Deoghar : बसंत पंचमी के दिन कला, बुद्धि और ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है लेकिन, बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर के लिए यह दिन और भी खास हो जाता है। बसंत पंचमी के दिन ही शादी से पहले तिलक की रस्म मनाई जाती है अर्थात बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलक चढ़ता है। उस दिन बाबा बैद्यनाथ की विशेष तरीके से पूजा अर्चना की जाती है। विभिन्न यंजनो का भोग भी लगाया जाता है।
देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम के प्रसिद्ध तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने बताया कि महाशिवरात्रि को बाबा बैद्यनाथ की शादी का उत्सव मनाया जाता है, लेकिन शादी के पहले एक तिलक का रस्म होता है उसी रस्म के लिए बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव किया जाता है। बसंत पंचमी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के ऊपर आम की मंजरी, अबीर गुलाल और मालपुए का भोग लगाकर तिलोकत्सव मनाया जाता है। पहले भगवान विष्णु को अर्पण की जाती है, उसके बाद भगवान शिव को चढ़ाई जाती है।आपको बता दे की यहां हरि-हर का मिलन हुआ था। यहां भगवान विष्णु के द्वारा ही भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना हुई है। यह तिलकोत्सव मिथिला वासी आकर करते है।
मिथिला वासी खुद को भगवान शिव का साला मानते हैं। क्योंकि, मिथिलांचल हिमालय की तराई में बसा हुआ है और मिथिलांचली अपने आप को राजा हिम की प्रजा मानते हैं साथ ही पार्वती मां हिमालय की बेटी हैं इसलिए मिथिला वासी अपने आप को लड़की पक्ष का मानते हैं। बसंत पंचमी के दिन मिथिला वासी तिलक चढ़ाकर फाल्गुन मास की चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि को बारात लेकर आने का न्योता देते हैं।
बसंत पंचमी के एक-दो दिन पहले से ही लाखों मिथिला वासी देवघर के बाबा मंदिर में तिलकोत्सव के लिए आने लगते है। वे अपने साथ खेत की धान की पहली बाली, शुद्ध घी और मालपुए साथ लाकर भगवान शिव को अर्पण करते हैं साथ ही साथ इस दिन अबीर और गुलाल भी अर्पण करते हैं। एक-दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर तिलकोत्सव मनाते हैं। बसंत पंचमी के दिन से ही लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक भगवान शिव के ऊपर अबीर और गुलाल अर्पण होता है।