दिवाली के शुभ अवसर माता सीता से सीखें उनके सर्वश्रेष्ठ गुण

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माता सीता हिन्दू धर्म में त्याग की प्रतीक मानी जाती हैं। उन्हें उनके असीम साहस , समर्पण और पवित्रता के लिए भी जाना जाता है। इनका यह नाम' सीता ' संस्कृत शब्द 'सीत' से निकला है जिसका अर्थ होता है कुंड। इनके अन्य नाम वैदेही , जानकी , भूमिजा , मैथिली इत्यादि है। देवी लक्ष्मी की अवतार माता सीता के गुणों की जितनी बखान की जाए कम है। उनके गुणों का यदि आज भी कोई स्त्री अनुसरण करती हैं, तो उसका जीवन सुखमय और सफल हो जाएगा। श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने माता सीता के चरित्र का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है। तुलसीदास, श्री रामचरितमानस में लिखते हैं –

"उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।।"

अर्थात जो उत्पत्ति, स्थिति और लय करनेवाली हैं ,समस्त क्लेशों को हर लेनेवाली हैं, सभी का कल्याण करनेवाली हैं, ऐसी श्रीरामप्रिया माँ सीताजी को मैं प्रणाम करता हूँ ।

देवी सीता का जीवन ही नहीं, उनका जन्म भी बेहद अलौकिक माना जाता है। कहा जाता है की वह अपनी माता के गर्भ से नहीं, बल्कि धरती से जन्मी थीं। मिथिला नरेश जनक अपने राज्य में वैदिक अनुष्ठान के हिस्से के रूप में खेत की जुताई कर रहे थे, जब देवी सीता उन्हें एक खांचे में दिखाई दीं, जिसके बाद राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री मानकर गोद ले लिया था।

देवी सीता की जनस्थली को लेकर विवाद रहता है। बिहार के सीतामढ़ी जिले में स्थित सीता कुंड तीर्थस्थल को उनका जन्म स्थान माना जाता है। सीतामढ़ी के अलावा जनकपुर, जो वर्तमान समय में प्रान्त संख्या 2 , नेपाल में स्थित है, को भी देवी सीता का जन्मस्थान कहा जाता है। यह वैदिक भारत का एक हिस्सा था।

सीता माता के जन्म तिथि को भारत के कई राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष (श्वेत उज्ज्वल चंद्र पखवाड़े) के दौरान नवमी तिथि को सीता माता की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन महिलाऐं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

देवी सीता के स्वयंवर की भी बहुत चर्चा होती है। इनके स्वयंवर की यह शर्त थी कि जो कोई भी पिनाक (शिव का धनुष) को तार देगा, उसे सीता का हाथ मिलेगा। इस शर्त के पीछे की कहानी भी बहुत अद्वितीय है। दरअसल मां सीता ने बचपन में एक बार अपनी बहनों के साथ खेलते हुए अनजाने में वह मेज उठा ली थी जिसके ऊपर वह शिव धनुष रखा गया था। यह धनुष मिथिला में कोई नहीं उठा सकता था। इस घटना को जब उनके पिता जनक ने देखा तो उन्होंने उसी समय यह फैसला कर लिया की वह एक ऐसा दामाद ढूंढेंगे जो उनकी बेटी की तरह शक्तिशाली हो।

तुलसीदास रामायण में यह कथा कुछ अलग बताई गयी है। इसके अनुसार जब भगवान परशुराम ने देवी सीता को बहुत ही छोटी उम्र में उस शिव धनुष के साथ खेलते देखा जिसे देवता तक नहीं उठा सकते थे , तो उन्होंने राजा जनक को यह सुझाव दिया की वह अपनी पुत्री का विवाह किसी ऐसे पुरूष से करें जो इस धनुष को बांधने का पराक्रम रखता हो। बता दें की केवल भगवान राम ही भगवान शिव के इस शक्तिशाली धनुष को बांध सकते थे।

माता सीता अद्भुत गुणों की धनि थी। अपने दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए हर स्त्री को देवी सीता से ये 3 गुण सीखने चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए।

  1. दया और क्षमा : माता सीता दया और क्षमा की प्रतिमूर्ति कही जाती हैं। रावण के वध के बाद जब हनुमान अशोक वाटिका में देवी सीता को वापस लेने आते हैं तब वह उन महिला रक्षकों को मारने की अनुमति मांगते हैं, जिन्होंने देवी को इतने महीनों तक पीड़ा दी थी। तब वह कहती है, "यह रक्षक केवल रावण के आदेश का पालन कर रहे थे। उन पर कोई दोष नहीं लगाया जाना चाहिए।" यह कहकर माता उन सभी को क्षमा कर देती हैं। इसके अतिरिक्त जब रावण एक भिक्षुक का भेष बना उनसे दान मांगने आता है, तब भी वह अपनी सुरक्षा की चिंता किए बिना उस पर दया करके लक्ष्मण रेखा पार कर लेती हैं, ताकि माँ सीता उसे दान दे सकें।
  2. पतिव्रता नारी : माता सीता को श्री राम का बल माना गया है। देवी ने हर कदम पर अपने पत्नीधर्म का पालन किया। जब प्रभु राम की सौतेली मां कैकेयी ने राजा दशरथ को भरत को राज गद्दी सौंपने और श्री राम को चौदह साल के लिए वनवास में जाने के लिए मजबूर किया तब देवी सीता ने भी महल के सुख-सुविधाओं को त्यागने और पंचवटी के जंगलों में चौदह वर्ष के वनवास में राम के साथ शामिल होने का फैसला किया। इसके अतिरिक्त जब रावण ने देवी का हरण कर लिया और कुछ समय पश्चात जब हनुमान उन्हें वापस लेने गए तो उन्होंने मना कर दिया। माता सीता का भगवान् राम पर भरोसा अड़िग था। उन्हें यकीन था उनके पति श्री राम उन्हें बचाने जरूर आएंगे। अगर वह उस वक़्त रावण के अत्याचारों के सामने हार मान जातीं तो श्री राम की हार निश्चित हो जाती। इसलिए हिन्दू पुराणों में उन्हें भगवान् राम की शक्ति कहा गया है।
  3. स्वाभिमानी : जब रावण ने माता को अपने बस में करना चाहा, तब उन्होंने रावण को उनके बीच रखे भूसे के कतरे को पार करने की चुनौती दी। इस दौरान रावण कभी उस भूसे के कतरे को पार करने का साहस नहीं जुटा पाया। भगवान राम द्वारा बचाए जाने के बाद, देवी ने अपनी शुद्धता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देने का फैसला किया। यह उनका खुद पर आत्मविश्वास का सबूत है। इसके अतिरिक्त जब प्रजा ने उनकी पवित्रता पर सवाल उठाया तो मां सीता ने महल छोड़ आश्रम में रहकर अपने स्वाभिमान के रक्षा की, और अपने दोनों पुत्रों को अकेले रहकर भी स्वावलम्बी बनने की शिक्षा दी। जब लव और कुश अपने पिता (भगवान राम) के साथ मिले, तब भी माता सीता ने अयोध्या के राज्य में लौटने से मना कर दिया और उन्होंने धरती माता की गोद में समाधि ले ली।
माता सीता अपने इन्ही परम गुणों के कारण सतियों में भी सती कही जाती हैं। उनके जैसी धर्मनिष्ठ और करुणामयी देवी और कोई नहीं। दाम्पत्य जीवन में प्रवेश से लेकर अंतिम समय तक माता सीता को संघर्ष करना पड़ा ,पर देवी ने बिना किसी शिकायत के हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखा । एक श्रेष्ठ पत्नी , एक कुशल बहु और एक उत्तम माँ, इन सभी धर्मों को देवी सीता ने बखूबी निभाया और नारी जाति के लिए एक उच्च उदाहरण बनीं।

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