गुरु पूर्णिमा के दिन जाने क्या है पंज प्यारे का महत्व

हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है ऐसा कहा जाता है कि इस दिन ही गुरु नानक जी का जन्म हुआ था और उनके जन्म दिवस पर नानक जयंती मनाई जाती है।
Guru Purab:- 27 नवंबर 2023 को गुरु नानक जयंती मनाई जा रही है। सिख धर्म के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है।[Wikimedia Commons]
Guru Purab:- 27 नवंबर 2023 को गुरु नानक जयंती मनाई जा रही है। सिख धर्म के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है।[Wikimedia Commons]

27 नवंबर 2023 को गुरु नानक जयंती मनाई जा रही है। सिख धर्म के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है। इस दिन को प्रकाश पर्व और गुरु पूरब के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। जब बात सिक्ख धर्म की होती है तो एक शब्द आपने जरूर सुना होगा वह है पंज प्यारे तो चलिए आज हम आपको पंज प्यारे से जुड़े सभी चीजों का महत्व बताएंगे और सिख धर्म में यह क्यों महत्वपूर्ण है यह भी विस्तार से बताएंगे।

गुरु पूर्णिमा

हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है ऐसा कहा जाता है कि इस दिन ही गुरु नानक जी का जन्म हुआ था और उनके जन्म दिवस पर नानक जयंती मनाई जाती है। आप सबको तो पता होगा कि गुरु नानक जी ने ही सिख धर्म की नींव रखी थी और इसलिए उन्हें सिखों का पहला गुरु माना जाता है। आज के दिन सभी सिख नानक जयंती को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।

पंज प्यारे कौन हैं?

सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के आह्वान पर धर्म के रक्षा के लिए जो पांच लोग अपना सर कटवाने के लिए तैयार हुए थे उन्हें पंज प्यारे कहा जाता है।

सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के आह्वान पर धर्म के रक्षा के लिए जो पांच लोग अपना सर कटवाने के लिए तैयार हुए थे उन्हें पंज प्यारे कहा जाता है।[Wikimedia Commons]
सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के आह्वान पर धर्म के रक्षा के लिए जो पांच लोग अपना सर कटवाने के लिए तैयार हुए थे उन्हें पंज प्यारे कहा जाता है।[Wikimedia Commons]

कहा जाता है कि इन पांच लोगों को गुरु गोविंद ने अमृत पिलाया था इन पांच प्यारों में भाई साहब सिंह, धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह और भाई दया सिंह का नाम शामिल है। इन पांच लोगों को सिख धर्म में पंज प्यारे कहा जाता है। सिख धर्म से जुड़ी मान्यताओं के मुताबिक बैसाखी के मौके पर आनंदपुर साहिब की पवित्र भूमि पर हजारों की संख्या में संगत जुटी थी। जिसका नेतृत्व गुरु गोविंद सिंह जी कर रहे थे, उन्होंने कहा कि धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए मुझे पांच बंदों की जरूरत है जो अपने बलिदान से धर्म की रक्षा करने में सक्षम हूं। तब धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना शीश भेंट करने के लिए पंच प्यारे उठे कहते हैं की सबसे पहले इन्हें ही खालसा का रूप दिया गया था।

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