Brahma Vaivarta Purana : पौराणिक कहानी के अनुसार देवी पार्वती ने मिट्टी से एक द्वारपाल बनाया, जो केवल उनके निर्देशों का पाल करे, लेकिन देवी पार्वती के ममतामयी हृदय के कारण वो एक शिशु बन गया। इसलिए देवी पार्वती ने उस शिशु का नाम विनायक रखकर उसे अपना पुत्र स्वीकार कर लिया। जब पार्वती जी स्नान करने के लिए गईं, तो वे विनायक को द्वार पर खड़ा करके आज्ञा दी कि वह किसी को अंदर न आने दे।
जब भगवान शिव देवी पार्वती से मिलने के लिए उनके कक्ष की तरफ आए, तो विनायक ने उन्हें रोका और बार-बार आग्रह करने पर भी भगवान शिव को अंदर नहीं जाने दिया क्योंकि वह भगवान शिव को भी नहीं जानता था। इसके बाद भगवान शिव को इस अपरिचित बालक को देखकर बहुत क्रोध आया। उन्होंने बालक की हठ के कारण अपना त्रिशूल चलाकर बालक का मस्तिष्क काट दिया। इसके बाद देवी पार्वती के क्रोध और विलाप के बाद भगवान शिव ने दोबारा उस बालक में प्राण दिए और उसे गज यानी हाथी का सिर लगाया गया। यहीं कहानी ज्यादातर लोग जानते हैं लेकिन क्या आप जानते है कि भगवान शिव के साथ जो कुछ भी हुआ वह एक महान ऋषि के दिए हुए श्राप के कारण हुआ ? दरहसल, ब्रहावैवर्त पुराण के अनुसार महादेव को कश्यप ऋषि ने श्राप दिया था।
ब्रहावैवर्त पुराण के अनुसार माली-सुमाली नाम के दो राक्षस थे,जो शिवभक्त थे। एक बार दोनों भगवान शिव के समक्ष आकर सूर्यदेव की निंदा करने लगे। उन्होंने कहा कि अपनी राशि में सूर्य के नकारात्मक प्रभाव के कारण उन्हें शारीरिक कष्ट झेलना पड़ रहा है। उन्होंने भगवान शिव से सूर्यदेव को उन्हें कष्ट न देने के लिए कहा। भगवान शिव सूर्यदेव को समझाने के लिए पहुंचे लेकिन सूर्यदेव ने इनकार कर दिया, उन्होंने अंहकार से भरे हुए शब्दों में उतर दिया। यह सुनकर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने सूर्यदेव पर त्रिशूल से प्रहार किया।
इसके बाद सूर्यदेव का सिर कटकर गिर गया और फिर पूरी धरती अंधकारमय हो गई। यह देखकर सूर्यदेव के पिता कश्यप ऋषि बहुत ही दुखी हो गए। अपने पुत्र का सिर कटा देखकर कश्यप ऋषि क्रोधित होगी और उन्होंने महादेव से कहा कि जिस तरह आज एक पिता होकर उन्हें अपने पुत्र को ऐसी स्थिति में देखकर इतना कष्ट हो रहा है, एक दिन उन्हें भी अपने पुत्र को इस स्थिति में देखने की पीड़ा उठानी होगी और और पुत्र को पीड़ा देने के उत्तरदायी स्वंय महादेव ही होंगे।तब सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, कि बिना सूर्यदेव के पूरी धरती अंधकारमय हो जाएगी। यह सुनकर भगवान शिव ने सूर्यदेव को जीवित कर दिया।
जब सूर्यदेव जीवित हुए तो उन्हें अपनी भूल का पश्चाताप हुआ कि उन्होंने अंहकार में आकर महादेव की अवेहलना की है। उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी और अपने पिता को पूरी बात समझाई। तब कश्यप ऋषि ने कहा श्राप वापस तो नहीं लिया जा सकता लेकिन महादेव ने जिस प्रकार सूर्यदेव को जीवित किया है, वे अपने पुत्र को भी जीवित कर पाएंगे और अपने अलग स्वरूप की वजह से महादेव का पुत्र देवता के रूप में घर-घर पूजा जाएगा।