मोदी-शाह को मिल गया बंगाल जीतने का फार्मूला, दीदी के गढ़ में BJP खेलेगी बिहार-केरल वाला खेल !

बीजेपी के हाथ चुनाव जीतने का एक बड़ा फार्मूला हाथ लगा है और वो है SIR (Special Intensive Revision) का फार्मूला यानी मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया। जब से इलेक्शन कमीशन ने इसे शुरू किया है, उसके बाद से ही इसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही मिलता दिखाई दे रहा है।
तस्वीर में एक तरफ नरेंद्र मोदी-अमित शाह, दूसरी तरफ ममता बनर्जी
SIR के जरिये पश्चिम बंगाल में जीतेगी बीजेपी!X
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Summary

  • SIR प्रक्रिया के बाद कई राज्यों में बीजेपी ने सत्ता पाई है।

  • पश्चिम बंगाल में 58 लाख मतदाता नाम कटने पर विपक्ष ने वोट चोरी कहा।

  • बिहार और केरल चुनाव में SIR को जीत का कारण माना जाता है।

जब आप चाणक्य की नीतियों को पढ़ेंगे, तो उसमें एक नीति गौर करने वाली मिलती है, वो लक्ष्य प्राप्ति से जुड़ी हुई है। इस चाणक्य नीति में यह कहा गया है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करना पड़े तो वो गलत नहीं है। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ये चारों तरीके अपनाए जा सकते हैं और इन्हें जायज माना जाता है।

भारतीय राजनीति की ओर गौर करें तो वर्तमान समय में केंद्र की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी (BJP) शायद इसी सिंद्धांत को अपनाकर राजनीति में अपनी साख बचाकर चल रही है। अब ये कहने की वजह भी साफ़ नज़र आ रही है। 2014 में केंद्र में अपनी सरकार बनाने वाली बीजेपी ने साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल कर भारत के हर राज्य में अपनी सरकार बना ही ली है।

2018 का त्रिपुरा चुनाव देख लें या 2015 में जम्मू कश्मीर का चुनाव। दोनों जगह बीजेपी (BJP) ने चाणक्य नीति का इस्तेमाल किया। हालांकि, अब मोदी-सरकार के हाथ एक ऐसा फार्मूला भी लग गया है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि उनके चुनाव जीतने की राह और आसान होती जा रही है। आने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव में बीजेपी चाणक्य नीति के तहत अपनी सरकार वहां बनाने की पूरी कोशिश करेगी और इस फार्मूला का जादू कहीं ना कहीं बिहार-केरल में दिख चुका है। तो आइये समझते हैं क्या है पूरा मामला?

बीजेपी के हाथ कौन सा फार्मूला लग गया?

दरअसल, बीजेपी (BJP) के हाथ चुनाव जीतने का एक बड़ा फार्मूला हाथ लगा है और वो है SIR (Special Intensive Revision) का फार्मूला यानी मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया। जब से इलेक्शन कमीशन ने इसे शुरू किया है, उसके बाद से ही इसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही मिलता दिखाई दे रहा है।

विपक्षी दल के नेता राहुल गाँधी इसे वोट चोरी का नाम देते हैं। उनके मुताबिक SIR के जरिये इलेक्शन कमीशन मतदाताओं के नाम काट रही है और बीजेपी को चुनाव जीतने में मदद कर रही है। अब कांग्रेस और TMC की ओर से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है।

क्या SIR के जरिये पश्चिम बंगाल में जीतेगी बीजेपी?

साल 2026 में बंगाल में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ममता बनर्जी अपनी कुर्सी बचाने की पूरी कोशिश करेंगी जबकि बीजेपी (BJP) पहली बार बंगाल की सत्ता में काबिज होने की फ़िराक में होगी। विपक्षी दलों के मुताबिक केंद्र की मोदी सरकार SIR (Special Intensive Revision) के जरिये बंगाल की सत्ता को हथिया लेगी। हाल ही में वहां चुनाव आयोग ने SIR के जरिये करीब 58 लाख नाम वोटर लिस्ट से हटाए। इसके बाद हुआ ये है कि राज्य के मतदाताओं की संख्या जो पहले 7.66 करोड़ थी, वो घटकर 7.08 करोड़ हो गई है।

चुनाव आयोग का कहना है कि कुल 7 करोड़ 66 लाख,37 हजार 529 मतदाताओं में से 7 करोड़ 8 लाख 16 हजार 630 मतदाताओं ने अपने एन्यूमरेशन फॉर्म जमा किए हैं। ऐसे में करीब 7.60 प्रतिशत मतदाताओं के नाम हटाए हैं। चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि जिन 58 लाख मतदाताओं के नाम हटे हैं, उसमें से 24.16 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है जबकि 32.65 लाख मतदाता या तो दूसरी जगह शिफ्ट हुए हैं या फिर वो अनुपस्थित रहे हैं। इसके साथ ही आयोग ने यह भी जानकरी दी कि 1.38 लाख मतदाताओं के नाम दो जगह पाए गए।

चुनाव आयोग द्वारा दिए गए जानकारी के मुताबिक सबसे ज्यादा मतदाताओं के नाम जो हटाए हैं, वो कोलकाता उत्तर जिले से हैं। यहाँ 25.92 फिसदी मतदाताओं के नाम हटे हैं जबकि सबसे कम नाम पूर्वी मिदनापुर से हटे हैं। यहाँ से 3.31 फीसदी लोगों के नाम हटाए गए हैं।

विपक्षी दलों का हंगामा

बंगाल में हुए SIR (Special Intensive Revision) के बाद से ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट समेत कई पार्टियां नाराज दिखाई दे रही हैं। उनका साफ़ इल्जाम है कि इसके जरिये मोदी-शाह वोट चोरी कर बंगाल में सरकार बनाएंगे। 23 दिसंबर 2025 को दानकुनी नगरपालिका के वार्ड नंबर 18 से TMC पार्षद सूर्य डे ने दावा किया कि उनका नाम काटकर मृत मतदाताओं की सूची में डाल दिया गया।

आलम तो ये हुआ कि टीएमसी पार्षद इसका विरोध करने के लिए श्मशान घाट पहुँच गए और वहां जाकर प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि उन्होंने बूथ लेवल अधिकारी के पास एन्यूमरेशन फॉर्म जमा करने के साथ कई जरूरी दस्तावेज भी दिए थे।

बिहार-केरल का चुनाव बहुत कुछ कहता है!

अब यहाँ एक सबसे बड़ा सवाल निकलकर ये आ रहा है कि क्या सच में SIR (Special Intensive Revision) के जरिये मोदी-शाह की जोड़ी सत्ता में काबिज हो रही है। इसे बिहार और केरल में हुए निकाय चुनाव से समझते हैं।

दरअसल, नवंबर के महीने में बिहार में विधानसभा के चुनाव हुए। नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA को भरपूर जनादेश मिला। 243 में से मोदी-नीतीश की जोड़ी 202 सीट जीतकर आई और विपक्ष का सूपड़ा साफ़ हो गया। विपक्ष का कहना है कि चुनाव से पहले उनकी लहर थी लेकिन बिहार में हुए SIR के कारण वो हार गए। राहुल गांधी ने दूसरे चरण से एक दिन पहले वोट चोरी का हाइड्रोजन बम भी फोड़ा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

आंकड़ों पर गौर करें, तो बिहार में हुए SIR (Special Intensive Revision) में 69 लाख मतदाताओं के नाम हटे थे। इसमें से करीब 22 लाख लोगों की मौत हुई, 36 लाख शिफ्ट हुए थे या अनुपस्थित थे। इसके बाद मतदाताओं की संख्या 7.42 करोड़ हो गई।

वहीं, केरल में नवंबर 2025 में SIR की प्रक्रिया शुरू हुई थी और जिसका ड्राफ्ट दिसंबर 2025 में पूरा हुआ। इस ड्राफ्ट सूची में लगभग 24.08 लाख मतदाताओं के नाम कटे हुए पाए गए। हालांकि, ट्विस्ट तो तब देखने को मिला जब पहली बार केरल में NDA की एंट्री हो गई।

2025 के केरल स्थानीय निकाय चुनावों में, बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA ने तिरुवनंतपुरम नगर निगम पर कब्ज़ा करके एक ऐतिहासिक जीत हासिल की, 101 में से 50 सीटें जीतीं और LDF के दशकों के दबदबे को खत्म कर दिया। गठबंधन को पूरे राज्य में 14.71% वोट शेयर मिला, और कुल 1,919 वार्ड जीते।

NDA ने पलक्कड़ नगर पालिका पर अपना नियंत्रण बनाए रखा, त्रिपुनिथुरा पर कब्ज़ा किया, और 26 ग्राम पंचायतों में बहुमत हासिल किया, जो अब तक केरल के शहरी और अर्ध-शहरी राजनीतिक परिदृश्य में उसका सबसे बड़ा विस्तार है। NDA की जीत पर CPM-LDF के नेताओं ने यह कहा कि UDF और BJP मिलकर उन्हें कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।

कुल मिलाकर NDA की जीत को इन दो चुनावों में SIR को बड़ा फैक्टर बताने की कोशिश की जा रही है।

क्या वोट चोरी कर रही है मोदी सरकार?

लौटते हैं अपने सवाल पर कि क्या सच में मोदी-शाह की जोड़ी SIR (Special Intensive Revision) के जरिये वोट चोरी कर चुनाव जीत रही है। इस बात के अब तक पुख्ता सबूत तो नहीं मिले हैं लेकिन विपक्षी दलों द्वारा इसका इल्जाम काफी लगाया जा रहा है। उनका चिंतित होना लाजमी भी है क्योंकि SIR और चुनाव हो रहे हैं और जीत बीजेपी को मिल रही है, तो ये शक जरूर पैदा करता है।

हालांकि, ये इत्तेफाक भी हो सकता है, लेकिन अगर वाकई विपक्ष इस मुद्दे को लेकर चिंतित है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए क्योंकि अभी बंगाल के साथ तमिलनाडु, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में चुनाव आने वाले हैं। हालांकि, सरकार पहले ही साफ़ कर चुकी है कि SIR यानी वोटर लिस्ट की सफाई की प्रक्रिया है, जिससे पुराने या गलत नाम हटाए जाते हैं। यह एक नियम है ताकि चुनाव सही तरीके से हो। ऐसे में इसपर सही और गलत का फैसला पूरी जानकारी और सही जांच के बाद ही किया जाना चाहिए।

(RH/ MK)

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