नांबी नारायण के जीवन पर बनी असली फिल्म से इतनी असहजता क्यों?

यह फिल्म कई नज़रिए से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह फिल्म उस कहानी को बयान करता है जब 1994 में उनपर जासूसी का झूठा आरोप लगाया गया था।
नांबी नारायण के जीवन पर बनी असली फिल्म से इतनी असहजता क्यों?
नांबी नारायण के जीवन पर बनी असली फिल्म से इतनी असहजता क्यों? 'रॉकेटरी: द नांबी इफेक्ट' (IANS)
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फिल्मी पर्दों को समाज का दर्पण कहा जाता है। कहा जाता है कि समाज में जो होता है वह परदे पर दिखता है। हालांकि यह अवधारणा अब बदल चुकी है। ऐसा भी कह सकते हैं कि जो परदे पर होता है वो एक बड़े पैमाने पर समाज में होता दिखता है। खैर इसपर चर्चा हम फिर कभी करेंगे। आज हम चर्चा करेंगे एक खास पहलू पर। बीते दिनों आर माधवन की फिल्म 'रॉकेटरी: द नांबी इफेक्ट' परदे पर आई। पर यह एक विचारणीय विषय बन गया कि फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गजों में इसके प्रति उदासीनता दिखाई दी। ऐसा शायद इसलिए कि हमारे फिल्म इंडस्ट्री में वैज्ञानिकों के कहानियों के विमर्श को स्थान न मिलना।

हमारे कई वैज्ञानिक किसी न किसी षड्यन्त्र के तहत रहस्यमय तरीके से मृत्यु को प्राप्त हो गए, पर उनपर कोई बड़ी खबर कभी नहीं आई। छोटी-मोटी कहानियों से ही टीआरपी बढ़ाने का काम चला, और कुछ दिन में वो भी विस्मृत कर दिया गया।

नांबी नारायण पर आधारित यह फिल्म मजबूर कर देती है हमें सोचने पर कि हमारे समाज का एक अभिन्न और विशेष तपका ऐसा भी है जिसके साथ हुए अन्याय की कोठरी में कोई झाँकता तक नहीं। उनका जीवन संघर्ष, आदर्श है सभी वर्ग के लोगों के लिए। देश भक्ति के मामले पर टीका टिप्पड़ी करने वालों को तो खास कर यह फिल्म देखनी चाहिए। जोधा-अकबर की झूठी प्रेम कहानियों में डूबे लोगों को इस तरह के फिल्मों का भी रुख करना चाहिए।

न्याय की आस ना छोड़ने वाले इस महाविभूति का जीवन अपने आपमें एक मिसाल है आदर का, विश्वास का, और देश भक्ति का!

अपना सारा जीवन देश के लिए बलिदान करने वाले इस व्यक्तित्व पर आधारित फिल्म रॉकेट्री पर विधु विनोद चोपड़ा की पत्नी, अनुपमा चोपड़ा, जब यह कहती हैं कि नांबी नारायण को बार-बार पूजा करते हुए ज्यादा दिखाया गया है, तब बड़ा ही दुःख होता है। यदि कोई वैज्ञानिक अपने व्यक्तिगत जीवन में पूजापाठ करता है तो वह पर्दे पर दिखाया गया है। इसमें आपत्ति क्या है? यह वो वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने देश की सेवा के लिए नासा की नौकरी तक ठुकरा दी। और ऐसे महान वैज्ञानिक के साथ षणयंत्र होते रहे, जिसका सूत्रधारों को भी पता न चल सका।

यहाँ अगर शायद किसी और धर्म का पालन करते हुए दिखाया गया होता तो वो प्रगतिशील कहानी का पर्याय बन जाता। पर हिन्दू कर्मकांड पिछड़ेपन की निशानी है उनके नज़रों में।

एक साक्षात्कार में नांबी नारायण का किरदार निभाने वाले आर माधवन ने भी यही कहा कि लोग हैरान हैं, कि एक नायक के साथ इतना अन्याय होता रहा और वह झूठी जोधा-अकबर की कहानियों में डूबे रहे? बॉलीवुड ने अनारकली से लेकर अकबर, शाहजहाँ सबपर फिल्में बनाई पर वो वैज्ञानिकों के इतने महत्वपूर्ण मुद्दे को कैसे अनदेखा कर गया? सोचने वाली बात है।

फिल्म निर्माता अशोक पंडित आलोचना करते हुए कहते हैं कि यह कितना हिन्दूफोबिक है? क्या एक वैज्ञानिक अपने किसी इष्ट पर विश्वास नहीं कर सकता?

आलोचकों के वक्तव्य के जवाब में आर माधवन बस इतना ही कहते हैं कि मैं किसी भी आलोचक के साथ लड़ाई नहीं करना चाहता, वह अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र हैं। नांबी सर एक भगवान पर विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं, तो यदि उन्हें पूजा के कक्ष में दिखाया तो इसपर क्या समस्या है?

यह फिल्म कई नज़रिए से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह फिल्म उस कहानी को बयान करता है जब 1994 में उनपर जासूसी का झूठा आरोप लगाया गया था। इसके बाद उनके जीवन में एक लंबी अमावस्या की रात में डूब गया, जहां उनकी पत्नी और बच्चों को भी अत्यंत पीड़ा का सामना करना पड़ा। हालांकि इसके बाद सीबीआई और फिर न्यायालय ने उन्हें शीघ्र ही आरोपमुक्त घोषित कर दिया और साथ ही क्षतिपूर्ति भी मुहैया कारवाई। पर यह न्याय तब पूरा होगा जब इस पूरे काण्ड को रचने वाले सलाखों के पीछे चले जाएंगे।

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