कैसे उदित हुए 51 शक्तिपीठ?

अगले जन्म में माता सती ने महाराज हिमावन के घर पर पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव को पुनः अपने पति के रूप में प्राप्त किया।
कैसे उदित हुए 51 शक्तिपीठ?
कैसे उदित हुए 51 शक्तिपीठ?Wikimedia Commons
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हम अक्सर शक्तिपीठों अथवा महाशक्तिपीठों के बारे में पढ़ते रहते हैं। किसी-किसी पुराण में 51 शक्तिपीठ तो कहीं-कहीं 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों के बारे में वर्णन मिलता है। एक तंत्र चूडामणि नामक ग्रंथ में 52 शक्तिपीठों की महिमा बताई गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ शक्तिपीठ भारत के साथ-साथ विदेशों में भी है। आज भारत में 42 शक्तिपीठ, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 और नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं।

इन 51 शक्तिपीठों के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है। कहा जाता है कि माता जगदंबिका ने राजा दक्ष के पुत्री के रूप में जन्म लिया। उस जन्म में उनका नाम सती था। माता सती ने भगवान शिव से विवाह किया था। प्रजापति दक्ष भगवान शिव को सदा ही अपमानित करते रहते थे। इसी क्रम में राजा दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं, मुनियों इत्यादि को निमंत्रित किया पर भगवान शिव को अपमानित करने की चेष्टा से उन्हें निमंत्रण नहीं भेजा।

नारद जी ने इस महायज्ञ की सूचना माता सती को देदी। सूचना पाकर माता सती क्रोधित हुईं और साथ ही दुःखी भी हुईं। यह देखकर नारद जी ने उन्हें सलाह दिया कि पुत्री को पिता के यहाँ जाने के लिए बुलावे की आवश्यकता नहीं पड़ती। माता सती को यह बात जंच गई और वो भगवान शंकर से आज्ञा लेने गईं। भगवान शिव ने उन्हें सब प्रकार से समझाया पर माता नहीं मानी और महायज्ञ में सम्मिलित होने चली गईं।

यज्ञ-स्थल पर पहुँच कर माता सती ने अपने पिता दक्ष से अपने पति शिवजी को निमंत्रित न करने का कारण पूछा। पिता ने प्रतिउत्तर में भगवान शिव के लिए अत्यंत कठोर एवं अपमानजनक वचन बोले। इस अपमान से माता सती अत्यंत दुःखी हो गईं और वहीं यज्ञ कुंड में अपनी योग अग्नि से स्वयं को भस्म कर दिया।

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भगवान शंकर को जब इस घटना का ज्ञान हुआ तो वो क्रोध में आ गए। उनके क्रोधाग्नि से सर्वत्र हाहाकार मच गया। उनके आदेशानुसार वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया। भगवान शिव अत्यंत व्याकुल होकर यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर अपने गोद में उठाया लिया और सर्वत्र ब्रह्मांड में विचरण करने लगे।

उनके इस अवस्था के कारण संसार की गति में शिथिलता आने लगी, जिससे सभी देवी-देवता चिंतित हो गए। तब भगवती सती ने अंतरिक्ष में बहगवां शिव को प्रत्यक्ष दर्शन दिए और कहा कि इस शरीर का मोह छोड़ दें। इस शरीर का जहां-जहां यंग गिरेगा वहाँ-वहाँ एक-एक महाशक्तिपीठ उदित होगा। इसके बाद भगवान शिव माता सती का शव लेकर तांडव करने लगे। तीनों लोक व्याकुल हो उठा, जिसको देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के कई टुकड़े कर दिए। 'तंत्र-चूड़ामणि' पुस्तक के अनुसार वो टुकड़े जहां-जहां गिरे वहाँ-वहाँ शकतेपीठ अस्तित्व में आया। कहीं-कहीं माता के धारण किए वस्त्र अथवा आभूषण भी गिरे थे, वहाँ भी एक-एक शक्तिपीठ स्थापित हुआ। इसी तरह कुल मिलाकर 51 शक्तिपीठ इस संसार में उदित हुए। अगले जन्म में यही माता सती ने महाराज हिमावन के घर पर पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव को पुनः अपने पति के रूप में प्राप्त किया।

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