समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के रिश्तों के लिए केंद्रीय कानून के भाव में राज्य सरकारी कानून बनाने के लिए स्वतंत्र है खास बात यह है कि यह बात संवैधानिक पीठ के बहुमत और अल्पमत दोनों ही फ़ैसलों में की गई है। तो चलिए आपको विस्तार से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को बताते हैं।
समलैंगिक विवाह वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुकी संविधान विवाह संबंधी कानून बनाने का अधिकार संसद और राज्य विधानसभा दोनों को देता है लिहाजा केंद्रीय कानून क्या भाव में राज्य सरकारी भी अपने राज्यों के लिए इस पर फैसला ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने अल्पमत वाले फैसले में कहा कि चुकी विवाह का मामला संविधान की सातवीं अनुसूची का मामला है लिहाजा राज्य विधानसभा और सांसद दोनों को इस पर कानून बनाने का अधिकार है।
समलैंगिक विवाह पर बहुमत के फैसले में जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने कहा कि राज्य विधानसभाएं समलैंगिक विभाग को मान्यता देने के मामले में फैसला ले सकते हैं यह राज्य सरकारों के अधिकार में है कि वह विवाह और परिवार संबंधी सभी कानों को लिंक तथा बनाएं या समलैंगिक लोगों के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कोई अलग कानून बनाएं। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बड़े परिणाम देखने को मिल सकते हैं। अब तक समलैंगिक अधिकारों की बात करने वाले केंद्रीय कानून की वकालत करते थे लेकिन अब वह राज्य सरकार से भी मांग कर सकेंगे ताकि एक को देखकर दूसरे राज्य और केंद्र सरकार पर दबाव बना सके।
बता देंगे सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर शादी का कोई असीमित अधिकार नहीं।
सलिस्टर जनरल ने कहा की मैं न्यायालय के फैसले का दिल से स्वागत करता हुं, मुझे प्रसन्नता है की मेरी दलील स्वीकार कर ली गई है। कोर्ट के फैसले ने भारत के न्याय सिद्धांत और फैसले लिखे जानें की बौद्धिक प्रक्रिया को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। आज का फैसला व्यक्तिगत समूहों और सभ्य समाज के हितों में संतुलन स्थापित करने वाला है।