यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं- मोदी

प्रशानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन करने के बाद कहा यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। (Wikimedia Commons)
प्रशानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन करने के बाद कहा यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। (Wikimedia Commons)

उत्तर प्रदेश चुनाव(Uttar Pradesh Election) के मुहाने पर खड़ा है। ऐसे में प्रधानमंत्री लगातार यूपी की दौरा कर रहे हैं। अपने संसदीय क्षेत्र काशी पहुंचे मोदी ने शिवाजी और राजा सुहेलदेव की बात करके आगे का एजेंडा तय कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Narendra Modi) ने सोमवार को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर(Kashi Vishwanath Corridor) का लोकार्पण किया। इस दौरान उन्होंने आध्यत्म से लेकर राजनीति अध्यात्म तक सारा मानस उन्होंने मंच से समझा दिया है।

उन्होंने मुगलों से लेकर अंग्रेजों के खिलाफ हुए शौर्य को बहुत जोर शोर से उठाया।

कहा कि बहुत लोगों ने इस नगरी पर आक्रमण किए, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए। औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है। जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की। लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है।

यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। अंग्रेजों के दौर में भी, हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था, ये तो काशी के लोग जानते ही हैं।

उन्होंने कहा कि काशी शब्दों का विषय नहीं है, संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी वो है- जहां जागृति ही जीवन है। काशी वो है- जहां मृत्यु भी मंगल है! काशी वो है- जहां सत्य ही संस्कार है! काशी वो है- जहां प्रेम ही परंपरा है। बनारस वो नगर है जहां से जगद्गुरू शंकराचार्य को श्री डोम राजा की पवित्रता से प्रेरणा मिली। उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प लिया। ये वो जगह है जहां भगवान शंकर की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस जैसी अलौकिक रचना की। यहीं की धरती सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ। समाज सुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीषी यहां प्रकट हुये। समाज को जोड़ने की जरूरत थी तो संत रैदास जी की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी ये काशी बनी। काशी अहिंसा, तप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीथर्ंकरों की धरती है। राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा से लेकर वल्लभाचार्य, रामानन्द जी के ज्ञान तक.. चैतन्य महाप्रभु, समर्थगुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंद, मदनमोहन मालवीय तक कितने ही ऋषियों, आचार्यों का संबंध काशी की पवित्र धरती से रहा है।

उन्होंने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के चरण यहां पड़े थे। रानी लक्ष्मीबाई से लेकर चंद्रशेखर आजाद तक, कितने ही सेनानियों की कर्मभूमि-जन्मभूमि काशी रही है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, पंडित रविशंकर और बिस्मिल्लाह खान जैसी प्रतिभाएं इस स्मरण को कहां तक ले जाया जायें।

उन्होंने कहा कि आप यहां जब आएंगे तो केवल आस्था के दर्शन नहीं करेंगे। आपको यहां अपने अतीत के गौरव का अहसास भी होगा। कैसे प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव हो रही है, कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं, इसके साक्षात दर्शन विश्वनाथ धाम परिसर में हम कर रहे हैं। हमारे पुराणों में कहा गया है कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। भगवान विश्वेश्वर का आशीर्वाद, एक अलौकिक ऊर्जा यहां आते ही हमारी अंतर-आत्मा को जागृत कर देती है।

Input-IANS; Edited By- Saksham Nagar

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