Jaya Ekadashi 2024 : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जया एकादशी व्रत के प्रभाव से साधक कभी पिशाच और प्रेत के योनि में जन्म नहीं लेता है। हिंदू धर्म में जया एकादशी का विशेष महत्व होता है। जया एकादशी व्रत के दिन पूजा के बाद कथा का जरूर श्रवण करना चाहिए इससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं जया एकादशी व्रत के तिथि और मुहूर्त के बारे में।
पंचांग के अनुसार, इस साल जया एकादशी 19 फरवरी को सुबह 8 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 20 फरवरी सुबह 9 बजकर 52 मिनट पर समाप्त हो जाएगी यानी जया एकादशी का व्रत करने वाले भक्त उदया तिथि होने के कारण 20 फरवरी को कर सकते है।
जया एकादशी के दिन व्रत करने वाले भक्त सुबह स्नान करें इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस दिन केले के पेड़ में जल अर्पित करने के साथ चने की दाल भी चढ़ाया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें पीले रंग के फूल अथवा पीले रंग की मिठाई अर्पित करें,इसके बाद भगवान विष्णु का कथा जरूर सुने।
पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने कथा कहते हुए बताया कि एक बार नंदन वन में इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था। उत्सव में गंधर्व गाने रहे थे और अप्सराएं नृत्य कर रही थी। इन्हीं में एक गंधर्व था माल्यवान और वहीं एक सुंदर नृत्यांगना पुष्यवती थी दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए । उन दोनों के अपने-अपने कार्यों में ध्यान न होने का कारण इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और माल्यवान और पुष्पवती को पिशाच योनि में कष्ट भोगने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण माल्यवान और पुष्पवती पिशाच योनि में कष्टप्रद जीवन व्यतीत करने लगे। फिर एक दिन माघ शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई। माल्यवान और पुष्पवती ने उस दिन कुछ भी नहीं खाया और फल फूल पर दिन बिता दिया। दिन ढ़लने के बाद, उस रात सर्दी के कारण वे सो नहीं सके, जिससे उनका रात्रि जागरण हो गया। जया एकादशी के दिन इस व्रत के कारण वे सुबह होते ही पिशाच योनि से मुक्त हो गए और वे स्वर्ग लोक चले गए। उनको देखकर इंद्र चौंक गए और पिशाच योनि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब माल्यवान ने बताया कि भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी व्रत से हमे पिशाच योनि से छुटकारा मिला है।