शापित है भगवान श्री कृष्ण का गोवर्धन पर्वत? जानिए कारण

भगवान श्रीकृष्ण ने इस पर्वत को अपनी चींटी अंगुली पर सिर्फ इसलिए उठा लिया क्योंकि वह मथुरा, गोकुल, वृंदावन आदि के लोगों को अति जलवृष्टि से बचाना चाहते थे।
शापित हैं भगवान श्री कृष्ण का गोवर्धन पर्वत?
शापित हैं भगवान श्री कृष्ण का गोवर्धन पर्वत? Wikimedia
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भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) के गोवर्धन पर्वत (Govardhan) को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। वर्तमान में यह शायद 30 मीटर ऊंचा रहा होगा लेकिन अब से 5000 साल पूर्व यही गोवर्धन पर्वत लगभग 30000 मीटर ऊंचा था। यह पर्वत रोज एक मुट्ठी कम होता जा रहा है इसका कारण है ऋषि पुलस्त्य द्वारा दिया गया श्राप। यह वही पर्वत है जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी चींटी अंगुली पर उठाया था। यह पर्वत मथुरा (Mathura) से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

ऐसी मान्यता है कि ऋषि पुलस्त्य गोवर्धन पर्वत को द्रोणाचल पर्वत से बृज में लाए थे। वही एक मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध बनाने का कार्य चल रहा था तो हनुमान (Hanuman) जी गोवर्धन पर्वत को उत्तराखंड (Uttarakhand) से ला रहे थे और तभी सेतुबंध का कार्य पूर्ण होने की देववाणी हुई और देववाणी सुनकर हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत को बृज (Brij) में स्थापित किया और दक्षिण की ओर लौट गए।

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भगवान श्री कृष्ण ने इस पर्वत को अपनी चींटी अंगुली पर सिर्फ इसलिए उठा लिया क्योंकि वह मथुरा, गोकुल, वृंदावन आदि के लोगों को अति जलवृष्टि से बचाना चाहते थे। यह अति जलवृष्टि इंद्र ने कराई थी और नगर वासियों ने इसी पर्वत के नीचे खड़े होकर अपनी जान बचाई। वहां के लोग इंद्र से डरते थे और इंद्र की पूजा करते थे लेकिन श्री कृष्ण ने कहा कि आप सब डर का त्याग करें मैं हूं ना।

हिंदू धर्म में इस पर्वत की परिक्रमा का बहुत महत्व माना जाता है और वल्लभ संप्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो इस परिक्रमा को निश्चित रूप से करते ही हैं इसका कारण यह है कि इस संप्रदाय में भगवान श्री कृष्ण के बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठाए और दाएं हाथ कमर पर रखे हुए स्वरूप की पूजा की जाती है।

भगवान श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्णWikimedia

7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर लंबी इस परिक्रमा को करने समूचे विश्व से वैष्णव जन, वल्लभ संप्रदाय के लोग और कृष्ण भक्त आते हैं। इस पर्वत में ऐरावत हाथी, सुरभि गाय और भगवान श्री कृष्ण के चरण चिन्ह है।

क्या यह सच है कि यह पर्वत पिछले 5000 वर्ष से रोज एक मुट्ठी खत्म हो रहा है या इसका कारण शहरीकरण और मौसम की मार हैं। आज इसका आकार कछुए की पीठ जितना रह गया हैं।

स्थानीय सरकार द्वारा पर्वत के चारों ओर की गई तारबंदी तारबंदी से 21 किलोमीटर के अंडाकार पर्वत को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि भूरी मिट्टी और कुछ खास जबरदस्ती बड़े-बड़े पत्थरों के बीच उगा दी गई है।

इस पर्वत के चारों ओर गोवर्धन शहर और कुछ छोटे-छोटे गांव हैं लेकिन अगर आप गौर से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि यह शहर पर्वत पर ही बसा हुआ है और उसके दो सिरे से छूट गए हैं इसे ही गिरिराज पर्वत कहा जाता है इसके एक हिस्से में राधा कुंड, गोविंद कुंड और मानसी गंगा है तो दूसरे हिस्से में जातिपुरा, पूछरी का लौठा आदि है।

इस शहर की मुख्य सड़क पर एक भव्य मंदिर है उसी मंदिर में पर्वत की सिल्ला के दर्शन करने से यात्रा प्रारंभ होती है और वापस उसी मंदिर के पास आकर उसके पीछे के रास्ते से बाहर ही मानसी गंगा पर समाप्त होती है कुछ समझ में नहीं आता कि गोवर्धन पर्वत के दोनों और सड़क है या सड़क के दोनों और गोवर्धन पर्वत? ऐसा प्रतीत होता है कि शासन की लापरवाही, आबादी और इस सड़क ने खत्म किया है गोवर्धन पर्वत को।

(PT)

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