
भारत के 14वें प्रधानमंत्री (Prime Minister) डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) का जन्म 4 फरवरी 1932 को पाकिस्तान (Pakistan) के पंजाब प्रांत के छोटे से गांव गाह में हुआ था। यह गांव अब पाकिस्तान के चकवाल ज़िले में आता है और इस्लामाबाद से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित है। खेतों और पहाड़ियों से घिरा यह शांत गांव, आज भी अपने उस लाल को नहीं भूला जिसने भारत जैसे विशाल देश का नेतृत्व किया।
डॉ. सिंह के बचपन का नाम ‘मोहना’ था। वो कपड़ा व्यापारी गुरमुख सिंह और गृहिणी अमृत कौर के पुत्र थे। उन्होंने गांव (Gah Village) के ही प्राथमिक विद्यालय में कक्षा चार तक पढ़ाई की, जो उस समय वहां की सबसे ऊंची कक्षा मानी जाती थी। स्कूल के रजिस्टर में आज भी उनका नाम दर्ज है, प्रवेश संख्या 187, दिनांक 17 अप्रैल 1937। गांव वाले आज भी यह किस्सा गर्व से सुनाते हैं कि कैसे ‘मोहना’ पढ़ाई में तेज था और सबका प्यारा भी था।
1947 में भारत-पाकिस्तान (India-Pak) के बंटवारे के बाद डॉ. सिंह का परिवार भारत आ गया और फिर वो कभी अपने गांव गाह वापस नहीं लौट सके। लेकिन गांव वालों के दिलों में उनका नाम और उनकी उपलब्धियाँ हमेशा बनी रहीं। उन्हें वहां आज भी "गांव का वह लड़का जो प्रधानमंत्री बना" कहकर याद किया जाता है।
जब 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) भारत के प्रधानमंत्री बने, तो उनके गांव गाह की चर्चा पाकिस्तान (Pakistan) में भी तेज़ हो गई। गांव वालों ने गर्व के साथ बताया कि भारत का प्रधानमंत्री उनके गांव से है। इसी गर्व और सम्मान की भावना ने पाकिस्तान (Pakistan) सरकार को प्रेरित किया कि गाह को "आदर्श गांव" घोषित किया जाए। इसके बाद गांव में बुनियादी विकास कार्य शुरू हुए, एक हाई स्कूल, पशु चिकित्सालय, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र और पक्की सड़कें बनीं। गांव के लोग आज भी मानते हैं कि यह सब डॉ. मनमोहन सिंह की विश्व पहचान और प्रभाव के चलते ही संभव हुआ।
(Prime Minister) डॉ. सिंह भले ही गाह न लौट सके हों, लेकिन उन्होंने वहां की यादों को कभी नहीं छोड़ा। 2008 में उन्होंने अपने बचपन के दोस्त राजा मोहम्मद अली को भारत आमंत्रित किया था। जब राजा दिल्ली में उनसे मिलने आए, तो यह मुलाकात पूरे गांव के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बन गई। गांव में यह आज भी याद किया जाता है कि प्रधानमंत्री ने अपने पुराने मित्र को नहीं भूला।
डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया, उस समय गाह गांव (Gah Village) में शोक की लहर दौड़ गई। उनके पुराने स्कूल के शिक्षक अल्ताफ हुसैन ने कहा, “ऐसा लग रहा है जैसे अपने ही परिवार का कोई सदस्य चला गया हो।” गांव वालों ने उनकी याद में शोक सभा आयोजित की और उनके लिए प्रार्थनाएं कीं।
डॉ. सिंह के पुराने प्राथमिक विद्यालय को अब उनके नाम से जोड़े जाने की मांग हो रही है। गांव के लोगों का कहना है कि जिस जगह से उनका जीवन शुरू हुआ, उसे उनकी याद में संरक्षित और सम्मानित किया जाना चाहिए। यह स्कूल गांव वालों के लिए गर्व का प्रतीक है और वो चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी जानें कि यहां से एक महान नेता निकला था।
गाह गांव (Gah Village) की यह लोकप्रियता भारत तक भी पहुँची। ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) ने इस गांव में पर्यावरण अनुकूल योजनाएं चलाईं, जैसे सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइटें और मस्जिद में सोलर गीजर की स्थापना। यह पहल दर्शाती है कि (Prime Minister) डॉ. सिंह की विरासत सिर्फ राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने एक सॉफ्ट डिप्लोमैसी का भी प्रतीक बनकर दोनों देशों के बीच जुड़ाव का संदेश दिया।
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डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वो जितने बड़े पद पर पहुँचे, उतने ही विनम्र बने रहे। उन्होंने कभी अपने गांव को नहीं भुलाया, न ही उन मूल्यों को जो उन्होंने बचपन में सीखे थे।वो हमेशा कहते थे कि शिक्षा और सच्चाई ही इंसान को आगे बढ़ाती है, और यह सोच उन्हें गाह से ही मिली थी।
निष्कर्ष
गाह गांव (Gah Village) और (Prime Minister) डॉ. मनमोहन सिंह की यह कहानी केवल एक व्यक्ति की सफलता की नहीं, बल्कि उस गहरे संबंध की है जो इंसान को अपनी मिट्टी से जोड़े रखता है। भले ही वो कभी लौट नहीं सके, लेकिन उनकी आत्मा हमेशा गाह की गलियों में गूंजती रही। गांव वालों के लिए वो आज भी ‘मोहना’ हैं, वह लड़का जो कभी खेतों के बीच दौड़ता था और एक दिन पूरी दुनिया का सम्मानित नेता बन गया। आज दुनिया उन्हें एक अर्थशास्त्री, एक प्रधानमंत्री और एक शांति-प्रिय नेता के रूप में याद करती है, और गाह के लोग उन्हें अपने बेटे, अपने भाई, और अपने ‘गांव वाले मोहना’ के रूप में याद करते हैं, जो भले दूर था, पर कभी पराया नहीं हुआ। [Rh/PS]