कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी एकादशी के दिन देवता जागृत हो जाते हैं। इस साल देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को मनाया जा रहा है|इस दिन श्री हरि विष्णु चार माह की योग निद्रा से जाग जाते हैं। इस दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम का विवाह होता है एवं उनकी पूजा होती है कहते हैं कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेध एवं 100 राज्य सुय यज्ञ का फल मिलता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि कैसे देवउठनी एकादशी पितृ दोष से मुक्ति दिला सकते हैं।
पितृ दोष से पीड़ित लोगों को इस दिन विधिवत व्रत करना चाहिए। पितरों के लिए यह उपवास करने से अधिक लाभ मिलता है जिससे उनके पित्र नरक के दुखों से छुटकारा पा सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु या अपने इष्ट देव की उपासना करना अत्यंत लाभदायक माना जाता है। इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करने से भी खूब लाभ की प्राप्ति होती है।
शालिग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी के दिन होता है। इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है और तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है। शालिग्राम और तुलसी की पूजा से पितृ दोष का शमन भी होता है। इस दिन देव उठनी एकादशी की पौराणिक तथा कथा का श्रवण या वचन करना चाहिए। कथा सुनने या खाने से पुण्य की प्राप्ति भी होती है।
देवउठनी एकादशी के दिन पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है इस दिन गन्ने और सूप का भी खास महत्व होता है। देवउठनी एकादशी के दिन से ही किसान गन्ने की फसल की कटाई शुरू कर देते हैं कटाई से पहले गन्ने की पूजा की जाती है और इसे विष्णु भगवान को चढ़ाया जाता है। भगवान विष्णु को अर्पित करने के बाद करने को प्रसाद के रूप में बांटा भी जाता है।
एकादशी के दिन से विवाह जैसे मांगलिक कार्यों की भी शुरुआत की जाती है इस दिन पूजा के बाद सूप पीटने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं इसलिए महिलाएं उनके घर में आने की कामना करती हैं और सूप पीटकर दरिद्रता को दूर भागती हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक चार महीने में भगवान विष्णु के सो जाने की वजह से सभी मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं जब देवयानी भगवान विष्णु जागते हैं तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न होता है। क्योंकि भगवान इस दिन जगते हैं इस कारण इस त्यौहार को देवोत्थान एकादशी कहते हैं इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व होता है क्योंकि इससे मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।