ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने अपने पहले के रुख को दोहराते हुए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code/UCC) को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी कदम करार दिया है। एआईएमपीएलबी(AIMPLB) ने कहा कि इस मामले को वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए ये कदम उठाया गया है और कहा कि यह निर्णय मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं है।
AIMPLB के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि संविधान(Constitution) ने देश के प्रत्येक नागरिक को उसके धर्म के अनुसार जीने की अनुमति दी है।
रहमानी ने कहा कि उत्तराखंड(Uttarakhand) और उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) सरकारों या केंद्र सरकार(Central government) द्वारा समान नागरिक संहिता(UCC) को अपनाने की बात सिर्फ बयानबाजी है और हर कोई जानता है कि उनका उद्देश्य बढ़ती महंगाई, गिरती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ध्यान हटाना है।
"समान नागरिक संहिता(UCC) का मुद्दा वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने और नफरत और भेदभाव के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है। यह संविधान विरोधी कदम मुसलमानों को बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसकी कड़ी निंदा करता है और आग्रह करता है कि सरकार को इस तरह की हरकतों से बचना चाहिए।"
एआईएमपीएलबी का बयान हिमाचल प्रदेश(Himachal Pradesh) के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर(Jai Ram Thakur) द्वारा यूसीसी को एक अच्छी अवधारणा के रूप में सराहे जाने के एक दिन बाद आया है और कहा कि उनकी सरकार इसे लागू करने के लिए तैयार है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी(CM Pushkar Singh Dhami) ने भी कहा है कि जल्द ही UCC का मसौदा तैयार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा और राज्य में सांप्रदायिक शांति को किसी भी कीमत पर बाधित नहीं होने दिया जाएगा।
नवंबर 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूसीसी अनिवार्य है। यह बात न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कही, जो अंतर-धार्मिक जोड़ों द्वारा मांगी गई सुरक्षा से संबंधित 17 याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी।
याचिकाओं की अनुमति देते हुए, न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा व्यक्त किए गए भय के कारण यूसीसी को विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता है।
आईएएनएस(DS)