![राजीव गांधी को भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता है। [SORA AI]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-17%2Fxubs3pna%2Fassetstask01k0c22vcwf2ztt4qmf1pfham91752751543img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) को भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री (Prime Minister) के रूप में जाना जाता है। वो एक ऐसे समय में राजनीति में आए जब इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया था। बतौर पेशेवर पायलट राजनीति से कोसों दूर रहने वाले राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) अचानक देश की बागडोर संभालने को मजबूर हो गए। उनकी सरल और सॉफ्ट स्पोकन छवि ने जनता को उम्मीद दी, लेकिन ये उम्मीद जल्द ही विवादों और गलत फैसलों में बदल गई। आज भी कांग्रेस पार्टी (Congress Party) को उनके कुछ निर्णयों का राजनीतिक बोझ ढोना पड़ता है। ये वही फैसले हैं जो हर चुनाव, हर बहस और हर विरोध का हिस्सा बन जाते हैं। आइए जानते हैं वो विवादित फैसले जो आज भी कांग्रेस (Congress) की गर्दन पर चिपके हुए हैं।
शाह बानो केस: धर्म की राजनीति या न्याय की हत्या?
1985 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Of India) ने शाह बानो (Shah Bano) नाम की मुस्लिम महिला के पक्ष में फैसला दिया, जिसमें कहा गया था कि तलाक के बाद भी महिला को पति से भरण-पोषण मिलना चाहिए। लेकिन इस फैसले से मुस्लिम समुदाय के कुछ धर्मगुरु नाराज़ हो गए। दबाव में आकर राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) सरकार ने “मुस्लिम महिला (तलाक के बाद संरक्षण) अधिनियम” पास किया, जिसने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Of India) के फैसले को निष्क्रिय कर दिया। इस कानून के मुताबिक तलाक लेने के बाद मुस्लिम महिला केवल तीन महीने तक ही गुजारा भत्ता मिलेगा। यह कानून राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के कार्यकाल के लिए सबसे बड़ी आफत बना। इस कदम को महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ और तुष्टीकरण की राजनीति करार दिया गया। कांग्रेस को इसका खामियाजा कई चुनावों में भुगतना पड़ा और ये फैसला आज भी "माइनॉरिटी अपीज़मेंट" ("Minority Appeasement") की बहस का केंद्र बना हुआ है।
बोफोर्स घोटाला: एक दाग जो कभी धुला नहीं
1986 में स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स से 410 फील्ड होवित्जर तोपों की डील में करोड़ों रुपये के घूस लेने का आरोप लगा। इस डील ने राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की छवि को गहरा धक्का पहुँचाया। विपक्ष ने उन्हें 'मिस्टर क्लीन' से 'मिस्टर करप्ट' बना डाला। पत्रकारिता, संसद और अदालतों में यह मुद्दा सालों तक गूंजता रहा। राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की सरकार के पतन में इस घोटाले की बड़ी भूमिका मानी जाती है। कांग्रेस ने इस मुद्दे से उबरने की लाख कोशिशें कीं लेकिन हर बार बोफोर्स का नाम सामने आ ही जाता है।
सिख विरोधी दंगे: चुप्पी जो आज भी सवालों में है
1984 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या के बाद दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में भयानक सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर दंगों को भड़काने के गंभीर आरोप लगे। राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने उस समय यह विवादित बयान दिया: "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है।" यह बयान उनके खिलाफ एक नैतिक प्रश्न बन गया। सरकार की निष्क्रियता और न्याय की देरी ने इस घटना को कांग्रेस (Congress) के इतिहास का एक काला धब्बा बना दिया। आज भी कांग्रेस को सिख समुदाय से जुड़े कई क्षेत्रों में आलोचना झेलनी पड़ती है।
श्रीलंका में IPKF भेजना
राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने 1987 में भारत-श्रीलंका शांति समझौते के तहत IPKF (Indian Peace Keeping Force) को श्रीलंका में तमिल टाइगर्स से लड़ने भेजा। यह निर्णय जल्दबाज़ी में लिया गया था और भारतीय सैनिकों को भारी जान-माल की हानि उठानी पड़ी। IPKF को न श्रीलंकाई सरकार पसंद करती थी, न ही तमिल जनता। सैनिकों को असहनीय परिस्थितियों में लड़ना पड़ा। इस अभियान के चलते भारत-श्रीलंका संबंधों में दरार आई और राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की छवि पर भी असर पड़ा। अंततः यही मुद्दा उनकी हत्या की एक बड़ी वजह भी बना।
सेंसरशिप और प्रेस की आज़ादी पर वार
राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) का कार्यकाल "Defamation Bill" के लिए भी जाना जाता है। 1988 में उन्होंने एक बिल पेश किया था, जिसका उद्देश्य मीडिया पर नियंत्रण बढ़ाना था। इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला माना गया। पत्रकारों, लेखकों और सामाजिक संगठनों ने ज़बरदस्त विरोध किया, जिसके चलते सरकार को बिल वापस लेना पड़ा। यह घटना भी कांग्रेस के खिलाफ एक ऐसे आरोप के रूप में उभरी जिसने पार्टी को अभिव्यक्ति की आज़ादी विरोधी बना दिया।
भोपाल गैस ट्रेजेडी के मुख्य आरोपी को भगाना
1984 में जब पूरी दुनिया की सबसे खतरनाक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस कांड (Bhopal gas scandal) हुआ, तब भारत की जनता सदमे में थी। यूनियन कार्बाइड कंपनी की लापरवाही के चलते हजारों लोग दम घुटने से मारे गए और लाखों लोग स्थायी रूप से प्रभावित हुए। लेकिन इस घटना के बाद जो सबसे बड़ा झटका देश को लगा, वह था इस हादसे के मुख्य आरोपी, यूनियन कार्बाइड के सीईओ वारेन एंडरसन (Anderson) को भारत से सुरक्षित बाहर भेज देना।
यह घटना तब और भी विवादित हो गई जब यह सामने आया कि वारेन एंडरसन(Anderson) को भारत आने के बाद तुरंत गिरफ्तार किया गया था, लेकिन कुछ ही घंटों में उन्हें विशेष विमान से अमेरिका रवाना कर दिया गया। रिपोर्ट्स और कई अफसरों के बयान के अनुसार, इस पूरी प्रक्रिया में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की सहमति और संलिप्तता की बात सामने आई। कहा जाता है कि अमेरिका से रिश्ते खराब न हों, इस दबाव में एंडरसन (Anderson) को बिना मुकदमा चलाए ही छोड़ दिया गया।
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राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने भारत को आधुनिक टेक्नोलॉजी की ओर बढ़ाया, इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन उनके कुछ फैसले आज भी कांग्रेस को पीछे खींचते हैं। शाह बानो केस से लेकर बोफोर्स तक, सिख दंगों से लेकर IPKF तक, हर विवाद कांग्रेस की राजनीतिक पूंजी पर चोट करता है। यही कारण है कि विरोधी दल हर चुनाव में इन मुद्दों को उछालकर कांग्रेस को घेरते हैं। राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के वो ‘काले पन्ने’ अब कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य पर साया बनकर मंडरा रहे हैं। [Rh/SP]