न्यूज़ग्राम हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर केशवानंद भारती(Keshwanand Bharati Case) मामले में अपने ऐतिहासिक 1973 के फैसले की 50वीं वर्षगांठ मनाई, जिसमें फैसले के संबंध में सभी सामग्रियों से युक्त एक वेबपेज जारी किया गया। सुबह प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अदालत में मौजूद वकीलों को सूचित किया कि प्रशासन ने केशवानंद भारती मामले में ऐतिहासिक फैसले को श्रद्धांजलि देने के लिए एक विशेष वेब पेज समर्पित किया है।
उन्होंने कहा, आज केशवानंद भारती मामले की 50वीं वर्षगांठ है। हमने सभी शोधकर्ताओं, छात्रों और अन्य लोगों को इसे देखने के लिए सभी राय, लिखित प्रस्तुतियां और मामले से संबंधित हर चीज के साथ एक वेब पेज समर्पित किया है..।
1973 में शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में दृढ़ता से स्थापित किया कि संसद को संविधान में संशोधन करने की अबाध शक्ति प्राप्त नहीं है। इसने कहा कि कुछ बुनियादी विशेषताएं हैं, जिन्हें बदला नहीं जा सकता। केशवानंद भारती मामले का फैसला करने वाली पीठ में तत्कालीन सीजेआई एसएम सीकरी और जस्टिस जेएम शेलत, केएस हेगड़े, एएन ग्रोवर, एएन रे, बी जगनमोहन रेड्डी, डीजी पालेकर, एचआर खन्ना, केके मैथ्यू, एमएच बेग, एसएन द्विवेदी, एके मुखर्जी और वाई.वी. चंद्रचूड़ शामिल थे।
7:6 के बहुमत से 13-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सरकार की कार्यकारी और विधायी शक्तियों पर एक जांच में संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन इसकी मूल संरचना के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकती है। इस साल की शुरुआत में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती मामले के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा कि इसने एक गलत मिसाल कायम की है।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस साल जनवरी में मुंबई में 18वां नानी पालकीवाला मेमोरियल लेक्च र देते हुए कहा कि यह एक 'ग्राउंड-ब्रेकिंग'फैसला है जो जजों को संविधान की व्याख्या और कार्यान्वयन में 'नॉर्थ स्टार' की तरह मार्गदर्शन करता है। उन्होंने कहा कि बुनियादी संरचना सिद्धांत के विभिन्न सूत्रीकरण अब दक्षिण कोरिया, जापान और कुछ लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों में उभरे हैं।
--आईएएनएस/VS