बिहार की राजनीति में अपराध का राज: जंगलराज से गुंडाराज तक का खौफनाक सफर

बिहार (Bihar) की सियासत (Politics) में 'जंगलराज' (Jungle Raj) और 'गुंडा NDA'(Gunda NDA RAJ ) जैसे शब्द सिर्फ नारे नहीं, बल्कि उस लंबी आपराधिक कहानी का हिस्सा हैं जिसमें नेताओं का अपराधियों से गठजोड़, जातीय हिंसा, नरसंहार और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है। लालू से नीतीश तक, हर दौर ने अपराध के नए अध्याय लिखे हैं।
बिहार की राजनीति और अपराध का रिश्ता नया नहीं है। कभी जंगलराज, कभी गुंडाराज, तो अब गुंडNDA राज, यह शब्द बिहार की राजनीति में समय के साथ गूंजते रहे हैं। (Sora AI)
बिहार की राजनीति और अपराध का रिश्ता नया नहीं है। कभी जंगलराज, कभी गुंडाराज, तो अब गुंडNDA राज, यह शब्द बिहार की राजनीति में समय के साथ गूंजते रहे हैं। (Sora AI)
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बिहार (Bihar) की राजनीति (Politics)और अपराध का रिश्ता नया नहीं है। कभी जंगलराज, (Jungle Raj) कभी गुंडाराज, तो अब गुंडNDA राज, (Gunda NDA RAJ )यह शब्द बिहार की राजनीति में समय के साथ गूंजते रहे हैं। यह राज्य एक तरफ ऐतिहासिक गौरव से भरा है, तो दूसरी ओर आपराधिक घटनाओं, बाहुबली नेताओं और भ्रष्टाचार की काली छाया से भी।

‘गंगाजल’ से ‘गुंडा राज’ तक : फिल्में जो बिहार की हकीकत बताती हैं

2003 में अजय देवगन की फिल्म ‘गंगाजल’ और इससे पहले ‘शूल’ जैसी फिल्मों में बिहार की कानून-व्यवस्था और सियासत में अपराध के घालमेल को दिखाया गया था। ‘गंगाजल’ में ईमानदार अफसर और भ्रष्ट तंत्र की लड़ाई थी, जबकि ‘शूल’ में एक आम इंस्पेक्टर का संघर्ष, जो राजनीतिक (Politics) अपराधियों के खिलाफ अकेला खड़ा था। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘खाकी: द बिहार चैप्टर’ जैसी नई फिल्में भी इसी पृष्ठभूमि पर आधारित थीं। ये फिल्में दर्शाती हैं कि बिहार का आपराधिक इतिहास सिनेमा का भी पसंदीदा विषय रहा है।

मगध की धरती से अपराध की गलियों तक

बिहार (Bihar) वही राज्य है जहां बिम्बिसार, अजातशत्रु और सम्राट अशोक जैसे ऐतिहासिक शासक हुए। लेकिन आजादी के बाद लोकतंत्र की बहाली के साथ बिहार की राजनीति में बाहुबलियों और अपराधियों की घुसपैठ बढ़ती गई। 1970 के दशक में भूमि आंदोलनों के नाम पर हिंसा भड़की और दलित-पिछड़ा बनाम सवर्ण की लड़ाई तेज हुई। बेलछी (1977) और मियांपुर (2000) जैसे नरसंहार इसकी मिसाल हैं।

'जंगलराज' की शुरुआत: लालू-राबड़ी के दौर की कहानी

1990 के दशक में जब लालू प्रसाद यादव सत्ता में आए, तो उन्होंने सामाजिक न्याय का नारा दिया। लेकिन जल्द ही उनके शासन को 'जंगलराज' (Jungle Raj) कहा जाने लगा। 1990 से 1997 तक लालू यादव मुख्यमंत्री रहे और इस दौर में चारा घोटाला जैसे बड़े भ्रष्टाचार के मामले सामने आए। पशुपालन विभाग में फर्जी बिलों से 900 करोड़ रुपये की अवैध निकासी हुई। लालू को इस्तीफा देना पड़ा और बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। राबड़ी देवी के शासनकाल में भी कई जघन्य अपराध हुए। 1997 में लक्ष्मणपुर बाथे में रणवीर सेना ने 58 दलितों की हत्या कर दी। 1999 में शंकर बिगहा में 23 लोगों की हत्या हुई। 1996 में बथानी टोला नरसंहार हुआ, जिसमें 21 दलितों की जान ली गई। इन घटनाओं में आरोपियों को सजा नहीं मिली, जिससे कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए।

1990 के दशक में जब लालू प्रसाद यादव सत्ता में आए, तो उन्होंने सामाजिक न्याय का नारा दिया। लेकिन जल्द ही उनके शासन को 'जंगलराज' कहा जाने लगा।  (Sora AI)
1990 के दशक में जब लालू प्रसाद यादव सत्ता में आए, तो उन्होंने सामाजिक न्याय का नारा दिया। लेकिन जल्द ही उनके शासन को 'जंगलराज' कहा जाने लगा। (Sora AI)

5 अगस्त 1997 को पटना हाई कोर्ट ने राज्य की कानून-व्यवस्था को देखकर टिप्पणी दी कि "बिहार (Bihar) में अब सरकार नहीं, जंगलराज (Jungle Raj) चल रहा है।" यही से यह शब्द राजनीतिक (Politics) हथियार बन गया, जिसका इस्तेमाल एनडीए, खासकर बीजेपी ने लालू-राबड़ी के खिलाफ बार-बार किया। राबड़ी देवी के कार्यकाल में राजनीति में कई कुख्यात नाम सामने आए, जैसे शहाबुद्दीन (हत्या-अपहरण केस, आरजेडी नेता), साधु यादव (राबड़ी के भाई, कई मामलों में नाम), अनंत सिंह (मोकामा के बाहुबली नेता, गैंगवार से जुड़े), सूरजभान सिंह, पप्पू यादव, मुन्ना शुक्ला, आनंद मोहन, इन सभी पर गंभीर आरोप लगे थे।

उसके बाद 24 नवंबर 2005 को जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद संभाला, तो उन्होंने कानून-व्यवस्था सुधारने का बीड़ा उठाया। अपराधियों पर कार्रवाई शुरू हुई, अवैध हथियार और शराब पर शिकंजा कसा गया, सड़कों और स्कूलों का विकास हुआ। इस वजह से उन्हें ‘सुशासन बाबू’ कहा जाने लगा। आपको बता दें, नीतीश कुमार की सरकार 2005 से अब तक लगभग दो दशकों तक सत्ता में रही है, लेकिन हाल के वर्षों में उनकी सरकार पर भी अपराध को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। गोपाल खेमका हत्याकांड (2025), पटना में क्लब से लौटते समय हत्या। रूपेश सिंह हत्याकांड (2021), इंडिगो मैनेजर की पटना में हत्या। मुजफ्फरपुर शेल्टर होम (2018), 30 से अधिक लड़कियों से यौन शोषण। ये सभी अपराध नितीश कुमार के हत्याकांड में हुए हैं।

उसके बाद 2025 में कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि अपराध में 323% बढ़ोतरी हुई है। और हत्याओं में 262% वृद्धि हुई है। महिला अपराधों में 336% और बच्चों के खिलाफ अपराध में 7062% वृद्धि हुई है। तेजस्वी यादव ने भी सरकार को ‘गुंडा NDA’ राज कहकर घेरा और कहा कि अब कानून व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। तेजस्वी यादव का आरोप है कि नीतीश कुमार अब खुद सत्ता में सक्रिय नहीं हैं। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा असली नियंत्रण में हैं। ‘भ्रष्ट भूंजा पार्टी मस्त है, पुलिस पस्त’, ये लाइन तेजस्वी के ट्वीट की थी, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।

बिहार की राजनीति और अपराध की कहानी एक दर्पण है, जिसमें सत्ता, जाति, गरीबी और लालच की परतें खुलती हैं। (Sora AI)
बिहार की राजनीति और अपराध की कहानी एक दर्पण है, जिसमें सत्ता, जाति, गरीबी और लालच की परतें खुलती हैं। (Sora AI)

निष्कर्ष

बिहार (Bihar) की राजनीति (Politics) और अपराध की कहानी एक दर्पण है, जिसमें सत्ता, जाति, गरीबी और लालच की परतें खुलती हैं। लालू यादव और राबड़ी देवी के दौर को ‘जंगलराज’ (Jungle Raj) कहा गया, लेकिन नीतीश कुमार के दो दशकों के शासन में भी अपराध पूरी तरह नहीं थमा। अब एनडीए की सहयोगी पार्टियां ही ‘सुशासन’ पर सवाल उठा रही हैं।

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अपराध के ये आंकड़े और घटनाएं सिर्फ एक राज्य की कहानी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की उस विफलता का प्रतीक हैं, जहां कानून सिर्फ कागज़ पर ज़िंदा है और बंदूकें सड़कों पर बोलती हैं। सवाल सिर्फ यह है की, क्या बिहार फिर उसी अंधेरे दौर में लौट रहा है ? [Rh/PS]

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