को धब्बेदार किया।
“गरीबी केवल मानसिक अवस्था है”
2013 में इलाहाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा: “गरीबी केवल मानसिक स्थिति है (Poverty is just a state of mind), यह सिर्फ आत्मविश्वास का माइल का मामला है।” इससे कई लोगों को लगा कि उन्होंने गरीबों की वास्तविक परिस्थितियों को नजरअंदाज किया है। आलोचकों ने इसे घमंडपूर्ण और असंवेदनशील कहा, विशेषकर गरीबी का मज़ाक उड़ाने वाला बयान माना गया।
जब राहुल गांधी ने की यूरोप से भारत की तुलना
लंदन में एक भाषण में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा कि अमेरिका और यूरोप लोकतंत्र के रक्षकों को नजरअंदाज कर रहे हैं, जबकि भारत में लोकतंत्र कमजोर (India's Democracy Is Weak) हुआ है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्यों लोकतंत्रवादी देशों ने भारत पर ध्यान नहीं दिया। बीजेपी ने इसे देश के अंदर विदेशी हस्तक्षेप की मांग बताते हुए आलोचना की।
“मुद्दती सैन्य भर्ती योजना में दो किस्म के जवान”
उत्तर प्रदेश के रैबरेली (Raebareli, Uttar Pradesh) में एक रैली में, उन्होंने जवानों को दो श्रेणियों में विभाजित किया, एक गरीब और पिछड़े वर्ग का, दूसरे अमीर वर्ग का; गरीबों को “अग्निवीर” कहा। यह बयान सेना का विभाजन करने वाला माना गया। कई पूर्व सैनिक और बीजेपी नेताओं ने इसे देशभक्ति पर आपत्ति जताते हुए कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की छवि खराब कर दी।
अमेरिका-यूके को भारत के लोकतंत्र में हस्तक्षेप करना चाहिए
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने एक भाषण में कहा कि पश्चिमी देशों को भारत में लोकतंत्र बहाल करने में भूमिका निभानी चाहिए। इससे देश के अंदर कांग्रेस के नेताओं पर आरोप लगे कि वे विदेशों की मदद से भारत को बदनाम करने की रणनीति अपनाना चाहते हैं। कांग्रेस ने इसका बचाव करते हुए कहा कि सवाल लोकतंत्र के रक्षा पर था, न कि देश के खिलाफ।
“सारे चोरों का सरनेम मोदी क्यों है?
लोकसभा चुनाव 2019 (Loksabha Election 2019) के दौरान, कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी ने कहा: “सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है?” इस बयान पर भाजपा नेताओं और आम जनता ने तीखी प्रतिक्रिया दी। कई लोगों ने इसे अनुचित और अपमानजनक करार दिया, और इस पर मानहानि का मुकदमा भी दायर हुआ था। अदालत ने उन्हें दो साल की सज़ा सुनाई, जिससे सांसद पद पर भी असर हुआ।
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अथक आलोचना, पराए मंच से ताले का वार
वाशिंगटन या यूरोप जैसे मंचों से राहुल गांधी ने बार-बार भारतीय संस्थानों और राजनीतिक हालात पर तीखी टिप्पणियाँ की हैं। कांग्रेस ने कहा कि यह लोकतंत्र सुधार का हिस्सा है, जबकि भाजपा ने इसे भारत की इज्जत धूमिल करने वाला बताया। इस तरह के वक्तव्य ने उन्हें “निरादर”, “ग़ैर जिम्मेदार” और “बे-लाज” नेता कहकर निशाना बनाया।
“भारत का लोकतंत्र टूटा हुआ है
लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Election 2024) के तुरंत बाद, अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में उन्होंने कहा कि “भारत में पिछले 10 साल से लोकतंत्र टूटा हुआ है।” इस बयान को विपक्षी दलों और मीडिया ने देश-हित के खिलाफ बताया। उन्हें ‘देशद्रोही’ बताने तक की प्रतिक्रिया आई, क्योंकि कई लोग मानते हैं कि ऐसी बातें देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को प्रभावित कर सकती हैं
राहुल गांधी के ये बयान भारतीय राजनीति में लगातार विवाद और बहस का विषय बने रहे हैं। चाहे उनकी मंशा लोकतंत्र की रक्षा और समस्याओं को उजागर करने की रही हो, लेकिन शब्दों की तीक्ष्णता और मंच के चयन ने अक्सर उन्हें आलोचना के घेरे में ला दिया। विरोधियों ने उन्हें गैर-जिम्मेदार और देश की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला नेता बताया, जबकि समर्थकों ने इसे सच्चाई बोलने का साहस कहा। इन बयानों से साफ है कि राजनीति में शब्दों का असर गहरा होता है और सार्वजनिक मंच पर कही गई हर बात का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव दूरगामी हो सकता है। [Rh/SP]