Dhari Devi: केदारनाथ आपदा का कारण था मूर्ति को अपलिफ्ट करना, 9 वर्ष बाद देवी मां अपने सिंहासन पर हुई विराजमान

श्रीनगर (Srinagar) से करीब 13 किलोमीटर दूर सिद्ध पीठ धारी देवी मंदिर अलकनंदा (Alaknanda) नदी के किनारे पर स्थित है।
Dhari Devi: केदारनाथ आपदा का कारण था मूर्ति को अपलिफ्ट करना, 9 वर्ष बाद देवी मां अपने सिंहासन पर हुई विराजमान (Wikimedia)

Dhari Devi: केदारनाथ आपदा का कारण था मूर्ति को अपलिफ्ट करना, 9 वर्ष बाद देवी मां अपने सिंहासन पर हुई विराजमान (Wikimedia)

सिद्ध पीठ धारी देवी मंदिर

न्यूजग्राम हिंदी: आज 9 वर्षों के बाद मां धारी देवी (Maa Dhari Devi) अपने नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हो गई हैं। यह वही क्षण है जिसका उत्तराखंड वासी सालों से इंतजार कर रहे थे। इस खबर से देवभूमि में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है हालांकि मंदिर 4 साल पहले ही बनकर तैयार हो गया था लेकिन मंदिर में प्रतिमाओं की स्थापना नहीं हो पा रही थी।

श्रीनगर (Srinagar) से करीब 13 किलोमीटर दूर सिद्ध पीठ धारी देवी मंदिर अलकनंदा (Alaknanda) नदी के किनारे पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि जब श्रीनगर जल विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो यह क्षेत्र डूब क्षेत्र में आ गया। इस पर कार्य का संचालन कर रही कंपनी द्वारा मंदिर के चारों ओर खंभे खड़े कर निर्माण कार्य करना जारी रखा गया।

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इसके बाद जून 2013 में आई केदारनाथ (Kedarnath) जल प्रलय के कारण से अलकनंदा नदी में जलस्तर बढ़ गया और इस मंदिर की प्रतिमाएं (धारी देवी, भैरवनाथ और नंदी) को अपलिफ्ट करना पड़ा। हालांकि मूर्तियों को अपलिफ्ट करने का स्थानीय लोग बहुत विरोध कर रहे थे और उन्हें आने वाले विनाश का आभास था। लेकिन कंपनी ने उनकी बात बिना सुने अपना कार्य जारी रखा। और जिस दिन यानी कि 16 जून 2013 को मूर्तियों को अपलिफ्ट किया गया उसी दिन केदारनाथ में जल प्रलय आ गया और सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवा दी। उसी वक्त से गढ़वाल (Garhwal) के लोग केदारनाथ आपदा के पीछे परियोजना कंपनी को दोषी ठहरा रहे हैं और यह जल प्रलय धारी देवी का ही प्रकोप माना जाता है।

इस मंदिर की मूर्तियों को लेकर यह मान्यता है कि यह दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं ऐसा कहा जाता है कि देवी मां की मूर्ति सुबह के समय एक छोटी कन्या के रूप में नजर आती है और दोपहर में एक युवती का रूप धारण किए रहती है और शाम के समय देवी मां वृद्धा का रूप ले लेती है।

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