Acharya VidyaSagar Ji Maharaj : 17 फरवरी की रात 2:35 बजे जैन धर्म में दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया है। पूरे जैन समाज के लिए यह दिन बड़ा कठिन था। उन्होंने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में समाधि ली। वहीं इससे पहले उन्होंने आचार्य पद का त्याग कर दिया था और तीन दिन का उपवास और मौन धारण कर लिया था।
तीन दिन बाद समाज के वर्तमान के महावीर कहे जाने वाले आचार्य विद्यासागर महाराज ने देह त्याग दी और पूरी विधि के साथ समाधि ली। वह आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे। जब आचार्य ज्ञानसागर ने समाधि ली थी तब उन्होंने अपना आचार्य पद मुनि विद्यासागर को सौंप दिया था। उस वक्त वे महज 26 वर्ष की उम्र में ही 22 नवंबर 1972 में आचार्य बन गए थे। इस दुखद घटना पर प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा, "आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी का ब्रह्मलीन होना देश के लिए अपूरणीय क्षति है।"
बताया जा रहा है की 6 फरवरी को ही उन्होंने मुनि समयसागर और मुनि योगसागर को एकांत में बुलाकर अपनी जिम्मेदारियां उन्हें सौंप दी थी। बता दें कि ये दोनों मुनि समयसागर और योगसागर उनके ग्रहस्थ जीवन के सगे भाई है। इनका जन्म कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गांव में वर्ष 1946 में 10 अक्टूबर को हुआ था। आचार्य विद्यासागर महाराज के 3 भाई और दो बहनें हैं। तीनों भाई में से 2 भाई आज मुनि हैं और भाई महावीर प्रसाद भी धर्म कार्य में लगे हुए हैं।आचार्य विद्यासागर महाराज अबतक 500 से ज्यादा दिक्षा दे चुके हैं। उन्हें 11 फरवरी को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड ने ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया।
दोपहर एक बजे आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का अंतिम संस्कार जैन पद्धति से हुआ। पूरे विधि विधान के साथ उनका डोला निकाला गया। आपको बता दें कि उनकी माता श्रीमति और पिता मल्लपा ने भी उनसे ही दिक्षा लेकर समाधि मरण की प्राप्ति की थी। पूरे बुंदेलखंड में आचार्य विद्यासागर महाराज 'छोटे बाबा' के नाम से जाने जाते हैं क्योंकि उन्होंने मप्र के दमोह जिले में स्थित कुंडलपुर में बड़े बाबा आदिनाथ भगवान की मूर्ति को मंदिर में रखवाया था और कुंडलपुर में अक्षरधाम की तर्ज पर भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया था।