उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को “गठबंधन” से डर लगता है

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तीन दशक से सत्ता से बाहर है। (Wikimedia Commons)
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तीन दशक से सत्ता से बाहर है। (Wikimedia Commons)
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उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) में कांग्रेस(Congress) को अरसा हो गया है सत्ता में आए हुए। लगभग 3 दशक हो गए हैं और अब तक कांग्रेस सत्ता से बाहर है। इसके कई कारण है पर सबसे बड़ा कारण है राज्य में कांग्रेस का गठबंधनों पर निर्भर रहना।

कांग्रेस का गठबंधन(Alliance) का खेल साल 1989 ने शुरू हुआ जब राज्य में वो महज़ 94 सीटें जीत पाई और उसने तुरंत मुलायम सिंह यादव(Mulayam Singh Yadav) के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार को समर्थन दे दिया था।

1989 वह वर्ष भी था जब राष्ट्रीय स्तर पर देश में गठबंधन की राजनीति शुरू हो गई थी।

इसके बाद के 1991 वाले चुनाव में कांग्रेस 94 सीटों से 46 सीटों पर आ गई यहां तक की 1993 वाले चुनाव में पार्टी और नीचे चली गई और 28 सीटों पर आ गई। इस दौरान उसने सपा-बसपा के गठबंधन वाली सरकार को तुरंत समर्थन दे दिया।

इसके बाद 1996 में कांग्रेस ने बसपा के साथ चुनाव लड़ा जो पूर्व में हुए गेस्ट हाउस काण्ड(Guest House Kaand) के बाद सपा से दूर चली गई थी। कांग्रेस ने इस चुनाव में 33 सीटें जीती पर बसपा ने चुनाव बाद कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और भाजपा के साथ सरकार बना ली।

अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी पर दांव लगाया है देखना दिलचस्प होगा की क्या वो इस बार कांग्रेस की नैया पार लगा सकती हैं।(Pixabay)

एक दिग्गज कांग्रेसी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि हमने दूसरी पार्टियों को समर्थन देने की गलती करना शुरू कर दिया और अब भी करते हैं। हमारे मतदाताओं ने सोचा कि वे हमें वोट देते हैं लेकिन हम दूसरी सरकार का समर्थन करते हैं इसलिए उन्होंने हमें वोट ना करना शुरू कर दिया। 1996 में, पार्टी संगठन भी टूटना शुरू हो गया क्योंकि हमने केवल 125 सीटों पर चुनाव लड़ा और बसपा के लिए 300 सीट छोड़ दी। इन 300 सीटों पर कार्यकर्ताओं के पास करने के लिए कुछ नहीं था।

2002 में, कांग्रेस को 25 सीटों से संतोष करना पड़ा और एक साल बाद जब 2003 में बसपा-भाजपा गठबंधन टूट गया, तो कांग्रेस ने फिर से यूपी में मुलायम सिंह की सरकार बनाने में मदद की।

इस बार पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं।

2007 में, कांग्रेस 22 सीटों पर सिमट गई थी, लेकिन 2012 में उसे 28 सीटें मिलीं।

2016 में, कांग्रेस अपने कार्यकतार्ओं को '27 साल, यूपी बेहाल' अभियान के साथ उत्साहित करने में कामयाब रही, जिसने अपने कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया कि पार्टी इस बार अकेले ही जाएगी।

2019 यूपी में कांग्रेस के लिए सबसे खराब साल रहा, जब पार्टी अपना गढ़ अमेठी हार गई और उसे सिर्फ एक लोकसभा सीट रायबरेली से संतोष करना पड़ा।

गोंडा जिले के एक अनुभवी कांग्रेस नेता राम बहादुर श्रीवास्तव ने कहा कि हम ठोकर खा सकते हैं, हम फिसल सकते हैं लेकिन हमें सीखना होगा कि अकेले कैसे चलना है और हम क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक कठपुतली नहीं है। क्षेत्रीय दल हमेशा गठजोड़ करते हैं, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी इन सबमें अपनी ताकत खो देती है, जैसा कि हमारे साथ हुआ है।

हालांकि, एक वरिष्ठ नेता ने इन फैसलों के लिए 'नेताओं की मंडली' को जिम्मेदार ठहराया, जो 'निहित स्वार्थों के लिए पार्टी नेतृत्व को गुमराह' कर रहे हैं।

अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी पर दांव लगाया है देखना दिलचस्प होगा की क्या वो इस बार कांग्रेस की नैया पार लगा सकती हैं।

Input-IANS ; Edited By- Saksham Nagar

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