![ATS के पूर्व अधिकारी ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि जब मालेगांव धमाका हुआ तो RSS के प्रमुख मोहन भागवत को उच्च अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार करने को कहा गया था। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-02%2F7e27onea%2Fassetstask01k1nbf3jeenjv3dw0wvs6zj8a1754137191img1.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
अभी कुछ दिन पहले ही मालेगांव बम धमाके (Malegaon Bomb Blasts) से जुड़े मामले में साध्वी प्रज्ञा (Sadhvi Pragya) और कर्नल पुरोहित समेत 7 लोगों को बरी कर दिया गया था और पूरे भारत में इस बात पर जश्न का माहौल भी देखने को मिला लेकिन ठीक उसके अगले ही दिन ATS के पूर्व अधिकारी ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि जब मालेगांव धमाका (Malegaon Blasts) हुआ तो RSS के प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) को उच्च अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार करने को कहा गया था। अब इस बयान से पूरे देश भर में कई सवाल उठ रहें है कि आखिर मोहन भागवत के गिरफ्तारी की साज़िश क्यों की गई थी? भगवा आतंकवाद (Bhagwa Atankwad) क्या है जिसके तहत RSS और अन्य हिन्दू लोगों पर निशाना साधा जा रहा था? आइए जानतें हैं।
मोहन भागवत कौन हैं?
मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वर्तमान सरसंघचालक हैं, जो इस पद पर वर्ष 2009 से कार्यरत हैं। उनका जन्म 11 सितंबर 1950 को चंद्रपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता माधव भागवत स्वयं भी संघ से जुड़े हुए थे और एक प्रचारक के रूप में कार्यरत थे, जिससे मोहन भागवत का जुड़ाव भी बाल्यकाल से ही संघ से हो गया। मोहन भागवत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चंद्रपुर से प्राप्त की और फिर वेटरिनरी साइंस (पशु चिकित्सा विज्ञान) में स्नातक की पढ़ाई नागपुर से की। पढ़ाई के दौरान ही वे पूर्णकालिक प्रचारक बन गए।
1975 में आपातकाल के दौरान उन्होंने भूमिगत रहकर संघ के कार्यों को आगे बढ़ाया। वे धीरे-धीरे संघ के भीतर विभिन्न पदों पर आसीन होते गए, जिला प्रचारक, विभाग प्रचारक, प्रांतीय प्रचारक और फिर अखिल भारतीय सेवा प्रमुख। 2000 में उन्हें सरकार्यवाह (महासचिव) नियुक्त किया गया और 2009 में के. एस. सुदर्शन के बाद उन्हें RSS का सरसंघचालक बनाया गया। भागवत ने देश की सांस्कृतिक चेतना, हिंदुत्व विचारधारा और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। वे साफ शब्दों में अपनी बात रखते हैं और समय-समय पर राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने विचार भी रखते रहे हैं। अपने कठोर अनुशासन और समर्पण के लिए वे संघ और बाहर, दोनों जगह सम्मानित नेता माने जाते हैं।
मालेगांव धमाका मामला: एक नजर पूरी कहानी पर
मालेगांव धमाका (Malegaon Blasts) भारत के महाराष्ट्र राज्य के नासिक ज़िले के मालेगांव शहर में हुआ एक बड़ा आतंकी हमला था। 29 सितंबर 2008 को हुए इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। यह धमाका एक मोटरसाइकिल में बम लगाकर किया गया था, जो एक मस्जिद के पास खड़ी थी।
शुरुआती जांच और ATS की कार्रवाई
पहले इस हमले के पीछे इस्लामी आतंकी संगठनों की भूमिका की आशंका जताई गई थी, लेकिन बाद में महाराष्ट्र ATS (Anti-Terrorism Squad) ने जांच का रुख बदला। ATS ने दावा किया कि इस धमाके में हिंदू कट्टरपंथी संगठनों का हाथ है। इस केस में जिन लोगों के नाम सामने आए, उनमें सबसे चर्चित नाम थे: साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित, स्वामी दयानंद पांडे। ATS ने आरोप लगाया कि ये सभी एक कथित संगठन "अभिनव भारत" से जुड़े हुए थे और देश में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा फैलाने की योजना बना रहे थे।
साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को 2008 में गिरफ्तार किया गया और उन्होंने सालों जेल में बिताए। कर्नल पुरोहित को उनके सैन्य पद से सस्पेंड कर दिया गया था और उन पर देशद्रोह जैसी गंभीर धाराएं लगाई गई थीं। करीब 9 साल बाद, लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद कोर्ट ने पाया कि: प्रज्ञा ठाकुर पर लगाए गए कई आरोपों के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है और कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी और पूछताछ में कई प्रक्रियात्मक खामियां थीं। 2017 में दोनों को बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। बाद में साध्वी प्रज्ञा 2019 में भाजपा की ओर से भोपाल से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं।
क्यों हुई मोहन भागवत को फंसाने की साजिश?
मालेगांव धमाकों (Malegaon Blasts) की जांच सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं थी, बल्कि समय के साथ यह राजनीतिक और वैचारिक टकराव का केंद्र बन गई। जैसे ही महाराष्ट्र ATS ने जांच की दिशा हिंदू संगठनों की ओर मोड़ी, कई सवाल उठने लगे जैसे क्या यह निष्पक्ष जांच है या किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा? इन्हीं सवालों के बीच एक गंभीर आरोप सामने आया कि इस केस के बहाने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और इसके प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) को बदनाम करने की कोशिश की गई थी।
2018 में इस मामले ने तब ज़ोर पकड़ा जब एक आरोपी साधु स्वामी असीमानंद ने दावा किया कि उस पर दबाव डाला गया था कि वह मोहन भागवत का नाम ले। हालांकि कोर्ट में इस बयान का कोई कानूनी आधार साबित नहीं हुआ, लेकिन इसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। भाजपा और संघ के समर्थकों का आरोप रहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार और कुछ जांच एजेंसियों ने जानबूझकर "हिंदू आतंकवाद"(Bhagwa Atankwad) का नैरेटिव खड़ा करने के लिए यह साजिश रची। इस बहस को बल तब मिला जब बाद में कई आरोपियों को जमानत मिल गई और अदालतों में सबूतों की कमी उजागर हुई।
मोहन भागवत ने स्वयं इस पर कभी सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन संघ ने बार-बार यह दोहराया कि उनके प्रमुख को निशाना बनाना एक राजनीतिक साजिश थी, जिससे देश की सबसे बड़ी सांस्कृतिक संस्था को बदनाम किया जा सके। इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या आतंकी हमलों की जांच भी राजनीति से अछूती रह पाती है? और क्या किसी व्यक्ति या संस्था को विचारधारा के आधार पर निशाना बनाना लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है?
जब कांग्रेस सरकार ने लगाए थे "भगवा आतंकवाद" के नारे
2008 से 2013 के बीच जब देश में कांग्रेस की यूपीए सरकार सत्ता में थी, तब आतंकवाद पर होने वाली बहस में एक नया शब्द सामने आया, "भगवा आतंकवाद"(Bhagwa Atankwad)। यह शब्द पहली बार 2010 में तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम द्वारा एक भाषण में प्रयोग किया गया था। इसके बाद यह एक राजनीतिक और वैचारिक हथियार बन गया। कांग्रेस और उसके कई नेताओं ने इस शब्द के जरिए यह दावा किया कि कुछ हिंदू संगठनों से जुड़े चरमपंथी तत्व आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं, और इसी के तहत मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस, अजमेर शरीफ और मक्का मस्जिद जैसे धमाकों में हिंदू नामों को जांच एजेंसियों ने मुख्य आरोपी बताया।
RSS, अभिनव भारत, और अन्य संगठनों को इस कथित नैरेटिव के तहत लगातार मीडिया और राजनीतिक मंचों पर घसीटा गया। मोहन भागवत और संघ को निशाना बनाकर ऐसा जताया गया मानो पूरी संस्था चरमपंथ की जड़ हो। हालांकि बाद में जब कई मामलों में सबूतों की कमी, गवाहों के पलटने, और जबरन बयान दिलवाने के आरोप सामने आए, तो यह पूरा नैरेटिव कमजोर पड़ने लगा। भाजपा और संघ समर्थकों ने आरोप लगाया कि यह सब एक राजनीतिक षड्यंत्र था जिसका उद्देश्य था, हिंदुत्व विचारधारा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आतंकवाद से जोड़ना। वर्तमान समय में "भगवा आतंकवाद" शब्द गंभीर आलोचना और विरोध का विषय बन चुका है। इसे एक राजनीतिक स्टंट माना गया जिसने देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मामलों को विचारधारा की लड़ाई बना दिया।
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मालेगांव धमाके के बाद जिस तरह से जांच की दिशा बदली और संघ प्रमुख मोहन भागवत तक को घसीटने की कोशिश हुई, उसने कई सवाल खड़े किए। क्या यह न्याय की प्रक्रिया थी या राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा? बाद में आरोपियों को मिली जमानत और गवाहों के पलटने से स्पष्ट हुआ कि यह एक पक्षपाती नैरेटिव गढ़ने की कोशिश थी। मोहन भागवत जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता को फंसाने की साजिश लोकतंत्र और न्यायपालिका के लिए गंभीर संकेत है। जरूरी है कि आतंकी मामलों की जांच राजनीति से ऊपर उठकर निष्पक्ष और प्रमाण-आधारित हो। [Rh/SP]